Февраль 2001 - Hanna Strack

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Christlicher Kalender
für Frauen
Христианский Календарь
для Женщин
Name
Vorname
Adresse
1
Liebe Frauen, liebe Schwestern im Glauben,
Sie haben nun die zweite Ausgabe des "Christlichen Kalenders für Frauen" in
Händen.
Wir freuen uns, dass der erste Kalender vom Jahr 2000 solch ein großer Erfolg
war. Viele Frauen haben uns geschrieben, sie haben erzählt, welche Texte für
sie besonders wichtig sind und sie haben Vorschläge gemacht, die wir
aufgreifen werden. Wir danken Ihnen und hoffen, dass Sie weiterhin mit uns
verbunden bleiben.
Unser Kalender verbindet Frauen in den weiten Gebieten der ehemaligen
Sowjetunion mit Frauen aus anderen Ländern. Er hilft uns einander näher
kennenzulernen und er informiert die Aussiedlerinnen in Deutschland über
das Leben in den Gemeinden, von denen sie herkommen.
Wir wollen weiterhin versuchen, unser Leben vor Gott zu bringen und ihn als
Quelle des Lebens zu erkennen. Wie Jesus Christus es verheißen hat: "Wer
aber von dem Wasser trinken wird, das ich ihm gebe, den wird in Ewigkeit
nicht dürsten, sondern das Wasser, das ich ihm gebe, wird in ihm eine Quelle
des Wassers werden, das in das ewige Leben fließt." (Joh 4 ,14)
Es gibt den deutschen FrauenKirchenKalender nun schon seit zehn Jahren. Im
letzten Jahr ist eine Ausgabe in englischer Sprache dazugekommen und nun
haben auch Frauen in Norwegen und Brasilien begonnen, einen christlichen
Kalender für Frauen zu schreiben. Sie alle wurden von Brigitte Enzner-Probst
und Hanna Strack auf den Weg gebracht und begleitet.
Wir freuen uns, wenn Sie uns schreiben, wie unser Kalender Ihnen gefällt und
welche Wünsche Sie für die nächsten Jahre haben.
Herzlich grüßen wir Sie
Ihre
Bemerkungen zu den kirchlichen Feiertagen:
Die orthodoxe Kirche und die westlichen Kirchen, die damals unter dem
Einfluß Roms standen, haben seit dem 24.2.1582 verschiedene Tage für
die großen Feste.
Deshalb drucken wir die Feiertage nach dem Gregorianischen Kalender
in gewöhnlicher Schrift und in kursiv die Festtage nach dem Julianischen
Kalender, der hauptsächlich in der orthodoxen Kirche verwendet wird.
Es wäre zu verwirrend, alle einzelnen Abweichungen aufzuschreiben.
2
Дорогие женщины, дорогие сёстры по вере,
итак, у Вас в руках второй выпуск «Христианского Календаря для
Женщин».
Мы рады, что первый календарь, выпущенный в 2000 году, имел столь
большой успех.
Многие женщины в своих письмах поделились с нами , какие тексты для
них особенно важны и внесли предложения, которые мы поддержим. Мы
благодарим всех Вас и надеемся, что Вы и в дальнейшем будете держать
с нами связь.
Наш календарь связывает женщин, живущих на обширных территориях
бывшего Советского Союза, с женщинами других стран. Он помогает
нам ближе узнать друг друга и информирует женщин, переселившихся в
Германию, о жизни в их прежних общинах.
Мы хотим в дальнейшем попытаться представить нашу жизнь пред
Богом и познать Его, как Источник Жизни. Как это обещал Иисус
Христос:» Кто будет пить воду, которую Я дам ему, тот не будет
жаждать вовек; но вода, которую Я дам ему, сделается в нём
источником воды, текущей в жизнь вечную». Ин 4, 14
Церковный календарь для женщин на немецком языке“Frauen Kirchen
Kalender“
издаётся уже десять лет подряд. В прошлом году добавилось издание на
английском языке, а в настоящее время женщины из Норвегии и
Бразилии начали писать свой христианский Календарь для Женщин. Все
эти издания выходят в свет по инициативе и под покровительством
Бригитты Энцнер – Пробст и Ханны Штрак.
Мы будем рады, если Вы нам напишете, что в нашем календаре Вам
понравилось и каковы Ваши пожелания на дальнейшие годы.
Сердечно приветствуют Вас
Ваши
Замечания, касающиеся дат церковных празников
Начиная с 24.2.1582 г. православная Церковь и западные Церкви,
находившиеся тогда под влиянием Рима, отмечают церковные праздники
в разные дни. Поэтому мы печатаем обычным шрифтом названия
праздников по Григорианскому календарю и курсивом – праздничные
дни по Юлианскому календарю, которым в основном пользуется
православная Церковь. Было бы слишком сложно описывать все
единичные отклонения.
3
Januar 2001
1. Mo.
2. Di.
3. Mi.
4. Do.
5. Fr
6. Sa.
7. So.
8. Mo.
9. Di.
10. Mi.
11. Do.
12. Fr.
13. Sa.
14. So.
15. Mo.
16. Di.
17. Mi.
18. Do.
19. Fr.
20. Sa.
21. So.
22. Mo.
23. Di.
24. Mi.
25. Do.
26. Fr.
27. Sa.
28. So.
29. Mo.
30. Di.
31. Mi.
Neujahr
Epiphanias
1. nach Epiphanias
Christi Geburt*
2. nach Epiphanias
Taufe des Herrn
3. nach Epiphanias
4. nach Epiphanias
*) siehe Seite 2
4
Январь 2001
1. Пн.
Новый год
2. Вт.
3. Ср.
4. Чт.
5. Пт.
6. Сб.
Эпифаниас – Богоявление
7. Вс.
Рождество Христово *
8. Пн.
9. Вт.
10. Ср.
11. Чт.
12. Пт.
13. Сб.
14. Вс.
15. Пн.
16. Вт.
17. Ср.
18. Чт.
19. Пт.
Богоявление(Крещение Господне)
20. Сб.
21. Вс.
22. Пн.
23. Вт.
24. Ср.
25. Чт.
26. Пт.
27. Сб.
28. Вс.
29. Пн.
30. Вт.
31. Ср.
*) см. стр.3
Februar 2001
1. Do.
5
2. Fr.
3. Sa.
4. So.
5. Mo.
6. Di.
7. Mi.
8. Do.
9. Fr.
10. Sa.
11. So.
12. Mo.
13. Di.
14. Mi.
15. Do.
16. Fr.
17. Sa.
18. So.
19. Mo.
20. Di.
21. Mi.
22. Do.
23. Fr.
24. Sa.
25. So.
26. Mo.
27. Di.
28. Mi.
Maria Lichtmeß
Letzter nach Epiphanias
Septuagesimä (3.v.d. Passionszeit)
Darstellung im Tempel
Sexagesimä (2.v.d. Passionszeit)
Estomihi (v.d. Passionszeit)
Февраль 2001
1. Чт.
6
2. Пт.
3. Сб.
4. Вс.
5. Пн.
6. Вт.
7. Ср.
8. Чт.
9. Пт.
10. Сб.
11. Вс.
12. Пн.
13. Вт.
14. Ср.
15. Чт.
16. Пт.
17. Сб.
18. Вс.
19. Пн.
20. Вт.
21. Ср.
22. Чт.
23. Пт.
24. Сб.
25. Вс.
26. Пн.
27. Вт.
28. Ср.
Сретение Господне
Сретение Господне
März 2001
1. Do.
7
2. Fr.
3. Sa.
4. So.
5. Mo.
6. Di.
7. Mi.
8. Do.
9. Fr.
10. Sa.
11. So.
12. Mo.
13. Di.
14. Mi.
15. Do.
16. Fr.
17. Sa.
18. So.
19. Mo.
20. Di.
21. Mi.
22. Do.
23. Fr.
24. Sa.
25. So.
Weltgebetstag
Invokavit(1.d. Passionszeit)
Internationaler Tag der Frauen
Reminiszere (2.d. Passionszeit)
Okuli (3.d. Passionszeit)
Lätare (4.d. Passionszeit)
Mariä Verkündigung
26. Mo.
27. Di.
28. Mi.
29. Do.
30. Fr.
Март 2001
8
1. Чт.
2. Пт.
3. Сб.
4. Вс.
5. Пн.
6. Вт.
7. Ср.
8. Чт.
9. Пт.
10. Сб.
11. Вс.
12. Пн.
13. Вт.
14. Ср.
15. Чт.
16. Пт.
17. Сб.
18. Вс
19. Пн
20. Вт.
21. Ср.
22. Чт.
23. Пт.
24. Сб.
25. Вс.
26. Пн.
27. Вт.
28. Ср.
29. Чт.
30. Пт.
31. Сб.
April 2001
1. So.
Всемирный День Молитвы
Международный день женщин
Благовещение Пресвятой Богородицы
Judika (5.d. Passionszeit)
9
2.
3.
4.
5.
6.
7.
8.
9.
10.
11.
12.
13.
14.
15.
16.
17.
18.
19.
20.
21.
22.
23.
24.
25.
26.
27.
28.
29.
Mo.
Di.
Mi.
Do.
Fr.
Sa.
Maria Verkündigung
So.
Palmarum (6.d. Passionszeit)
Palmsonntag
Mo.
Di.
Mi.
Do.
Gründonnerstag
Fr.
Karfreitag
Sa.
So.
Ostersonntag
Osterfest
Mo.
Ostermontag
Di.
Mi.
Do.
Fr.
Sa.
So.
Quasimodogeniti(1.n. Ostern)
Mo.
Di.
Mi.
Do.
Fr.
Sa.
So.
Miserikordias Domini(2.n. Ostern)
30. Mo.
Апрель 2001
10
Вс.
Пн.
Вт.
Ср.
Чт.
Пт.
Сб.
Богородицы
8. Вс.
воскресенье
9. Пн.
10.Вт.
11.Ср.
12.Чт.
13.Пн.
14.Сб.
15.Вс.
Христова
16.Пн.
17.Вт.
18.Ср.
19.Чт.
20.Пн.
21.Сб.
22.Вс.
23.Пн.
24.Вт.
25.Ср.
26.Чт.
1.
2.
3.
4.
5.
6.
7.
Благовещение Пресвятой
Palmarum
Вербное
Страстной четверг
Страстная пятница
Пасха
11
Пасха
27.Пн.
28.Сб.
29.Вс.
30.Пн.
Mai 2001
1. Di.
2. Mi.
3. Do.
4. Fr.
5. Sa.
6. So.
7. Mo.
8. Di.
9. Mi.
10. Do.
11. Fr.
12. Sa.
13. So.
14. Mo.
15. Di.
16. Mi.
17. Do.
18. Fr.
19. Sa.
20. So.
21. Mo.
22. Di.
23. Mi.
24. Do.
25. Fr.
Tag der Arbeit
Jubilate (3.n. Ostern)
Kantate (4.n. Ostern)
Rogate (5.n. Ostern)
Christi Himmelfahrt Christi Himmelfahrt
12
26. Sa.
27. So.
28. Mo.
29. Di.
30. Mi.
31. Do.
Exaudi (6.n. Ostern)
Май 2001
1. Вт.
Международный день солидарности трудящихся
2. Ср.
3. Чт.
4. Пт.
5. Сб.
6. Вс.
7. Пн.
8. Вт.
9. Ср.
10.Чт.
11. Пт.
12. Сб.
13. Вс.
14. Пн.
15. Вт.
16. Ср.
17. Чт.
18. Пт.
19. Сб.
20. Вс.
21. Пн.
22. Вт.
23. Ср.
24. Чт. Вознесение Господне
Вознесение Господне
13
25. Пт.
26. Сб.
27. Вс.
28. Пн.
29. Вт.
30. Ср.
31. Чт.
Juni 2001
1. Fr.
2. Sa.
3. So.
4. Mo.
5. Di.
6. Mi.
7. Do.
8. Fr.
9. Sa.
10. So.
11. Mo.
12. Di.
13. Mi.
14. Do.
15. Fr.
16. Sa.
17. So.
18. Mo.
19. Di.
20. Mi.
21. Do.
22. Fr.
23. Sa.
24. So.
25. Mo.
Pfingstsonntag
Pfingstmontag
Trinitatis
Fronleichnam
1. n. Trinitatis
2. n. Trinitatis
14
Pfingsten+Trinitatis
26.
27.
28.
29.
30.
Di.
Mi.
Do.
Fr.
Sa.
Июнь 2001
1. Пт.
2. Сб.
3. Вс. Пятидесятница День Святой
Троицы+Пятидесятница
4. Пн.
5. Вт.
6. Ср.
7. Чт.
8. Пт.
9. Сб.
10. Вс.
Тринитатис
11. Пн.
12. Вт.
13. Ср.
14. Чт.
Праздник Тела Христова
15. Пн.
16. Сб.
17. Вс.
18. Пн.
19. Вт.
20. Ср.
21. Чт.
22. Пн.
23. Сб.
24. Вс.
15
25.
26.
27.
28.
29.
30.
Пн.
Вт.
Ср.
Чт.
Пн.
Сб.
Juli 2001
1. So.
2. Mo.
3. Di.
4. Mi.
5. Do.
6. Fr.
7. Sa.
8. So.
9. Mo.
10. Di.
11. Mi.
12. Do.
13. Fr.
14. Sa.
15. So.
16. Mo.
17. Di.
18. Mi.
19. Do.
20. Fr.
21. Sa.
22. So.
23. Mo.
24. Di.
3.n. Trinitatis
4.n. Trinitatis
5.n. Trinitatis
6.n. Trinitatis
16
25.
26.
27.
28.
29.
30.
31.
Mi.
Do.
Fr.
Sa.
So.
Mo.
Di.
7.n. Trinitatis
Июль 2001
1. Вс.
2. Пн.
3. Вт.
4. Ср.
5. Чт.
6. Пт.
7. Сб.
8. Вс.
9. Пн.
10. Вт.
11. Ср.
12. Чт.
13. Пн.
14. Сб.
15. Вс.
16. Пн.
17. Вт.
18. Ср.
19. Чт.
20. Пн.
21. Сб.
22. Вс.
23. Пн.
24. Вт.
25. Ср.
17
26.
27.
28.
29.
30.
31.
Чт.
Пн.
Сб.
Вс.
Пн.
Вт.
August 2001
1. Mi.
2. Do.
3. Fr.
4. Sa.
5. So.
6. Mo.
7. Di.
8. Mi.
9. Do.
10. Fr.
11. Sa.
12. So.
13. Mo.
14. Di.
15. Mi.
16. Do.
17. Fr.
18. Sa.
19. So.
20. Mo.
21. Di.
22. Mi.
23. Do.
24. Fr.
8.n. Trinitatis
9.n. Trinitatis
Maria Himmelfahrt
10.n. Trinitatis
18
Verklärung des Herrn
25.
26.
27.
28.
29.
30.
31.
Sa.
So.
Mo.
Di.
Mi.
Do.
Fr.
Август 2001
1. Ср.
2. Чт.
3. Пт.
4. Сб.
5. Вс.
6. Пн.
7. Вт.
8. Ср.
9. Чт.
10. Пт.
11. Сб.
12. Вс.
13. Пн.
14. Вт.
15. Ср.
16. Чт.
17. Пт.
18. Сб.
19. Вс.
20. Пн.
21. Вт.
22. Ср.
23. Чт.
24. Пт.
25. Сб.
11.n. Trinitatis
Entschlafung der Gottesmutter
Вознесение Пресвятой Богородицы
Преображение Господня
19
26.
27.
28.
29.
30.
31.
Вс.
Пн.
Вт.
Ср.
Чт.
Пт.
September 2001
1. Sa
2. So.
3. Mo.
4. Di.
5. Mi.
6. Do.
7. Fr.
8. Sa.
9. So.
10. Mo.
11. Di.
12. Mi.
13. Do.
14. Fr.
15. Sa.
16. So.
17. Mo.
18. Di.
19. Mi.
20. Do.
21. Fr.
22. Sa.
23. So.
24. Mo.
25. Di.
Успение Пресвятой Богородицы
12.n. Trinitatis
Mariä Geburt
13.n. Trinitatis
14.n. Trinitatis
Geburt der Gottesmutter
15.n. Trinitatis
20
26.
27.
28.
29.
30.
Mi.
Do.
Fr.
Sa.
So.
Сентябрь 2001
1. Сб.
2. Вс.
3. Пн.
4. Вт.
5. Ср.
6. Чт.
7. Пт.
8. Сб.
9. Вс.
10. Пн.
11. Вт.
12. Ср.
13. Чт.
14. Пн.
15. Сб.
16. Вс.
17. Пн.
18. Вт.
19. Ср.
20. Чт.
21. Пн.
22. Сб.
23. Вс.
24. Пн.
25. Вт.
Kreuzerhöhung
16.n. Trinitatis, Erntedankfest
Рождество Пресвятой Богородицы
Рождество Пресвятой Богородицы
21
26.
27.
28.
29.
30.
Ср.
Чт.
Пн.
Сб.
Вс.
Oktober 2001
1. Mo.
2. Di.
3. Mi.
4. Do.
5. Fr
6. Sa.
7. So.
8. Mo.
9. Di.
10. Mi.
11. Do.
12. Fr.
13. Sa.
14. So.
15. Mo.
16. Di.
17. Mi.
18. Do.
19. Fr.
20. Sa.
21. So.
22. Mo.
23. Di.
24. Mi.
Воздвижение Креста Господня
Праздник Благодарения за урожай
Tag der Deutschen Einheit
17.n. Trinitatis
18.n. Trinitatis
19.n. Trinitatis
22
25.
26.
27.
28.
29.
30.
31.
Do.
Fr.
Sa.
So.
Mo.
Di.
Mi.
Октябрь 2001
1. Пн.
2. Сб.
3. Вс.
4. Пн.
5. Вт.
6. Ср.
7. Чт.
8. Пт.
9. Сб.
10. Вс.
11. Пн.
12. Вт.
13. Ср.
14. Чт.
15. Пн.
16. Сб.
17. Вс.
18. Пн.
19. Вт.
20. Ср.
21. Чт.
22. Пн.
23. Сб.
24. Вс.
20.n. Trinitatis
Reformationstag
День Единства Германии
23
25.
26.
27.
28.
29.
30.
Пн.
Вт.
Ср.
Чт.
Пн.
Сб.
November 2001
1. Do.
2. Fr.
3. Sa.
4. So.
5. Mo.
6. Di.
7. Mi.
8. Do.
9. Fr.
10. Sa.
11. So.
12. Mo.
13. Di.
14. Mi.
15. Do.
16. Fr.
17. Sa.
18. So.
19. Mo.
20. Di.
21. Mi.
22. Do.
23. Fr.
24. Sa.
День Реформации
Allerheiligen
21.n. Trinitatis
Drittletzter des Kirchenjahres
Tag der Bitte um Frieden und Schutz
des Lebens
Buß- und Bettag
24
25. So.
26. Mo.
27. Di.
28. Mi.
29. Do.
30. Fr.
Letzter des Kirchenjahres, Totensonntag
Ноябрь 2001
1. Чт.
День всех Святых
2. Пт.
3. Сб.
4. Вс.
5. Пн.
6. Вт.
7. Ср.
8. Чт.
9. Пт.
10. Сб.
11. Вс.
12. Пн.
13. Вт.
14. Ср.
15. Чт.
16. Пт.
17. Сб.
18. Вс.
День моления о мире и защите жизни
19. Пн.
20. Вт.
21. Ср.
День покаяния и молитвы
22. Чт.
23. Пт.
24. Сб.
25. Вс. Последнее воскресенье Церковного года
Поминальное воскресенье
25
26.
27.
28.
29.
30.
Пн.
Вт.
Ср.
Чт.
Пт.
Dezember 2001
1. Sa.
2. So.
1. Advent
3. Mo.
4. Di.
Einzug der Gottesmutter in den Tempel
5. Mi.
6. Do.
7. Fr.
8. Sa.
9. So.
2. Advent
10. Mo.
11. Di.
12. Mi.
13. Do.
14. Fr.
15. Sa.
16. So.
3. Advent
17. Mo.
18. Di.
19. Mi.
20. Do.
21. Fr.
22. Sa.
23. So.
4. Advent
24. Mo.
Heiliger Abend
25. Di.
Weihnachtsfest
26
26.
27.
28.
29.
30.
31.
Mi.
Do.
Fr.
Sa.
So.
Mo.
2. Weihnachtstag
1. nach dem Christfest
Silvester
Декабрь 2001
1.
2.
3.
4.
Сб.
Вс.
Пн.
Вт.
5. Ср.
6. Чт.
7. Пт.
8. Сб.
9. Вс.
10. Пн.
11. Вт.
12. Ср.
13. Чт.
14. Пн.
15. Сб.
16. Вс.
17. Пн.
18. Вт.
19. Ср.
20. Чт.
21. Пн.
22. Сб.
23. Вс.
24. Пн.
25. Вт.
1 Адвент
Введение во храм Пресвятой
Богородицы
2 Адвент
3 Адвент
4 Адвент
Сочедльник
Рождество Христово
27
26. Ср.
27. Чт.
28. Пн.
29. Сб.
30. Вс.
31. Пн.
1. – 6.
Канун Нового года
Januar 2001
1. Montag
6. Samstag
1. Woche
Neujahr
Epiphanias Heilige Drei Könige
Ins neue Jahr
Betritt die schwankende Brücke,
steig nicht hinab in den Abgrund,
such Halt am schmalen Geländer!
Hör nicht das Gelächter der Möwen,
schau nicht in die brodelnde Tiefe,
dreh dich nicht um!
Lass den Rucksack am Ufer!
Spür angespannt deine Sinne, Deinen Leib,
deine Liebe und Leidenschaft,
dein Wissen, deine Weite und Weisheit!
Dann tritt Schritt vor Schritt!
Und sieh: Mit hellem Strahlen
leuchtet das Antlitz Gottes
vom anderen Ufer!
Lauf in die offenen Arme
der liebenden Mutter!
Ein werbender, wärmender Segen
lockt dich ans Ziel!
28
Hanna Strack
1–6
1. Понедельник
6. Суббота
Январь 2001
1 неделя
Новый год
Эпифаниас - Богоявление
Новогоднее напутствие
Ступи на шаткие мостки,
не спускайся в пропасть,
ищи опору в узком поручне!
Не слушай хохота чаек,
не гляди в бурлящую бездну,
не оборачивайся!
Оставь на берегу свою ношу!
Напряги свои чувства и тело,
свою страсть и любовь,
почувствуй свой путь, свою мудрость!
Тогда ступай шаг за шагом!
И зри: сверкающими лучами
сияет Божий лик
с другого берега!
Иди в раскрытые объятья
любящей матери!
зовущее, греющее благословение
влечёт тебя к цели!
29
Ханна Штрак
Перевод Э. Костюк
7. – 13.
7. Sonntag
Januar 2001
Christi Geburt
2. Woche
Fürbittgebet der Mutter für die Kinder
(aus der orthodoxen Kirche)
Allmächtiger Schöpfer und Erhalter!
Führe sie zum Glauben und zum Heil!
Behalte sie unter deinem Schutz!
Bewahre sie von Hinterlist und Wollust!
Wehre alle Feinde und Widersacher von ihnen ab!
Öffne ihnen die Ohren und die Augen des Herzens
und schenke ihnen Begeisterung und Demut!
Übersetzung von Hanna Strack
30
7 – 13
7. Воскресенье
Январь 2001
2 неделя
Рождество Христово
МОЛИТВА МАТЕРИ О ДЕТЯХ
Владыко Господи Вседержителю,
Приведи их к вере и спасению,
Сохрани их под кровом Твоим,
Покрый их от всякого лукавого похотения,
Отжени от них всякого врага и супостата,
Отверзи им уши и очи сердечные
И даруй умиление и смирение сердцам их.
31
14. - 20.
19. Freitag
Januar 2001
Taufe des Herrn
3. Woche
Hier wollen wir uns den Namen der Sonntage im Kirchenjahr
zuwenden. Sie tragen lateinische Namen, die uns heute unverständlich
sind. Deshalb fragen wir nach ihrer Entstehung.
Die Gottesdienste wurden mit einem Psalmwort eröffnet. Das erste
Wort des Psalmes für diesen Sonntag gab ihm dann den Namen.
Eine Ausnahme bilden aber die Namen Septuagesimä und Sexagesimä
in der Zeit vor der Passionszeit. Sie kommen von der Zählung her.
Siebzig und sechzig Tage von Ostern. Dann folgt Estomihi, das ist der
Anfang von Psalm 31,3: Sei mir ein starker Fels.
Die Sonntage zwischen Ostern und Pfingsten heißen:
Quasimodogeniti: wie die Neugeborenen (1. Petrus 2,2a). Dieser
Sonntag heißt auch "Weißer Sonntag", weil in früher Zeit an diesem
Tag besonders gerne getauft wurde und die Täuflinge weiße Kleider
trugen.
Miserikordias Domini: Der Güte des Herrn ist die Erde voll (Psalm
33,5)
Jubilate: Jauchzet Gott alle Lande (Psalm 66,1)
Kantate: Singet dem Herrn ein neues Lied (Psalm 98,1)
Rogate: Gelobt sei Gott (Psalm 66,20)
Exaudi: Höre meine Stimme (Psalm 27,7)
Diese Namen geben den Gottesdiensten ihren festlichen Charakter.
Über die Sonntage in der Passionszeit siehe 11. Woche!
32
14 - 20
19. Пятница
Январь 2001
3 неделя
Богоявление(Крещение Господне)
Мы хотим здесь обратиться к названиям Церковного года. У них
латинские имена, которые нам сегодня непонятны, поэтому мы
задаёмся вопросом об их происхождении.
Богослужения, как правило, начинались изречением из псаломов.
Начало псаломов становилось названием соответствующего
воскресенья. Исключения составляют Septuagesimä и Sexagesimä
для времени, предшесвующим Великому Посту. Они происходят
от цифр 70 и 60. То есть семьдесят и шестьдесят дней до Пасхи.
Затем следуют Estomihi – это начало псалома 30, 3: Будь мне
каменною твердынею.
Воскресенья между Пасхой и Пятидесятницей:
Quasimodogeniti: Как новорожденные 1 Пет 2, 2а. Это
воскресенье называется также „Белым воскресеньем“, потому
что в прежние времена в это воскресенье особенно охотно
крестили, а крестившиеся были в белых одеждах.
Miserikordias Domini: Милости Господней полна земля Пс 32, 5
Jubilate: Воскликните Богу, вся земля Пс 65, 1
Kantate: Воспойте Господу новую песнь Пс 97, 1
Rogate: Благословен Бог Пс 65, 20
Exaudi: Услышь голос мой Пс 26, 7
Эти названия придают богослужениям торжественный характер.
О воскресеньях Великого Поста см. 11 неделю.
33
34
21. – 27.
Januar 2001
Immer wieder tanzen
Schenke uns, Gott,
einen gelassenen Schritt,
ein gelassenes Auge,
gelassene Hände,
einen gelassenen Geist
in all den Beengungen
frei von Enge,
frei von Verkrampfungen.
Schenke uns, Gott,
die Fähigkeit zu tanzen,
die Arme auszubreiten
und zu tanzen,
erlebnisfähig zu werden
für das Wesentliche.
Schenke uns, Gott,
Freude auszudrücken und zu verschenken,
Leid zu teilen und mitzutragen,
in der Verzweiflung trotzdem zu sagen
und immer wieder zu tanzen.
Hilf uns, Gott,
dass wir uns nicht um uns selbst
und nicht nur auf der Stelle drehen,
uns nicht im Schwindelgefühl verlieren,
dass wir bei unserem Tanz
im Glauben an dich
das Gleichgewicht halten.
Doris Lindenblatt
35
4. Woche
21 – 27
Январь 2001
Опять и опять танцевать
Даруй нам, Боже,
раскованный шаг,
спокойный взгляд,
лёгкие руки,
невозмутимый дух
при всех ограничениях
свободно от тесноты, свободно от скованности.
Даруй нам, Боже,
способность танцевать,
руки расправить
и танцевать,
быть восприимчивыми
для постижения главного.
Даруй нам, Боже, способность
выражать и дарить радость,
способность сопереживать и разделять горе,
в отчаянии уметь сказать « и всё же»,
и опять и опять танцевать.
Помоги нам, Боже,
вращаться не только вокруг себя
и на одном месте.
Помоги не потеряться в ощущении кружения,
но чтобы танцуя, сохранить равновесие
благодаря вере в Тебя.
Дорис Линденблат
Перевод Э. Костюк
36
4 неделя
Lydia - die erste Christin in Europa
Auf diesem Bild sehen wir, wie der Apostel Paulus eine Frau tauft.
Das ist in der Apostelgeschichte im Kapitel 16 in den Versen 13-15
und 40 beschrieben.
Die Lydierin, so heißt diese Frau, die die erste Christin in Europa
wurde, kommt aus der Stadt Thyateira in Lydien in der heutigen
Türkei. Dort waren die meisten Menschen in Färbereien tätig, sodass
diese Arbeiten die Haupteinnahmequelle waren. Färben war eine
schmutzige und stinkige Angelegenheit. Lydia ist eine alleinstehende
Frau, eine Arbeiterin in der Färberei. Wie sie nach Philippi in
Mazedonien kam, wissen wir nicht. Dort auf dem europäischen
Festland hat sie sich der jüdischen Gemeinde angeschlossen und mit
einigen Frauen eine Gruppe gebildet. Diese kamen ohne männliche
Leitung außerhalb der Stadt am Fluss in einem Synagogengebäude
zum Gebet zusammen. Lydia wird eine Gottesfürchtige genannt. Das
heißt, sie hat die jüdische Religion und Lebensweise angenommen.
Eines Tages kommt Paulus hinzu und spricht zu ihnen von Jesus
Christus. Er sagt, dass Jesus der ersehnte Messias sei, der aber am
Kreuz gestorben sei. Gott habe ihn aber auferweckt. Nun könne uns
nichts mehr trennen von Gottes Liebe. Eine dieser Frauen, nämlich
Lydia, wird nun ergriffen von dieser Botschaft. Sie läßt sich taufen,
aber nicht nur sie allein, ihr ganzes Haus. Haus umfasste damals alle
Verwandten, Sklaven und Sklavinnen.
Das Haus ist aber auch das Gebäude, in dem nun die erste christliche
Gemeinde in Philippi zusammenkam. Lydia leitete diese Hauskirche.
Hier wurden Gottesdienste gehalten, gepredigt, getauft und
Abendmahl gefeiert. In diesem Haus konnten auch auswärtige.
Wanderprediger wie z.B. Paulus wohnen. Lydia, die Gastgeberin,
bürgte für sie bei der Stadtverwaltung
Es ist erstaunlich, dass uns Lydias Rede an die Männer erhalten
geblieben ist: "Wenn ihr anerkennt, dass ich an den Herrn glaube, so
kommt in mein Haus und bleibt da." So ist dieser kurze Text in der
Apostelgeschichte ein Zeugnis dafür, dass Frauen in den ersten
christlichen Gemeinden leitende Funktionen innehatten. Warum hat
sich dies dann bald geändert und in das Gegenteil verkehrt?
Hanna Strack
37
Лидия – первая христианка в Европе
На этой картине мы видим как Апостол Павел крестит женщину.
Это событие описано в Деянииях Святых Апостолов: глава 16,
строфы 13-15 и 40.
Женщина, ставшая первой христианкой в Европе, зовётся
лидийкой, она родом из города Фиатир в Лидии, нынешней
Турции. Там большинство людей было занято красильным
ремеслом, так что эта работа была основным источником
доходов. Крашение было грязной работой. Лидия одинока,
работает в красильне. Мы не знаем, как она попала в Филиппы,
находящиеся в Македонии. Там, на европейском материке, она
присоединилась к иудейской общине и с несколькими
женщинами образовала группу. Они самостоятельно, без
руководства со стороны мужчин, собирались в молитвенном доме
за городом у реки для молитвы. Лидию называют
богобоязненной. Это означает, что она приняла иудейскую веру и
иудейский образ жизни.
Однажды пришел туда апостол Павел и рассказал им об Иисусе
Христе. Он сказал, что Иисус является тем, cтрастно ожидаемым
Мессией, Который однако умер на Кресте, но Бог Его воскресил.
И теперь ничто не может нас разлучить с Любовью Божьей. Эта
весть так захватила одну из этих женщин, а именно Лидию, что
она совершает обряд крещения. Крестилась не только Лидия, но и
весь дом. А к дому тогда причисляли всех родственников, рабов и
рабынь. Домом, однако, является и само здание, в котором теперь
собиралась первая христианская община в Филиппах. Руководила
этой домашней церковью Лидия. Здесь совершались
богослужения, проповедовали, крестили, праздновали Святое
Причастие. В этом доме могли жить и нездешние странствующие
проповедники, как например, Павел.
Принимающая гостей Лидия отвечала за них перед городской
властью.
Это удивительно, что до нас дошли слова, с которыми Лидия
обратилась к мужчинам: «Если вы признали меня верною Господу,
то войдите в дом мой и живите у меня». Таким образом, этот
короткий текст в Деяниях святых Апостолов свидетельство того,
что в первых христианских общинах женщинам принадлежали
ведущие функции. Почему же потом это так быстро
переменилось?
Ханна Штрак Перевод Э. Костюк
38
28. - 3.
2. Mittwoch
Januar / Februar 2001
Mariä Lichtmeß
5. Woche
Mariä Lichtmeß: Mariä Reinigung - Darstellung Jesu im Tempel Hypapante
Wie alle Feste des Kirchenjahres so hat auch dieses Fest vielfältige
Wurzeln: Jahrtausendelang haben die Menschen eingebunden gelebt
in dem Ablauf des Jahreskreises. Anfang Februar war das alte
bäuerliche Jahr zu Ende, Mägde und Knechte konnten die Stelle
wechseln, die Menschen blickten voraus auf das neue Naturjahr. "Was
wird es bringen? Hoffentlich kein Blitzschlag und kein Feuer!" So
weihten sie Kerzen zum Schutz vor diesen Gefahren.
Eine andere Wurzel ist die Religion des römischen Reiches. Dort war
der 2. Februar der Göttin der Liebe geweiht zum Zeichen der neuen
Fruchtbarkeit.
Im Judentum, dessen Gesetze uns im Alten Testament erhalten sind,
geht die Mutter am Ende einer Schonzeit von vierzig Tagen nach der
Geburt eines Kindes zur Reinigung in den Tempel.
Als das Christentum sich ausbreitete, wurde dieser Tag mit
christlichen Inhalten gefüllt, die mit Maria und Jesus verbunden
waren: Jesus wird an dem vierzigsten Tag nach seiner Geburt im
Tempel dargestellt. Maria und Josef bringen für ihr Kind zwei Tauben
als Opfer dar. Dort sind auch Simeon und die Prophetin Hanna. Beide
erkennen in Jesus das zukünftige Heil der Welt (Luk 2, 22-39).
Seit dem 5.Jahrhundert gab es eine Lichterprozession, bei der die
Altarkerzen geweiht wurden. So wird es auch heute in der
katholischen Kirche gefeiert. Deshalb heißt das Fest auch Mariä
Lichtmeß.
In den orthodoxen Kirchen wird am 15. Februar, nach dem
Julianischen Kalender am 2. Februar, das Fest Hypapante gefeiert,
das bedeutet die Begegnung Simeons mit dem Jesuskind: Simeon sagt
von Jesus, er sei ein Licht zu erleuchten die Heiden (Luk 2,32 ).
Hanna Strack
39
28 –3
2. Среда
Январь/Февраль 2001
5 неделя
Сретение Господне
Мария-Лихтмесс: Очищение Марии – Сретение
Господне – Hypapante
Этот праздник, как и все праздники Церковного года, имеет
множество корней.
Тысячелетиями жизнь людей была связана с годичным циклом.
С начала февраля оканчивался старый крестьянский год,
служанки и слуги могли менять место работы, люди обращали
свой взор вперед, в новый год.“ Что он принесёт? Авось будет без
пожара и молний!“ – и они святили свечи, чтобы защититься от
этих напастей.
Другой источник – религия Римской империи.
Там день 2 февраля был посвящён богине любви в знак нового
плодородия.
В иудаизме, законы которого сохранил для нас Ветхий Завет,
женщине было разрешено по прошествии 40 дней после родов
явиться в храм для очищения.
Когда распространилось христианство, этому дню было придано
христианское содержание, связанное с Марией и Иисусом: на
сороковой день после Рождества приносят Младенца Христа в
Храм, чтобы посвятить Его Господу. Мария и Иосиф принсят в
жертву двух горлиц. Там же в храме присутствуют Симеон и
пророчица Анна. Оба узнают в Иисусе будущее Спасение мира.
(Лк 2,22-39).
Начиная с пятого века освящались в этот день свечи в алтаре и
верующие проходили процессией со свечами. Так празднует этот
день католическая Церковь и сегодня. Поэтому праздник этот
получил название Мария-Лихтмесс.
Православная Церковь празднует 15-го февраля – 2-го февраля по
Юлианскому календарю – Сретение Господне(греч. Hypapante),
что означает Встреча Симеона с Младенцем. Симеон говорит об
Иисусе:“Он – свет к просвещению язычников“ ( Лк 2, 32)
Ханна Штрак
Перевод Э. Костюк
40
4. - 10.
Februar 2001
6. Woche
Ackergebetstunde im Dorf Norka an der Wolga
Große Aufmerksamkeit wurde der Vorbereitung des Bodens geschenkt, damit
er ein guter Acker würde. Die Erde musste trocken werden, aber auch nicht
austrocknen, weil der Sommer sehr heiß war und es selten regnete.
An dem Tag, an dem die Bauern bestimmten, die erste Furche zu ziehen,
wurde am frühen Morgen die Ackergebetsstunde abgehalten. Alle Wagen,
Pferde, Ochsen waren zur Arbeit bereit. Es war noch dunkel, aber die Glocken
riefen die Bauern zum Gebet. Die Menschen eilten in ihren Sonntagskleidern
in die Kirche, die brechend voll war. Dort herrschte eine feierliche Stille. Die
Orgel begleitete den Gesang von tausend Menschen. Die ganze Gemeinde ließ
sich in einer seelischen Einigkeit auf die Knie nieder, der Pfarrer kniete vor
dem Altar mit der Bitte, die Arbeit der Bauern zu segnen, ihr Vieh vor Seuche
zu schützen, Hitze und Frost abzuwehren, das Dorf vor Feuersbrunst und
Krankheiten zu retten. Stehend baten sie Gott um Kraft und Ausdauer, die
Feldarbeiten zu vollenden, die Felder von Unkraut frei zu halten, die Ernte
einzubringen. Sie baten auch, ihren Glauben an Gott und Jesus Christus zu
stärken, dass sie nicht vom Weg abweichen. Danach betete man das
Vaterunser.
Nach dem Gottesdienst wurde schnell gefrühstückt und in einer Stunde
verließen die Wagen, voll mit Eggen, Pflügen und anderen Geräten,
Kochkessel und Küchengeschirr das Dorf, um erst im Herbst
zurückzukommen. Dieser Tag war für alle Bauern ein heiliger Tag.
Aus den Erinnerungen von Edith Müthel, geb.1919, Gemeindemitglied der St.
Petri und St. Anna Gemeinde in St. Petersburg
41
4 – 10
Февраль 2001
6 неделя
Молебен в деревне Норка на Волге
По случаю начала весенней пахоты
Большое внимание уделялось подготовке земли к вспашке. Почва
должна была подсохнуть, но не высохнуть, т.к. лето было очень
жарким и дожди выпадали редко.
В день, определённый крестьянами для прокладки первой
борозды, ранним утром проводился молебен. Для полевых работ
были готовы все подводы, лошади и волы.
Было ещё темно, когда колокола призывали крестьян к молитве. В
своих праздничных одеждах спешили люди в церковь, которая
была переполнена. Там царила торжественная тишина. Пение
тысячи людей сопровождалось игрой на органе. В душевном
единении вся община опускалась на колени. Перед алтарём
коленопреклонённый пастор просил Господа благословить работу
крестьян, защитить их скот от эпизоотии, предотвратить зной и
мороз, спасти деревню от пожаров и болезней. Стоя просили они
Бога даровать им силы и терпение для завершения полевых
работ и сбора урожая, для содержания полей чистыми от сорняка.
Они так же просили укрепить их веру в Бога и Иисуса Христа,
чтобы не уклониться от пути Господнего. Затем молились: «Отче
наш».
После богослужения спешно завтракали,и через час подводы,
груженные боронами, плугами и другими сельскохозяйственными
орудиями, а также котлами и посудой, покидали деревню, чтобы
вернуться только осенью.
Этот день был святым днём для всех крестьян.
Из воспоминаний Эдит Мютель, 1919 года рождения, члена
общины Св. Петра и Св. Анны г. Санкт-Петербурга
Перевод Э. Костюк
42
11. – 17.
15.Donnerstag
Februar 2001
7. Woche
Darstellung in Tempel
43
11 – 17
15.Четверг
Февраль 2001
7 неделя
Сретение Господне
Das Bild von Rogier van der Weiden erzählt uns diese Szene im
Tempel:
Maria und Josef bringen das Jesuskind zur Darstellung und um ein
Opfer zu bringen.
Rechts steht Simeon und neben ihm die Prophetin Hanna.
Simeon spricht: „Herr, nun lässt du deinen Diener in Frieden fahren,
wie du gesagt hast; denn meine Augen haben deinen Heiland gesehen,
den du bereitet hast vor allen Völkern, ein Licht, zu erleuchten die
Heiden und zum Preis deines Volkes Israel.“ Lk 2, 29-32
Und die Prophetin Hanna trat hinzu zu derselben Stunde und pries
Gott und redete von ihm zu allen, die auf die Erlösung Jerusalems
warteten. Lk 2, 38
Эта картина Рогиера ван дер Вайден описывает сцену в храме:
Мария и Иосиф принесли Младенца Иисуса, чтобы
„представить пред Господа“ и принести жертву.
Справа стоит Симеон, а рядом с ним пророчица Анна. Симеон
говорит: „Ныне отпускаешь раба Твоего, Владыко, по слову
Твоему, с миром, ибо видели очи мои спасение Твоё, которое Ты
уготовил пред лицем всех народов, свет к просвящению
язычников и славу народа Твоего Израиля.“ Лк 2, 29-32
А Анна пророчица „в то время, подойдя славила Господа и
говорила о Нем всем, ожидавшим избавления в Иерусалиме.“
Лк 2, 38
44
18. – 24.
Februar 2000
Öffne uns
Lebendiger Gott,
öffne unsere Herzen,
damit wir das Wehen Deines Geistes spüren,
öffne unsere Hände,
damit wir sie unseren Mitmenschen entgegenstrecken,
öffne unsere Lippen, damit Freude und Wunder
des Lebens über sie fließen,
öffne unsere Ohren, damit wir Deinen Schmerz
in unserem Menschsein hören,
öffne unsere Augen, damit wir Christus im Freund
wie im Fremden erkennen,
gib uns Deinen Geist ein, und berühre unser Leben
mit dem Leben Jesu Christi.
Amen
aus dem Gottesdienstbuch von Escorial
45
8. Woche
18 – 24
Февраль 2001
8 неделя
Открой нас
Молитва в начале богослужения
Боже живый, открой сердца наши,
чтобы мы чувствовали веяние Духа Твоего,
открой наши руки,
чтобы мы протянули их людям,
открой уста наши, чтобы через них
изливались радость жизни и восхищение ею,
открой наши уши, чтобы мы услышали
Твою боль в нашем человеческом естестве,
открой глаза наши, чтобы мы узнавали Христа как в
близких, так и в чужаках,
всели в нас Дух твой и осени путь наш жизнью Иисуса
Христа.
Аминь
Из Богослужебной книги Эскориала
Перевод Т.Таценко
46
Weltgebetstag aus Samoa 2001:
“Voneinander lernen - miteinander beten - gemeinsam handeln”
So hat das deutsche Weltgebetstagskomitee das Motto des Weltgebetstags der Frauen
übersetzt, das im Englischen lautet: Informed Prayer, Prayerful Action.
Unter diesem Motto stellen uns Frauen aus Samoa ihr Land und ihre Gebetsanliegen
vor. Ihre beiden Gewährsfrauen aus der Bibel sind: Ester, die Hauptperson des
gleichnamigen Buches im Alten Testament und die namenlose Frau, von der Jesus
lernte, dass er zu allen Menschen gekommen ist. Diese lebte im Gebiet von Tyrus und
Sidon in Kanaan. Sie bittet um die Heilung ihrer Tochter, die von einem Dämon
besessen ist. Jesus weist sie ab, sie aber sagt: “Aber selbst die Hunde bekommen von den
Brotresten, die vom Tisch ihrer Herren fallen." Darauf antwortete ihr Jesus: "Frau, dein
Glaube ist groß. Was du willst, soll geschehen. Und von dieser Stunde an war ihre
Tochter geheilt.” Mt 15, 21 - 28
Samoa ist ein Land der leisen Töne, wo Probleme nicht so offen angesprochen werden,
aber doch alle belasten. Es wundert, dass die Frauen in Samoa gerade diese beiden
Frauen auswählen: eine Mutter, die Jesus so engagiert widerspricht und eine Ehefrau,
Ester, die ihr Volk Israel rettet, weil sie sich ein Herz fasst und ungefragt mit ihrem
Mann, dem König von Persien redet.
In den Fürbitten der Gottesdienstordnung stellen uns die Frauen ihre Inseln vor: z.B.
Savaii, die größte Insel, auf der 1830 John Williams von der Londoner
Missionsgesellschaft landete mit seinem Schiff “Botschafterin des Friedens” und
Frieden in einen Bürgerkrieg brachte. Mit ihm kam das Christentum, das freudig
aufgenommen wurde, denn nach einer Legende hat Nafanua, die Göttin des Krieges,
prophezeit, dass eine neue Religion nach Samoa kommen würde.
Die Missionsgeschichte spielt eine große Rolle in der Ordnung. In einer weiteren
Fürbitte wird von Puaseisei berichtet, der Frau, die das erste christliche Gebet auf
Samoa sprach. Heute sagen die Menschen in Samoa: “Samoa ist auf Gott gegründet”.
Die Menschen leben sehr traditionell und haben sich viele Überlieferungen bewahrt. So
steht im Mittelpunkt der Ordnung die Rückkehr zu den Wurzeln im doppelten Sinn, zu
den Wurzeln ihrer Geschichte und zu den Wurzeln des Glaubens. Die Samoanerinnen
erinnern sich selbst an ihre Missionsgeschichte und sie fordern uns auf, dass auch wir
uns auf die Wurzeln unseres Glaubens besinnen.
Fremd wirkt für uns die “Kava-Zeremonie”, die sie zum Bestandteil unseres Gebetes
mit ihnen machen: Ein junges Mädchen zerreibt zu Beginn eine Kavawurzel und
verrührt das Pulver mit Quellwasser zu einem Getränk. Die besten Rednerinnen der
gastgebenden und der besuchenden Gruppe erinnern nun an ihre jeweilige Geschichte.
Zum Abschluss trinken alle von dem anfangs hergestellten Getränk.
Dieser Brauch ist das Herzstück der Kultur der Samoanerinnen. Er bringt
Gastfreundschaft zum Ausdruck, Offenheit und Herzlichkeit.
Wie immer beim Weltgebetstag der Frauen begegnen wir hier dem Fremden einer
anderen Kultur und werden ermutigt unser Eigenes neu zu sehen.
Irene Löffler
47
Всемирный День Молитвы - Самоа 2001:
«Друг у друга учиться – вместе молиться –сообща действовать»
Так был лозунг Всемирного Дня Молитвы Женщин(WGT) переведен немецким
WGT-комитетом. По-английски он звучит: Imformed Prayer, Prayerfull Aktion. Под
этим лозунгом женщины из Самоа представляют нам свою страну, он отражен и в
их молитвах. Их поручительницами из Библии являются: Эсфирь, героиня
одноимённой книги Ветхого Завета, и безымянная женщина, благодаря которой
Иисусу стало ясно, что Он пришёл ко всем людям. Эта женщина жила в районе
Тира и Сидона в Ханаане. Она молит Иисуса об исцелении своей дочери,
которая“жестоко беснуется.„
Иисус отклоняет её просьбу, но она говорит:“но и псы едят крохи, которые
падают со стола господ их.„В ответ на это Иисус сказал ей:“женщина, велика
вера твоя ; да будет тебе по желанию твоему. И исцелилась дочь её в тот же
час.„ Мф 15, 21-28
Возможно нас удивит, что женщины из Самоа – страны нежных звуков, о
проблемах которой говорят не так часто, но все знают, как они велики – что они
выбрали из Библии как раз этих двух женщин. Мать, так активно возражавшую
Иисусу и замужнюю женщину, Эсфиоь, отважившуюся обратиться к своему
мужу, царю Персии, и тем спасшую свой народ Израиль.
В ходе богослужения женщины знакомят нас с их островами. Напмример, с
самым большим островом Савайи, к которому в 1830 причалил на своём
судне“Посланница Мира“, Джон Вильямс, член лондонского миссионерского
общества. Это событие привело к прекращению на острове гражданской войны.
С миссионером на остров пришла христианская вера. Её там восприняли
радостнго, т.к. согласно одной из легенд
богиня войны Нафануа предсказала, что на Самоа придёт новая вера. В порядке
богослужения история миссионерства играет большую роль. В одной из молитв
сообщается о женщине по имени Пуасайсай, произнесшую на Самоа первую
хритианскую молитву. Сегодня на Самоа говорят:“Самоа основан на Боге.„
Люди живут здесь очень традиционно и сохранили многие обычаи. Возвращение
к корням – центральная тема литургии – имеет двоякий смысл: возвращение к
истокам их истории и к истокам веры. Свою историю миссионерства женщины
Самоа вспоминают сами и призывают и нас задуматься об истоках нашей веры.
Незнакомой представляется нам“кава-церемония“, составляющая часть нашей с
ними молитвы. Вначале молодая девушка приготавливает напиток: растирает в
порошок корень кава и смешивает его с родниковой водой. Лучшие выступающие
из принимающей и приглашённых групп вспоминают свою историю. В
завершение все пьют приготовленный ранее напиток.
Этот обычай – сердцевина культуры женщин Самоа. Он выражает
гостеприимство, открытость и сердечность.
Всемирный День Молитвы Женщин, как всегда, знакомит нас с чужестранным и
воодушевляет нас по-новому увидеть наше собственное.
Ирене Лёфлер
Перевод Э.Костюк
48
25. - 3.
28. Montag
2. Freitag
Februar / März 2001
Aschermittwoch
Weltgebetstag Samoa
Pläne
Gott,
du hast meine Pläne durchkreuzt.
Ich verstehe dich nicht.
Es ist nicht das erste Mal,
dass ich umdenken muss,
aber wieder
muss ich ganz neu beginnen.
Du hast mich herausgenommen
aus dem Getriebe des Tages.
Du hast vor die Tore
die Schranke der Krankheit gelegt.
Du hast mich kurz vor dem Ziel
auf den alten Platz zurückgeworfen.
Gott,
deine Pläne für mich sind ganz anders,
als ich es erhoffte.
Willst du meinen Ehrgeiz
und meinen Trugschluss,
unentbehrlich zu sein, entlarven?
Willst du mir
die Zeit der Stille geben,
die ich nicht eingeplant habe
aber unbedingt brauche?
Christa Peikert-Flaspöhler
49
9. Woche
25 – 3
2. Пятница
Февраль / Март 2001
9 неделя
Всемирный День Молитвы Самоа
Планы
Господь,
Ты перечеркнул мои планы.
Я не понимаю Тебя.
И это уже не в первый раз,
что я должна перестроиться
и начать всё с начала.
Ты вырвал меня
из суеты дня.
Ты поставил болезни
преградами на моём пути.
Ты, когда цель была совсем рядом,
отбросил меня назад.
Господь,
Твои планы совсем иные,
не такие, какими они виделись мне.
Желаешь ли ты непременно
разоблачить моё тщеславие
и заблуждения?
Хочешь
дать мне время покоя,
которое я не планировала,
но в котором так нуждаюсь?
Криста Пайкерт-Фласпёлер
Преревод В. Бачакашвили
50
4. – 10.
8. Donnerstag
März 2001
10. Woche
Internationaler Tag der Frauen
Über die Rolle der Frauen in der Kirche und in der
Verkündigung
Man kann erleben, wenn Brüder in der Kirche von
Frauenkonferenzen hören, ist die erste Reaktion - weg mit dem
Feminismus in der Kirche. Aber das ist nicht richtig. Den Dienst der
Frauen in der Kirche darf man nicht mit dem Feminismus
vermischen.
Auf dieser Konferenz kamen Frauen aus 12 protestantischen
Glaubensgemeinschaften zusammen, viele davon verheiratet und
mit Kindern, was sich nicht mit ihrer Dienstausübung reibt, sondern
umgekehrt, es hilft ihnen. Die Frauen tauschten Erfahrungen über
ihre Arbeit aus. Und ihr dürft glauben, wir haben etwas zum
Weitergeben. Ein Grundthema zog sich als roter Faden durch die
ganze Konferenz: "Nicht das Geschlecht des Menschen, der am
Altar steht, ist der springende Punkt. Das Wichtige ist, dass dieser
Mensch wirklich von Gott berufen ist und versteht, welche
Verantwortung er für die Gemeindeglieder trägt". Und mögen mir
die Brüder verzeihen, aber da, wo es heißt die "Frauen haben zu
schweigen", diese Kirche wird sterben. Man darf nicht vergessen,
dass die Kirche in Russland im Grunde dank der Frauen überlebte,
die die Verfolgung nicht fürchteten und ähnlich den biblischen
Frauengestalten Jesus durch alle Zeiten nachfolgten und uns, ihre
Kinder, mit sich führten. So lasst uns uns vor unseren Großmüttern
und Müttern verneigen, die alles Leid ertragen und uns zu unserem
Erlöser Jesus Christus geführt haben.
Vera Sauer, Astrachan
„Der Bote“ № 3/99
51
4 – 10
8.Четверг
Март 2001
10 неделя
Международный день женщин
О РОЛИ ЖЕНЩИНЫ В ЦЕРКВИ И БЛАГОВЕСТИИ
Приходится сталкиваться с тем, что когда братья в церкви
слышат о женской конференции, то первая реакция-"долой
феминизм из Церкви!". Но это неправильно. Нельзя
смешивать женское служение в Церкви и феминизм. На
этой конференции собрались женщины 12 протестантских
конфессий, многие замужем и имеют детей и это не
мешает им нести свое служение, а наоборот помогает.
Женщины обменивались опытом своей работы. И поверьте,
нам есть чему поучиться. Основная тема проходила
красной нитью через всю конференцию: "Не суть важно
представитель какого пола стоит у алтаря. Главное, чтобы
этот человек действительно был призван Господом и
понимал какая ответственность
лежит на нем за
прихожан". И да простят меня братья, но там, где женщине
напоминают: "женщина, да молчит" - это умирающая
церковь. Не надо забывать, что Церковь в России выжила в
основном благодаря женщинам, которые не боялись
гонений и подобно библейским женщинам шли к Иисусу во
все времена и вели за собой нас, своих детей. Так давайте
поклонимся нашим бабушкам и матерям, которые
перенесли все тяготы и привели нас к нашему Спасителю
Иисусу Христу.
Вера Зауер, Астрахань
«Вестник»№ 3/99
52
11. – 17.
März 2001
11. Woche
Die Sonntage in der Passionszeit
Der Sonntag war das erste, was Christen gefeiert haben, immer am
ersten Tag der Woche morgens vor der Arbeit gedachten sie in einem
Gottesdienst der Auferstehung Jesu Christi. Jeder Sonntag ein kleines
Osterfest! Denn die Auferstehung Jesu Christi ist der Grund unseres
Glaubens. So sind auch die Sonntage in der Passionszeit schon
Zeichen auf Ostern hin, ja die ganze Buß- und Vorbereitungszeit hat
Ostern zum Ziel. In der Frühzeit der Christenheit bereiteten sich die
Taufbewerber auf die Taufe an Ostern vor und die Passionszeit war
eine intensive Zeit des Nachdenkens, Fastens und Betens, in der sie
ihr Wissen von Gott und ihr Gewissen vor Gott prüften. Wichtige
Stücke aus den Evangelien, die den Hauptinhalt der Botschaft Christi
zusammenfassten, waren den Sonntagen zugeordnet und gehörten zum
Unterricht. Die bereits Getauften begleiteten sie dabei, und repetierten
Jahr für Jahr das Gelernte. Weil die Sonntage durch Texte, Psalmen
und Wochensprüche so eindeutig bestimmt waren, erhielten sie
Namen nach den lateinischen Anfängen der Psalmen.
So beginnt Psalm 91 Vers 15; Invocavit, d.h. er ruft mich.
Daher nennen wir den Sonntag Invocavit.
Ebenso ist es mit den anderen Sonntagen:
Psalm 25 Vers 6: Reminiszere, d.h. Gedenke, Herr
Psalm 25 Vers 15: Oculi, d.h. Meine Augen
Jesaja 66 Vers 10: Lätare d.h. Freuet euch
Psalm 43 Vers l: Judica. d.h. Schaffe mir Recht
Palmsonntag erinnert an Jesu Einzug in Jerusalem, als die Menschen
ihn bejubelten und ihm mit Palmenzweigen zuwinkten.
Nach wie vor helfen uns heute die Gottesdienste den Weg durch die
Passionszeit zu gehen in Predigt und Abendmahl, mit den Lesungen,
Liedern und Psalmen.
Ruth Dieterich
53
11 – 17
Март 2001
11 неделя
О воскресеньях Великого Поста
Первым, что праздновали христиане, было воскресенье: каждый первый
день недели, утром перед работой, впоминали они на богослужении о
Воскресении Иисуса Христа. Каждое воскресенье – это небольшой
праздник Пасхи! Ведь Воскресение Иисуса Христа – суть нашей веры.
Поэтому и сами названия воскресений Великого Поста указывают уже на
Пасху, да и всё подготовительное время – время покаяния – устремлено к
Пасхе.
На заре христианства верующие готовились на Пасху принять обряд
крещения. Вот почему Великий Пост был временем интенсивного
сосредоточения, поста и молитвы, в течение которого верующие
проверяли свои познания о Боге, подвергали испытанию свою веру в Бога.
Важнейшие части Евангелия, объединяющие основное содержание Благой
Вести Христа, были в эти воскресенья преднахзначены для обучения. А
те, кто был ранее крещен, присутствовали при этом и углубляли год за
годом эти знания.Так как за этими воскресеньями были закреплены
определённые тексты, псаломы и изречения недели, они получили
названия от латинских начал этих псалмов и текстов.
Так псалом 90 стих 15 начинается словом Invocavit, что переводится как
Воззовет ко мне. Отсюда это воскресенье мы называем Invocavit. То же
для других воскресений:
Псалом 24 стих 6: Reminiszere, т.е. Вспомни, Господь;
Псалом 24 стих 15: Oculi, т.е. Очи мои;
Исайя 66 стих 1: Lätare, т.е. Возвеселись;
Псалом 42 стих 1: Judica, т.е. Суди меня;
Palmarum - Palmsonntag:: Вербное (Пасьмовое) воскресенье напоминает о
въезде Иисуса в Иерусалим, когда ликующие люди приветствовали Его,
размахивая пальмовыми ветвями.
Сегодня, как и прежде, эти воскресеные богослужения с их проповедью и
святым причастием, с чтением из Библии, песнопениями и псаломами
помогают нам во время Великого Поста.
Рут Дитерих
Перевод Э.Костюк
54
18. – 24.
März 2001
12. Woche
Warum vierzig Tage Passionszeit?
Ein Jahr ist keine gleichbleibende Zeit. Die Natur hat ihren
bestimmten Rhythmus, den wir in den vier Jahreszeiten
Frühling, Sommer, Herbst und Winter erleben.
Das Kirchenjahr ist mit diesem Rhythmus verbunden, aber es
beginnt schon mit dem 1.Advent und endet mit dem
Totensonntag am Ende November. Dazwischen liegen die
Festtage, die an das Leben, Sterben und Auferstehen Jesu
Christi und an das Leben von Maria und von Heiligen erinnern.
So sind die Wochen vor Ostern der Erinnerung an Jesu
Leidenszeit gewidmet. Man hat vierzig Tage - ohne die
Sonntage - gezählt und kommt so auf die Zeit von
Aschermittwoch bis Ostersonntag.
Warum gerade vierzig Tage? Diese Zahl hat symbolischen
Charakter: vierzig Jahre zog das Volk Israel durch die Wüste,
vierzig Tage zog sich Jesus in die Einsamkeit zurück, bevor er
seine Verkündigung begann. Wenn wir die Sonntage mitzählen,
sind es sieben Wochen. Sieben ist die Zahl der
Vollkommenheit, der Ganzheit. So nimmt uns die Fastenzeit
ganz hinein in die Ruhe und das Nachdenken über Christi
Leiden und auch über die Hoffnung auf die Erneuerung der
Natur im Frühjahr, ohne die es unsere Nahrung nicht gäbe.
55
18 –24
Март 2001
12 неделя
Почему Великий Пост длится 40 дней?
Год – меняющееся время. Природа развивается в
определенном ритме, который мы проживаем в смене
четырёх времён года: весны, лета, осени и зимы.
Церковный год связан с этим ритмом, но начинается он
уже в 1-ый Адвент и оканчивается в конце ноября
поминальным воскресеньем. В промежутке - памятные
даты и праздники, связанные с Жизнью, Смертью и
Воскресением Иисуса Христа, с жизнью Марии, Его
Матери, и с Житием Святых.
Так недели перед Пасхой посвящаются воспоминаниям о
страданиях Иисуса. Сорок дней – не считая воскресений –
отделяют масленицу от Пасхального воскресенья. Почему
же ровно 40 дней? Число это символическое: 40 лет
странствовал народ Израиля по пустыне, 40 дней Иисус
постился в одиночестве перед тем, как проповедовать
Благую Весть. Если мы прибавим ещё и воскресенья, то
получим промежуток в семь недель. А число семь
символизирует совершенство и целостность.
В Великий Пост мы сосредотачиваемся на мыслях о мире,
покое, на размышлениях о Жизни Христа, а также на
ожидании весеннего обновления природы. Обновления,
которое нас питает.
Перевод Э.Костюк
56
Ein blühender Strauß vor Gott
Weltgebetstag 2000
Wenn der Blick nach Osten und Süden geht, sehen wir, dass im Jahr 2000 der
Weltgebetstag (WGT) an vielen neuen Orten gefeiert wurde zur Freude der
Planungsgruppen, zur Freude der Frauen von verschiedenen Konfessionen und zur
Freude Gottes - ganz sicher!
In der Ukraine wurde der WGT zum ersten Mal gefeiert in Lwiw, Winnitza,
Simferopol, Saporoshje und Donezk - vielleicht noch an mehr Orten! So ein
blühender Strauß vor Gott!
In Lutsk hatten die Frauen das Material nicht bekommen (wahrscheinlich ist es in der
Post verloren gegangen); sie wussten aber, dass indonesische Frauen alles vorbereitet
hatten, und darum suchten sie so viele Informationen wie möglich in Zeitungen und
Büchern. Die Frauen in Lutsk sagten, nachdem sie das Leben der Frauen in
Indonesien studiert hatten: "Wie schön ist unser Leben im Vergleich mit dem Leben
der indonesischen Frauen", und die Frauen in Lutsk und in Indonesien wurden bei
diesem WGT sehr stark im Gebet miteinander verbunden. In Lutsk begann mit dem
WGT auch die Frauenarbeit der Lutherischen Kirche.
In Lwiw war der WGT sehr ökumenisch: Frauen der lutherischen, baptistischen,
griechisch-katholischen und orthodoxen Kirchen haben zusammen gefeiert, die
Liturgie in der Baptistenkirche, das Zusammensein danach in der Lutherischen
Kirche, wo Reis und Früchte und anderes gegessen wurde. Die Zeitung hat eine
Woche danach einen Artikel darüber geschrieben.
In Kiew wurde der WGT zum achten Mal gefeiert. Kiew ist die "Mutterstadt des
WGT in der Ukraine". Dieses Jahr war die Feier zum ersten Mal nicht in der
Luterischen Kirche wie früher sondern in einer katholischen Kirche. Das ist sehr gut
für die Ökumene!
In St. Petersburg, in Russland, wurde der WGT zum sechsten Mal gefeiert. Jedes
Jahr ist die Teilnehmerinnenzahl gestiegen. Dieses Jahr nahmen etwa 250 Menschen
am Gottesdienst teil. Die Vorbereitungsgruppe hatte den Kirchenraum der
St.Peterskirche sehr schön indonesisch "angekleidet". Die Stimmung, die Erwartung,
die Musik, alles war so schön und passte so gut zusammen. Eine sagte:" Ich bin hier
zum ersten Mal, das wird nicht das letzte Mal sein!" Die Frauen kamen aus der
Lutherischen (auch von dem Ingermanland), der Römisch-Katholischen, ArmenischKatholischen, Baptistischen und Orthodoxen Kirche.
In Belarus wurde der WGT auf jeden Fall in Grodno und Minsk gefeiert. In Grodno
haben die Frauen den WGT schon zum fünften Mal in der Lutherischen Kirche
durchgeführt.
57
Symbol
Цветущий букет пред Богом – Всемирный День Молитвы 2000
Если мы обратим взор на Восток и Юг, то увидим, что Всемирный День
Молитвы (WGT) 2000 праздновался во многих новых местах на радость
группе планирования, на радость женщинам, принадлежащим к
различным конфессиям, и на радость Господу – это совершенно точно!
В Украине WGT в этом году праздновался впервые в таких городах, как
Львов, Винница, Симферополь, Запорожье и Донецк – возможно ещё
и в других местах! Вот такой цветущий букет пред Богом!
В Луцке женщины не получили информационный материал (вероятно
потерялся в дороге),но им было известно, что готовили WGT
индонезийские женщины, поэтому они искали информацию об
Индонезии в журналах и газетах. «Как хороша наша жизнь по сравнению
с жизнью индонезийских женщин» –- пришли они к выводу. В этот день
молитва очень крепко связала друг с другом женщин Луцка и Индонезии.
Подготовка WGT положила начало и женской работе в лютеранской
церкви г. Луцка.
Во Львове WGT был очень экуменическим: женщины из лютеранской,
баптистской, греко – католической и православной церквей праздновали
WGT сообща, литургию – в баптистской церкви, последующую встречу –
в лютеранской церкви, с рисом и фруктами. Газета напечатала на
следующей неделе об этом статью.
В Киеве WGT отмечается в восьмой раз. Столица является
родоначальницей WGT в Украине. Праздничное богослужение проходило
в этом году впервые не в лютеранской, как прежде, а в католической
церкви. Для экумены это очень хорошо!
В Ст.Петербурге и России WGT праздновался шестой раз. В этом году в
богослужении принимали участие около 250 человек. Подготовительная
группа очень красиво по – индонезийски оформила помещение церкви
Св.Петра. Настроение, ожидание, музыка – всё было так хорошо и
соответствовало праздничному богослужению. «Я здесь впервые» сказала одна женщина - «но не в последний раз!» Здесь собрались
женщины из лютеранской (также из ингерманландской), из римско –
католичской, баптистской и православной церквей.
В Белоруссии праздновали WGT, по крайней мере, в городах Гродно и
Минск.
58
Er ist in der Tat ein richtiges kleines Fest bei ihnen geworden, zu dem
ungefähr die Hälfte der Gemeindeglieder, auch die Männer, kommen. Dabei
ist es wohl zu einer Tradition geworden, dass zu den Fürbitten jede ein
Teelicht anzündet und diese in Form eines Kreuzes in einem Kreis erstrahlen.
Dieses Jahr schrieb uns eine alte Dame, dass sie sehr froh sind, erfahren zu
haben, wie die Christinnen in Haiti, Korea, Venezuela, Madagaskar und
Indonesien leben. "Es wäre interessant zu wissen, ob wir eines Tages am
Weltgebetstag auch für Weißrussland beten werden?"
In Albanien ist der WGT in verschiedenen Orten gefeiert worden. In Tirana
waren es fünfzehn Frauen der Orthodoxen Kirche, die anderen Konfessionen
und Kirchen waren angefragt, doch es kam keine Antwort. Sie schauten sich
die Dias an, lasen den Text, beteten zusammen, zündeten Kerzen an und
wollten sich gar nicht mehr voneinander trennen. So machten sie noch einen
gemeinsamen Spaziergang und tranken zusammen Kaffee!
In Durres ist auch der WGT gefeiert worden. Der WGT-Strauß wird jedes
Jahr größer und farbenreicher! Ich freue mich darüber!
Inge-Lise Lollike, Dänemark, Europavertreterin im WGTExekutivkomitee
59
В этом году женщины Гродно уже в пятый раз отмечали в
лютеранской церкви WGT. Это был действительно настоящий
маленький праздник, на который пришла приблизительно
половина членов общины, в том числе и мужчины. При этом
стало уже, пожалуй, традицией, что во время просительной
молитвы каждый зажигает маленькую свечу, которые
устанавливаются так, что образуют сияющий крест в круге. В
этом году одна пожилая дама написала нам, что они были очень
рады узнать, как живут христианки на Гаити, в Корее, Венесуэле,
Мадагаскаре и Индонезии. « было бы интересно узнать, не будем
ли мы однажды во Всемирный День Молитвы и за Белоруссию
молиться?»
В Албании праздновали WGT в различных местах. В Тиране это были
пятнадцать женщин из православной церкви. От других церквей и
конфессий там ответа на обращение не последовало. Собравшиеся
женщины познакомились с диапозитивами, читали тексты и вместе
молились, зажгли свечи и совсем не хотели друг с другом расстаться. Они
ещё вместе прогулялись и выпили кофе! В Durres тоже праздновали WGT.
Так всё больше и многокрасочней становится с каждым годом WGT –
букет! Я этому рада!
Инге – Лизе Лоллике, Дания, представительница Европы в
Международном Исполнительном Комитете WGT
Перевод Э.Костюк
60
25. - 31.
25. Sonntag
März 2001
13. Woche
Mariä Verkündigung
Wenn das Weizenkorn nicht in die Erde fällt und erstirbt, bleibt
es allein; wenn es aber erstirbt, bringt es viel Frucht. Joh 12,24
So auch die Auferstehung der Toten.
Es wird gesät verweslich und wird auferstehen unverweslich.
Es wird gesät in Niedrigkeit und wird auferstehen in
Herrlichkeit.
Es wird gesät in Armseligkeit und wird auferstehen in Kraft.
Es wird gesät ein natürlicher Leib und wird auferstehen ein
geistlicher Leib.
1.Kor 15,42-44
Es ist ein Bild aus der Natur: Der Same muss in die Erde gelegt
werden, sonst bringt er keine neue Pflanze und keine Frucht
hervor. Das leuchtet uns unmittelbar ein.
Dieses Bild aus der Natur kann uns auch helfen, die
Auferstehung der Toten zu begreifen: Der Same und die Pflanze
sind zwei ganz unterschiedliche Dinge und gehören doch
zusammen. Ebenso sind der tote Körper und der auferstandene
Mensch ganz unterschiedlich, obwohl sie zusammengehören.
Für unsere Kinder ist es sehr anschaulich, wenn wir in dieser
Woche etwas feuchte Erde in eine Schale legen und
Weizenkörner hineingeben. An Ostern wird die Schale eine
grüne Wiese sein! Sie lässt sich mit bunten Ostereiern
schmücken.
Hanna Strack
61
25 – 31
25. Воскресенье
Март
13 неделя
Благовещение Пресвятой Богородицы
Если пшеничное зерно, пав в землю не умрёт,
то останется одно; а если умрёт, то принесёт много плода.
Ин 12,24
Так и при воскресении мёртвых:
сеется в тлении, восстаёт в нетлении;
сеется в уничижении, восстаёт в славе;
сеется в немощи, восстаёт в силе;
сеется тело душевное, восстаёт тело духовное. 1 Кор 15,42-44
Этот образ взят из наблюдений за природой: семя должно
быть опущено в землю, иначе оно не прорастёт и не
принесёт нового плода. Нас это сразу убеждает. Этот
пример из природы может нам также помочь понять и
само воскресение из мёртвых: семя и росток совершенно
разные вещи и всё же принадлежат друг другу. Так же
точно мёртвое тело и воскресший человек –разное, но
принадлежат одному и тому же.
Для наших детей будет очень наглядным, если на этой
неделе мы положим в глубокое блюдо немного влажной
земли и насыпим в неё пшеничных зёрен. К Пасхе блюдо
превратится в зелёную лужайку! Её можно будет украсить
пёстрыми пасхальными яйцами.
Ханна Штрак
Перевод Э.Костюк
62
1. – 7.
April 2001
7. Samstag
14. Woche
Mariä Verkündigung
Über das Gebet
Gertrud die Große von Helfta
Das Gebet,
das ein Mensch
nach dem besten Können verrichtet,
hat große Kraft.
Es macht
ein bitteres Herz süß,
ein trauriges froh,
ein armes reich,
ein törichtes weise,
ein verzagtes kühn,
ein schwaches stark,
ein blindes sehend,
ein kaltes brennend.
Es zieht den großen Gott
in das kleine Herz;
es trägt die hungrige Seele empor zu Gott,
dem lebendigen Quell,
und bringt zusammen
zwei Liebende:
Gott und die Seele.
Gertrud die Große lebte etwa von 1256 bis 1301. Sie wurde schon als
Kind dem Kloster Helfta bei Eisleben übergeben. Dort bekam sie eine
sehr gute Ausbildung. Ihre Visionen sind uns in dem Buch
"Gertrudenbuch oder Geistliche Übungen der heiligen Jungfrau
Gertrud der Großen" überliefert.
Gertrud ist eine der großen Mystikerinnen des Mittelalters.
63
1–7
Апрель 2001
7. Суббота
14 неделя
Благовещение Пресвятой Богородицы
О молитве
Гертруд Великая из Гельфты
Молитва,
которую человек совершает
по лучшему разумению,
обладает великой силой.
Она смягчает горечь сердца,
делает печальное сердце радостным,
бедное – богатым,
безрассудное – мудрым,
отчаявшееся – смелым, слабое – сильным,
слепое – зрячим,
холодное – горячим.
Молитва впускает великого Бога в маленькое сердце;
она возносит истощённую душу к Богу – живому источнику.
И соединяет двух любящих: Бога и душу.
Гертруд Великая(1256-1301) уже ребёнком была отдана в
монастырь Гельфта близь Айслевена. Там она получила очень
хорошее образование. У неё были видения о Марии и Христе и о
построении литургии.“Книга Гертруды или духовная практика
святой девы Гертруд Великой“ сохранила это для нас.
Гертруд является одним из великих мистиков средневековья.
Перевод Э.Костюк
64
8. – 14.
8. Sonntag
12. Donnerstag
13. Freitag
April 2001
15. Woche
Palmarum Palmsonntag
Gründonnerstag
Karfreitag
Palmsonntag
Der Maler Julius Schnorr von Carolsfeld hat 1860 dieses Bild in Holz geschnitzt für
seine Bibel in Bildern.
Wir sehen in der Mitte Christus auf einem jungen Esel begleitet von Frauen, Männern
und Kindern, die ihre Kleider ausbreiten auf der Straße und Palmzweige schwingen und
ihm zujubeln: "Hosianna dem Sohne Davids! Gelobt sei der da kommt im Namen des
Herrn!" Mt 21,9
Von Jesus geht ein leuchten aus. Die Jünger tragen einen Heiligenschein. Wir wissen,
dass viele Frauen Anhängerinnen Jesu waren, zu seinen Jüngern aber nur Männer
gezählt werden, denn sie versinnbildlichen die zwölf Stämme Israels.
Im Hintergrund sehen wir die Pharisäer, denen der Jubel missfällt.
65
8 - 14
Апрель 2001
15 неделя
8. Воскресенье
12.Четверг
Palmarum, Вербное воскресенье
Страстной Четверг
13. Пятница
Страстная Пятница
Пальмовое воскресенье
Эту картину вырезал по дереву в 1860 году художник Юлиус Шнорр фон
Карольсфельд(794-1872) для своей Библии в картинах.
На ней мы видимв в центре Христа на молодом осле в сопровождении
женщин, мужчин и детей, которые простилают свои одежды по дороге,
размахивают пальмовыми ветками и восклицают: " Осанна Сыну
Давидову! Благословен Грядущий во имя Господне!" Мф 21,9
Сияние исходит от Иисуса. Ученики увенчаны нимбом. Мы знаем, что
многие женщины были привеженницами Иисуса, но что только
мужчины причислены к его ученикам, т.к. они символизируют
двеннадцать колен Израиля.
На заднем плане мы видим фарисеев, которым это ликование не
нравится.
Перевод Э.Костюк
66
15. – 21.
April 2000
15. Sonntag
16. Montag
Ostersonntag
Ostermontag
16. Woche
Osterfest
OSTER-SEGEN
Durch deine Macht, Gott,
hast du Jesu Kreuz zum Baum des Lebens verwandelt.
Durch deine Macht, Gott,
verwandelst du unsere Angst in Zuversicht,
unsere Lähmung in neuen Mut.
So wird unser Leben zu einem Gleichnis
für die Auferstehung vom Tod zum Leben.
Segne unseren Baum des Lebens,
damit das tote Holz anfängt,
Knospen zu treiben und zu blühen!
Hanna Strack
67
15 - 21
Апрель 2001
15. Воскресенье
Пасха
Светлое Христово Воскресение
Пасхальное благословение
Благодаря Власти Своей, Господь,
преобразил Ты Крест Иисуса
в древо жизни.
Благодаря Власти Своей, Господь,
превращаешь Ты страх наш в веру.
Так жизнь наша становится притчей
о воскресении из мёртвых к жизни.
Благослови наше дерево жизни,
чтобы мёртвое древо начало
давать ростки и цвести.
Ханна Штрак
Перевод Э.Костюк
68
16 неделя
Zum 15. Jahrestag der Tragödie von Tschernobyl
Frauen aus unserem oberbayerischen Dorf beschlossen,
aus Belarus (Weissrussland) von der
Tschernobylkatastrophe geschädigte Kinder und ihre
Mütter nach Bayern zur Erholung einzuladen. Wieviel
Wunderbares haben wir erfahren in diesen vergangenen
neun Jahren, wieviel haben wir gelernt! Wir - eine von
über tausend ähnlichen kleinen Initiativen in Deutschland,
die sich inzwischen locker zusammengeschlossen haben
aus "technischen" Gründen. Aber jede geht ihren Weg
allein. Alle Ärzte des Ortes kümmerten sich rührend und
umsonst um unsere kleinen Patienten, alle bemühten sich,
uns und damit ihnen zu helfen. Das ganze Dorf wurde zu
einer großen Familie. Das Geld ging uns manchmal aus
und manchmal auch die Geduld mit den
Sprachschwierigkeiten - wir lernten schließlich mit Hilfe
eines großen Marktes, den wir selber aufzogen, Geld für
die Flüge zu verdienen, und selbst russisch haben wir
inzwischen ein bisschen gelernt! Ich lernte meine jungen
Gäste aus Belarus kennen und lieben. Unglaublich schwer
war ihr Leben durch größte Armut und Unsicherheit,
durch Arbeitslosigkeit und Mangel auf allen Gebieten,
durch die grausame Krankheit der Kinder. "Ärzte? Wir
haben keine niedergelassenen Ärzte. Es gibt nur ein
Großklinikum, sehr weit von dem Ort entfernt, wo Du
krank bist. Bei uns geht man zu den `guten Frauen`, schon
immer, sie heilen Menschen und Tiere." Schamaninnen?
Die das aufkommende Christentum "Hexen" nannte?
Welchen Trost bereiteten sie den Verlassenen mit ihren
genauen Kenntnissen von Heilkräutern und
Befindlichkeiten von Mensch und Tier, seid gelobt, "gute
69
15 –ой годовщине Чернобыльской
трагедии
Женщины из нашей верхнебаварской деревни решили
пригласить в Баварию из Белоруссии для оздоровления детей и
их матерей, пострадавших от последствий Чернобыльской
катастрофы.
Сколько же чудесного узнали мы за эти девять прошедших лет,
сколь многому научились! Мы - это одна из более тысячи
подобных инициатив в Германии, которые за это время по
«техническим» причинам в какой-то мере объединились. Но
каждая идёт своим путём сама.
Все местные врачи трогательно и безвозмездно заботились о
наших малениких пациентах, все старались нам и тем самым им
помочь. Вся деревня превратилась в одну большую семью.
Порой были израсходованы все деньги, а порой – и терпение,
связанное с языковыми трудностями. В конце концов мы
научились с помощью большого базара, который сами
организовали, зарабатывать деньги на перелёты и даже
русскому языку мы тем временем научились!
Я познакомилась со своими юными гостями из Белоруссии и
полюбила их. Жизнь их была невероятно тяжела из-за страшной
бедности и неуверенности, из-за безработицы и дефицита во
всём, из-за ужасных болезней детей. «Врачи?» - у нас нет
местных врачей. Имеется только поликлиника, расположенная
очень далеко от наших деревень. Идут у нас к «добрым
женщинам», уже с древних времён, они лечат людей и
животных. Шаманки?, которых возникавшее христианство
называло «ведьмами?» Каким утешением являются они для
беспомощных больных благодаря своим глубоким знаниям о
воздействии целебных трав, о заболеваниях людей и животных.
Хвала вам «добрые женщины»!
Порой матери спрашивали о Боге, как всё это было с Его
Сыном и со всем остальным. Они приходили также на
богослужения, а однажды, в чудесной старой монастырской
церкви , после мессы попросили они старого священника
благословить их и детей. Но ближе всего была им Матерь
Божия. Ежевечерне по собственному желанию ставили они у
домашнего иконостаса к Её ногам зажённую свечу.
70
Frauen"!
Manchmal fragten die Mütter nach Gott, wie sich das alles
verhielte mit seinem Sohn und allem. Sie kamen auch mit
in den Gottesdienst und einmal in der herrlichen alten
Klosterkirche baten sie
nach der Messe den alten Priester, sie und die Kinder zu
segnen. Aber am nächsten stand ihnen die Gottesmutter.
Unaufgefordert entzündeten sie jeden Abend eine Kerze
im Herrgottswinkel zu ihren Füßen.
Im Obstgarten zuckte anfangs manch eine kleine Hand
wehmütig vom Himbeerstrauch zurück: "Schmutzig,
Mama?" Zuhause war alles "schmutzig", das Kinderwort
für "verstrahlt." Und die jungen Frauen gingen glückselig
über die blühenden Wiesen und sammelten zahllose
Kräuter wie die anderen "guten Frauen", um sie zu
trocknen und zuletzt in mit Olivenöl gefüllten Fläschchen
zu streuen. Medikamente für ein langes Jahr! Unverstrahlt!
Einige unserer Kinder haben wir inzwischen verlieren
müssen, aber den anderen geht es gut. Gottseidank. Wir
bleiben, das wissen wir, lebenslang miteinander
verbunden. Bis zum nächsten Jahr, liebe Freunde!
Dosvidanja, bleibt behütet! Ja, für immer.
Ursula von Jordan, Tutzing
Foto
71
Вначале бывало не раз так, что во фруктовом саду отдёрнется
маленькая ручка с грустью от куста малины. «Грязно, мама?»
Дома всё было «грязным». Так ребёнок называл облучённое. А
молодые женщины блаженно бродили по цветущим лугам и
собирали бесчисленные травы – как те другие «добрые
женщины» – чтобы их насушить и затем насыпать в бутылочки
с оливковым маслом. Лекарства на весь долгий год!
Необлучённые!
Некоторых из наших детей пришлось нам за эти годы потерять,
но остальные чувствуют себя хорошо. Слава Богу. Мы
останемся – это мы знаем – пожизненно связанными друг с
другом.
До следующего года, дорогие друзья! До свидания, будьте
хранимы! Да, навсегда.
Урсула фон Йордан, Тутцинг.
Перевод Э. Костюк
72
22. – 28.
26. Donnerstag
April 2001
17. Woche
15 Jahre nach Tschernobyl
Ein Garten der Hoffnung
1996, am 10. Jahrestag der Katastrophe von Tschernobyl versammelten sich
in Minsk etwa 70 Frauen aus ost- und westeuropäischen Ländern auf dem
Gelände der orthodoxen Gemeinde "Allen Trauernden zur Freude".
Eingeladen hatten uns die Frauen der belarussischen Stiftung "Den Kindern
von Tschernobyl".
Das großes Areal, in dem 60 Pflanzlöcher gegraben waren, lag inmitten
riesiger Wohnblöcke neben einer orthodoxen Kirche. Nach einem
gemeinsamen Gebet teilten wir uns in Gruppen zu 4-5 Frauen auf und
pflanzten unsere Bäumchen, Apfel-, Birnen- und Kirschbäume. Jede Gruppe
beging den Akt auf ihre Weise, mit einem Lied, einem Kanon, einem Gebet.
Der orthodoxe Priester ging von Bäumchen zu Bäumchen und segnete die
Pflanzaktion. Danach nahmen wir teil an der Demonstration zum 10. Jahrestag
von Tschernobyl.
Unser Garten der Hoffnung hat für viele Menschen eine große symbolische
Bedeutung, eine Frucht der gegenseitigen ökumenischen Unterstützung und
somit ein lebendiges Zeichen der Hoffnung in einem Land, das in
Hoffnungslosigkeit zu versinken droht. Inzwischen tragen die Bäume die
ersten Früchte. Die Pflege ist sehr schwierig und bedarf der Unterstützung von
außen, damit die Hoffnung nicht enttäuscht wird. Die vielen Mitarbeitenden
der Stiftung "Den Kindern von Tschernobyl" können angesichts dieses
blühenden Lebens wieder Mut fassen für ihre schwere und aufopfernde Arbeit
für die Menschen in ihrem Land.
Beate Junker
Foto
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22 – 28
26. Четверг
Апрель 2001
17 неделя
15 лет со дня Чернобыльской трагедии
Сад Надежды
Приблизительно 70 женщин из стран Восточной и Западной
Европы собрались в 1996 году в 10 Годовщину Чернобыльской
катастрофы на территории православной общины “Всем
скорбящим на радость„ в городе Минске. Их пригласили
белорусские женщины из фонда“Детям Чернобыля „.
Обширная площадка, с 60-ю выкопанными посадочными
лунками была расположена рядом с православной церковью
посреди огромных жилых блоков. После совместной молитвы мы
разделились на группы по 4-5 женщин в каждой и посадили наши
саженцы: яблоньки, вишни, груши. Каждая группа приступала к
посадке по-своему, с песней, каноном, молитвой. Православный
священник шёл от деревца к деревцу и благословлял эту посадку.
Затем мы приняли участие в демонстрации по случаю 10-ой
годовщины Чернобыльской трагедии.
Наш сад Надежды имеет для многих большое символическое
значение. Он – плод взаимной экуминической поддержки и,
следовательно, живое выражение надежды для страны,
положение которой может стать безнадёжным.
Тем временем деревья приносят первые плоды. Ухаживать за
ними очень сложно и на это требуется поддержка со стороны,
чтобы не наступило разочарование.
Глядя на цветущую жизнь многочисленные помощницы и
помощники фонда“Детям Чернобыля „ могут опять черпать
мужество в своей трудной и самоотверженной работе на благо
людей в своей стране.
Беате Юнкер
Перевод Э. Костюк
74
29. – 5.
April / Mai 2001
1. Dienstag
18. Woche
Tag der Arbeit
Es gibt Evangelien, die nicht mehr ins Neue
Testament aufgenommen wurden. Sie
heißen Apokryphen. Viel deutlicher als im
Neuen Testament schlägt sich in ihnen
nieder, dass die Urgemeinde eine
Frauenkirche war. So heißt es im Evangelium nach Maria
(Maria Magdalena):
Da stand Maria auf, begrüßte sie alle und sprach zu ihren
Brüdern: "Weinet nicht, seid nicht traurig und auch nicht
unentschlossen, denn seine Gnade wird mit euch allen sein und
wird euch beschützen. Lasst uns vielmehr seine Größe preisen,
denn er hat uns bereitet und zu Menschen gemacht." Als Maria
das gesagt hatte, wandte sie den Sinn der Jünger zum Guten
und sie begannen, über die Worte des Erlösers zu diskutieren.
75
29 – 5
Апрель / Май 2001
1. Вторник
18 неделя
Международный день
солидарности трудящихся
Cуществуют евангелия, которые не были включены в Новый
Завет. Их называют апокрифами. Значительно отчетливее, чем в
Новом Завете проявляется то, что
первобытная община была
женской церковью.
Так в Евангелии от Марии (Марии Магдалины) говорится:
И вот Мария встала, приветствовала всех и обратилась к
братьям своим: "Не плачьте, не печальтесь и не будьте также
нерешительными, так как Его милость будет со всеми вами и
будет вас охранять. Давайте ещё больше славить величие Его,
так как Он подготовил и нас сделал людьми".
Cказав это,Мария обратила мысли учеников к добру и они
начали обсуждать слова Cпасителя.
Перевод Э. Костюк
76
6. – 12.
Mai 2001
6. Sonntag
Text: Hanna Strack
Melodie: Ludmilla Schmidrina
77
19. Woche
6 – 12
Май 2001
19 неделя
Боже, Пламя Любви,
Ты сердца нам зажги! Боже, Жизни
Во –
- да - жажду нам у - то -ли! Боже, Исти - ны Дух, путь Ты нам
ука –
- жи - ! Боже, Блага Ис - точ - ник, мы То – бо - ю силь ны!
Боже, Пламя Любви, Ты сердца нам зажги!
Боже, Жизни Вода, жажду нам утоли!
Боже, Истины Дух, путь Ты нам укажи!
Боже, Блага Источник, мы Тобою сильны!
Текст Ханны Штрак
Мелодия и перевод Л. Шмидриной
78
13. – 19.
13. Sonntag
Mai 2001
Muttertag
20. Woche
Das andere Gesicht Russlands
Melitta ist über 70 Jahre alt. Doch ihr frisches, faltenloses Gesicht lässt nicht
erahnen, welch schweres Leben hinter ihr liegt. Als Bürger deutscher
Abstammung waren sie und ihr Mann, den sie in der Trud-Armee
kennenlernte, 1941 nach Sibirien und Kasachstan deportiert worden, fort von
ihrer Heimat an der Wolga. Dass sie die Fron unmenschlicher schwerer Arbeit
bei Hunger und Kälte mit ihren beiden Kindern überlebt haben, ist ein
Wunder.
Heute wohnen Melitta und Hermann im Südural. Hier haben sie Wurzeln
geschlagen, denn die evangelische Gemeinde ist ihnen zur Heimat geworden.
Das Paar hat sich nach 52 Ehejahren noch einmal "richtig" trauen lassen.
Die arbeitslose Musiklehrerin Lida in Astrachan kocht in der Suppenküche
der evangelischen Gemeinde für Obdachlose und Gefangene jeden Tag eine
warme Mahlzeit. Das gibt ihrem Leben einen Sinn.
Mathilde war in den Wirren des 2.Weltkrieges zwischen Europa und Sibirien
umhergeschoben, von ihrem Mann verlassen worden. Heute darf sie erleben,
dass ihre jüngste Tochter die evangelische Gemeinde leitet.
Melitta, Lida, Mathilde sind für mich das Abbild des anderen Gesichts
Russlands. Mitten in der erschütternden Wirklichkeit des Alltags und doch
unberührt strahlen sie Zuversicht aus, innere Ruhe, Hoffnung in auswegloser
Zeit, Dankbarkeit für Gottes Hilfe, der ihnen jetzt ein kleines, spätes Glück
beschert. Jeder Tag ist eine Herausforderung für sie, die sie aus der Hoffnung
heraus annehmen, dass der Gott ihrer Babuschkas sie durchtragen wird.
Auf meiner Reise zu evangelischen Gemeinden in Südrussland lernte ich viele
Babuschkas kennen, die allen Verboten zum Trotz ihre Kinder und Enkel das
Beten lehrten, ihnen biblische Geschichten erzählten und die Wurzeln
pflanzten, aus denen die Jungen heute die Kraft schöpfen, um den Alltag zu
bewältigen und die Gemeinden mitzubauen.
Elisabeth Humbser
79
13 – 19
13. Воскресенье
Май 2001
20 неделя
День матери
Другое лицо России
Мелитте больше семидесяти, но по её свежему без морщин лицу не
догадаться, что за тяжёлая жизнь у неё позади. Она и её муж, с которым
она познакомилась в трудармии, были в 1941 г, как лица немецкого
происхождения, депортированы из своего родного места на Волге в
Сибирь и Казахстан. И просто чудо, что она со своими двумя детьми
голодая и замерзая прежили тяготы нечеловечески тяжёлой работы.
Сегодня Мелитта и Герман живут на Южном Урале. Здесь они пустили
корни, ведь евангелическая община стала их родиной. Эта пара после 52
лет супружеской жизни ещё раз по-настоящему венчалась .
В Астрахани безработная преподовательница музыки Лида ежедневно
варит на общественной кухне евангелической общины горячий обед для
бездомных и заключённых. Это придаёт её жизни смысл.
Матильду в смуте второй мировой войны перемещали по Европе и
Сибири, муж оставил её. А сегодня ей дано увидеть, что её младшая дочь
руководит евангелической общиной.
Мелитта, Лида, Матильда являются для меня отображением другого
лица России.
Посреди потрясающей действительности будней – и всё же нетронутые –
излучают эти женщины глубокую уверенность, внутренний покой и
надежду, благодарность Богу за помощь и дарованное им теперь
маленькое позднее счастье. Каждый день для
них – вызов, который они принимают в надежде, что выдержать
поможет им Бог их бабушек.
Во время своей поездки по евангелическим общинам Юга России я
познакомилась со многими бабушками, которые вопреки всем запретам
учили своих детейи внуков молитве и рассказывами им истории из
Библии. От этих корней молодёжь получает сегодня силу, чтобы
справиться с трудностями повседневной жизни и участвовать в
строительстве общин.
Элизабет Гумбзер
Перевод Э. Костюк
80
Die Heilige Xenia von St. Petersburg Närrin in Christo
Die Heilige Xenia in St. Petersburg wird von den orthodoxen Christen dieser Stadt hoch
verehrt. Die Kapelle mit der Begräbnisstätte auf dem Smolensker Friedhof ist ein
Wallfahrtsort, zu dem besonders am 6. Februar, dem Geburtstag und Gedenktag der
heiligen Xenia, eine große Anzahl Pilger strömt, um dort zu beten.
Die Heilige Xenia wurde Anfang des 18. Jahrhunderts in St.Petersburg in einer
wohlhabenden Familie geboren. Mit 18 Jahren heiratete sie den Oberst
Petrow, wurde aber nach wenigen glücklichen Ehejahren Witwe. Nach dem Tod ihres sehr
geliebten Mannes verkaufte Xenia ihr ganzes Vermögen und verteilte das Geld an die
Armen. In Bettlergewand, obdachlos, lief Xenia den ganzen Tag durch die ärmlichen
Gegenden der Stadt. Sie sprach in einfachen, oft unverständlichen Sätzen. Sie wollte sich
keine warmen Kleider und Schuhe schenken lassen und wurde dennoch nie krank. Man
sagte, dass sie nachts auf einem Feld am Rande der Stadt für alle Menschen betete und
sich dabei, ohne zu ermüden, tief in alle vier Himmelsrichtungen verneigte.
Das Volk verehrte Xenia zutiefst und nannte sie ehrfürchtig "Närrin in Christo". Mütter
wollten, dass sie ihre Kinder berührte, Händler baten darum, dass sie von ihnen eine
Kleinigkeit annahm, denn sie waren überzeugt, dass sich dadurch ihre Ware schnell
verkaufen ließe. Der Überlieferung nach hatte Xenia die wunderbare Gabe der
Vorhersehung.
Sie starb Ende des 18. Jahrhunderts. Bald zogen viele Pilger an ihr Grab. Man sagte, dass
die Gebete am Grab der Närrin in Christo den Kranken Heilung bringen, den Arbeitslosen
Brot und den Bekümmerten Frieden. Sie erschien vielen im Traum, warnte vor Gefahren
oder gab einen guten Rat.
Die Geschichte der heiligen Xenia habe ich einmal von einer orthodoxen Christin auf
einer ökumenischen Frauenkonferenz gehört. Sie rief bei vielen Unverständnis hervor:
Wirklich, um welcher Verdienste willen, wird sie eigentlich so sehr von den Orthodoxen
verehrt? Als christliche Glaubenseiferrein hätte sie auch durch die Stiftung eines
Krankenhauses für Arme Achtung erlangen können, und dort den Werken der
Barmherzigkeit dienen können, anstatt als Bettlerin und Gottesnärrin durch die Straßen zu
streifen. Aber man muss versuchen, die Besonderheiten der orthodoxen Religiosität zu
verstehen. Indem sie ihre prächtigen Kleider gegen das Bettlergewand eintauschte,
vollbrachte sie für ihr ganzes Leben ein Werk der christlichen Demut, die von alters her in
Russland einen unangefochten hohen Wert darstellt. Indem Xenia ihr ganzes Vermögen
den Armen schenkte und als obdachlose Bettlerin in Askese und Enthaltsamkeit lebte, hat
sie nach den Geboten Christi gehandelt. Ebenfalls überragende Bedeutung im Bewusstein
der orthodoxen Christen hat das Gebetsleben der Heiligen Xenia von St. Petersburg, die
jede Nacht als Fürsprecherin aller Unglücklichen und Erniedrigten zu Gott betete. Bis zum
heutigen Tag hat der Strom der Pilger zum Grab der Heiligen Xenia nicht nachgelassen.
Im Jahre 1988 wurde Xenia von der orthodoxen Kirche heilig gesprochen.
Tamara Tatsenko
Übersetzt von H. Walter
81
Блаженная Ксения Петербургская, юродивая
во Христе
Имя Святой Ксении Петербургской глубоко почитается православными
христианами города. Часовня с могилой Св. Ксении на Смоленском кладбище
является местом паломничества, особенно велико число молящихся 6 февраля –
в день рождения и памяти Св. Ксении.
Св. Ксения родилась в Санкт-Петербурге в начале 18 века в обеспеченной
семье. В 18 лет она вышла замуж за полковника Петрова, однако после
нескольких лет счастливого супружества овдовела. После смерти горячо
любимого мужа Ксения продала все свое немалое имущество, а деньги раздала
бедным.
Одетая в одежду нищенки, бездомная Ксения целыми днями бродила по бедным
кварталам Санкт-Петербурга. Она говорила простыми, часто непонятными
фразами, откланяла предложения взять в дар теплую одежду и обувь, однако
никогда не болела. Было известно, что по ночам в поле на окраине города она
молилась за всех людей, неустанно кладя низкие поклоны на все четыре
стороны.
Народ называл Ксению юродивой во Христе и глубоко почитал ее. Матери
желали, чтобы она дотронулась до их детей, торговцы просили принять в дар
самую малость, так как были уверены, что вслед за этим их товар быстро будет
распродан. По преданию, Ксения обладала чудесным даром предсказаний.
Она умерла в конце XVIII в.. Вскоре к ее могиле потянулись многочисленные
паломники. Сообщали, что молитвы у могилы юродивой во Христе приносили
исцеление больным, работу безработным, мир тем, кто был в ссоре. Многим она
являлась во сне, предостерегая об опасности или давая верный совет.
Историю св. Ксении я однажды услышала от одной православной христианки на
экуменической женской конференции. У многих она вызвала недоумение. Как
христианская подвижница она могла бы снискать уважение, к примеру, основав
на свои немалые деньги больницу для бедных и служа там делами милосердия
всю жизнь, вместо того, чтобы юродивой нищенкой бродить по улицам.
Надо, однако, постараться понять особенности православной религиозности.
Сменив богатые одежды на рубище нищенки, она всею своею жизнью свершала
подвиг христианского смирения, который издавна очень высоко стоял на Руси.
Ксения поступила по заветам Христа, раздав все имущество бедным и живя
бездомной нищенкой в аскезе и воздержании. Чрезвычайно высоко в сознании
православных христиан стоит и молитвенный подвиг Ксении Петербургской,
еженочно обращавшейся к Богу заступницей за всех обездоленных и
униженных.
По сей день поток паломников к могиле Ксении Петербургской не ослабевает. В
1988 г. она была причислена Русской Православной Церковью к лику Святых.
Тамара Таценко
82
20. – 26.
24. Donnerstag
Mai 2001
21. Woche
Christi Himmelfahrt Christi Himmelfahrt
Gebet aus alten Zeiten
Herr, lass mich in Seelenruhe allem begegnen, was mir der kommende Tag
bringt.
Lass mich Deinem heiligen Willen vollkommen hingeben.
Zu jeder Zeit dieses Tages belehre und unterstütze mich in allem.
Was auch an Nachrichten während des Tages kommt, lehre mich sie mit
Gelassenheit anzunehmen und in fester Überzeugung, dass auf allem Dein
Wille ruhe.
In allen meinen Worten und meinem Handeln leite meine Gedanken und
Sinne. Bei allen unvorhergesehenen Ereignissen lass mich nicht vergessen,
dass alles von Dir gesandt ist.
Lehre mich aufrichtig und klug jedem Mitglied meiner Familie zu begegnen
und dabei niemanden in seiner Ruhe zu stören und niemandem Kummer zu
bereiten.
Herr, gib mir die Kraft, die Mühen des kommenden Tages und alles, was
während des Tages geschieht, auszuhalten.
Leite meinen Willen und lehre mich beten, glauben, hoffen, dulden, vergeben
und lieben. Amen
Gebet der Mönche (Starzy) von Optina Pustyn in Russland
Übersetzt von E. Kostjuk
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20 – 26
24. Четверг
Май 2001
21 неделя
Вознесение Господне Вознесение Господне
84
27. – 2.
Mai /Juni 2001
„Du stellst meine Füße auf weiten Raum“ Ps 31,9
Meine Augen sind niedergeschlagen
traurig
scheu
verängstigt.
Sie sehnen sich danach, frei zu sein:
Du gibst meinen Augen einen weiten Blick.
Meine Hände sind gebunden
tatenlos
handlungsunfähig
müde.
Sie sehnen sich danach, frei zu sein:
Du schenkst meinen Händen eine weite Gebärde.
Meine Füße sind gelähmt
bleischwer
angekettet
verwundet.
Sie sehnen sich danach, frei zu sein:
Du stellst meine Füße auf weiten Raum.
Dein Segen
macht meine Augen lachen
schenkt meinen Händen Heilkraft,
lässt meine Füße tanzen.
Gesegnet und kraftvoll ist nun mein Leben.
Hanna Strack
85
22. Woche
27 – 2
Май / Июнь2001
22 неделя
„Ты поставил мои ноги на пространном месте“ Пс. 30,9
Глаза мои потуплены
печальны
робки
запуганы.
Они жаждут стать свободными:
Ты широко расскрываешь мои глаза.
Руки мои связаны
бездеятельны
усталы
недееспособны.
Они жаждут стать свободными:
Ты даришь моим рукам широкий размах.
Ноги мои обессилены
тяжелы как свинец
скованы
поранены.
Они жаждут стать свободными:
Ты поставил мои ного на просторном месте.
Благословение Твоё
делает глаза мои смеющимися,
дарит рукам моим целительную силу,
пускает ноги мои в пляс.
Благословенна и полна силы теперь моя жизнь.
Ханна Штрак
Перевод Э. Костюк
86
3. – 9.
3. Sonntag
4. Montag
Juni 2001
Pfingstsonntag
Pfingstmontag
23. Woche
Pfingsten+Trinitatis
Feuer Geist, Du Trösterin
Wir sitzen vor dem Feuer und schauen hinein: Flammen
züngeln unruhig nach allen Seiten, von dunkelrot zu bläulichweiß wechseln die Farben. Immer neu zucken die Flammen
empor. Wärme strömt zu uns, wir schützen den Bereich um das
Feuer, damit es nichts vernichtet. Unsere Augen schauen
fasziniert zu, wie es sich wandelt und erneuert, wie es das Holz
verzehrt.
Feuer ist Sinnbild für die Wandlung, denn es verwandelt
Sauerstoff in Wärme. Feuer ist Sinnbild für das Geistige, denn
es ist nicht fassbar, es wirkt aus sich selbst. Wir können Feuer
und Flamme sein, ein feuriges Temperament haben, entflammt
in der Liebe zu einem Menschen, brennend vor Sehnsucht. Wir
feuern an, wir spielen mit dem Feuer, wir gehen für etwas
durchs Feuer. Feuer läutert und reinigt, denn es brennt alles
Unnütze weg. Jetzt verstehen wir, dass das Feuer ein Sinnbild
für den Geist Gottes ist. Aus dem brennenden Dornbusch
offenbart sich Gott: "Ich werde sein, der ich sein werde"
(2.Mose 3,14), und wir ergänzen: auch dann wenn sich vieles
verändert. Deshalb ging auch eine Feuersäule dem wandernden
Gottesvolk durch die Wüste voran (2.Mose 13,21).
Hanna Strack
87
3–9
3. Воскресенье
Июнь2001
23 неделя
Пятидесятница
День Святой Троицы+ Пятидесятница
Мы сидим у огня и смотрим в него: языки пламени
извиваются во все стороны и цвета их меняются от
темно – красных до голубовато - белых оттенков. Они
вздрагивают каждый раз по- новому и устремляются вверх.
К нам текут потоки тепла, мы оберегаем пространство
вокруг огня, чтобы он ничего не уничтожил. Завороженно
следят наши глаза за тем, как меняется и обновляется огонь,
как он пожирает дрова.
Огонь является символом превращения, ведь он преобразует
кислород в теплоту. Огонь – символ духовного, т.к. он
непостижим, он творит сам по себе.
Мы можем быть огнём и пламенем, иметь пламенный
темперамент, в нас может вспыхнуть любовь к человеку,
гореть огонь желаний, Мы распаляемся, играем с огнём,
идем за что- либо сквозь огонь. Огонь облагораживает и
очищает, так как сжигает всё ненужное. Теперь нам
становится понятным, почему огонь является символом Духа
Божьего. В пламени горящего тернового куста явился Бог:
«Я есмь Сущий», (Исх 3,14) и мы добавляем: и тогда, когда
многое меняется. Поэтому –то впереди кочюющего по
пустыне народа шёл Господь ночью «в столпе огненном»
(Исх 13,21)
Ханна Штрак
Перевод Э. Костюк
88
10. – 16.
Juni 2001
10. Sonntag
14. Donnerstag
24. Woche
Trinitatis
Fronleichnam
Fronleichnam
Am Donnerstag nach Trinitatis, dem Dreieinigkeitsfest, feiert die katholische Kirche
Fronleichnam.
Der Name des Festes leitet sich vom althochdeutschen Wort "fro" her, das "Herr" und
"Gott" bedeutet. "Leichnam" bedeutet ursprünglich "Körper" oder "Leib" - später mehr
den toten Körper.
Mit dem Begriff "Fronleichnam" wird die in der katholischen Messe konsekrierte und
geweihte Hostie bezeichnet.
Dieser Donnerstag steht in direkter Verbindung zum Gründonnerstag, an dem in einer
besonderen Feier des Abendmahls Jesu gedacht wird - jenes Passah-Mahles, das Jesus
getreu der jüdischen Tradition mit Jüngerinnen und Jüngern feierte - im Gedenken an
die Befreiung aus der ägyptischen Gefangenschaft.
Die Entstehung des Fronleichnamfestes geht zurück auf das Jahr 1290 und auf die
Augustinerin Juliane von Lüttich. Sie sah in einer Vision den Vollmond und auf ihm
einen dunklen Fleck. Diese dunkle Stelle deutete sie als das bisher fehlende Fest zu
Ehren des in der Eucharistie gegenwärtigen Leibes Christi. So setzte sie sich ein für die
Einführung dieses Festes - mit Erfolg: Im Jahre 1246 wurde es in der Diözese Lüttich
angeordnet und auch gefeiert.
Und es dauerte nicht lange, und Papst Urban IV. machte es im Jahre 1264 für die ganze
Kirche verbindlich. Kein Geringerer als Thomas von Aquin soll die gottesdienstlichen
Texte verfasst haben, die bald Grundlage der Feiern auch in Deutschland wurden.
Im 14. Jahrhundert kam die Prozession dazu, Heiligtümer wurden mitgeführt - vor allem
die Monstranz mit dem "Leib Christi".
Die Reformatoren lehnten diese Fest kategorisch ab, es war "für kein Sakrament zu
halten", so reformatorische Schriften im Jahre 1577. - In Zeiten der Gegenreformation
(besonders in der Zeit des Barock) fielen diese Prozessionen um so demonstrativer und
prunkvoller aus.
So ist diese Fest Fronleichnam bis heute leider ein inner-katholisches Fest geblieben nicht integrierbar in das längst ökumenisch stattfindende Leben vor Ort.
Monika Schaugstatt
89
10 –16
Июнь 2001
10. Воскресенье
14.Четверг
24 неделя
Тринитатис
Праздник Тела Христова
Праздник Тела Христова
В четверг, после праздника Триединства, Тринитатис, празднует
католическая Церковь Fronleichnam.
Название этого праздника происходит от старо-немецкого слова „fro“,
Что значит»Господь» и «Leichnam“- усопшее тело. В католической
Церкви Fronleichnam означает освященную просвиру – гостию.
Этот четверг непосредственно связан с Великим четвергом Страстной
недели, когда на особом богослужении почитается Тайная Вечеря
Иисуса – Пасхальная трапеза, которую Иисус согласно иудейской
традиции праздновал с ученицами и учениками в память об
освобождении из египетского рабства.
Истоки праздника Тела Христова восходят к 1290 году и связаны с
именем Юлианы Лютих, монахини ордена Св. Августина. В одном из
своих видений она увидела на полной луне тёмное пятно, которое
истолковала как недостающий праздник живого в Евхаристии Тела
Господня. Она прилагает все усилия для установления этого праздника и
добивается успеха. В 1246 году этот праздник был введён и
отпразднован в епархии Лютих и уже в 1264 году папа Урбан 1V вводит
его для всей церкви.
Полагают, что никто иной как Фома Аквинский составил богослужебные
тексты, которые легли в основу этого праздника также и в Германии.
В 14 веке праздник Fronleichnam сопровождается процессией со святыми
реликвиями, прежде всего, с дароносицей с Телом Христовым.
Реформаторы категорически отвергли этот праздник. «Его нельзя
принять как таинство» - писали они в 1577 году.
В антиреформаторский период – особенно во времена барокко – эти
процессии проводились ещё более демонстративно и пышно.
Так, к сожалению, праздник Тела Господня и по сей день остался сугубо
католическим праздником, не интегрируемым в давно экуменическую
жизнь на местах.
Моника Шаугштат
Перевод И. Госманн
90
17. – 23.
Juni 2001
25. Woche
Oder welche Frau, die zehn Silbergroschen hat und einen davon
verliert, zündet nicht ein Licht an und kehrt das Haus und sucht
mit Fleiß, bis sie ihn findet? Und wenn sie ihn gefunden hat, ruft
sie ihre Freundinnen und Nachbarinnen und spricht: "Freut euch
mit mir; denn ich habe meinen Silbergroschen gefunden, den ich
verloren hatte!" Lk 15,8+9
Anleitung zum Nacherleben:
Wenn Sie mit einer Gruppe dieses Gleichnis gelesen haben, dann
verteilen Sie die Rollen, so dass jede Frau sagen kann: Ich bin die
Frau, das Licht, der Groschen, der Besen usw. Nun lesen Sie den
Text noch einmal vor, und zwar sehr langsam, damit jede Frau
von ihrer Rolle aus das Ereignis erleben kann. Dann berichtet
jede Frau, was sie erfahren hat, z.B. sagt der Groschen: Ich habe
gespürt, wie wichtig ich bin. Alle sollen dabei darauf achten, dass
sie nur erzählen, was sie selbst erlebt haben und nicht, was sie
meinen, dass die andere sollte erfahren haben. Ein solches
Nacherleben kann mehrere Stunden und Tage dauern, aber schon
diese einfache Form macht die Bibel plötzlich lebendig.
Hanna Strack
91
17 – 23
Июнь 2001
25 неделя
"Или какая женщина, имеющая 10 драхм, если потеряет одну
драхму, не зажжет свечи и не станет мести комнату и искать
тщательно, пока не найдет? А нашедши созовет подруг и
соседок и скажет: порадуйтесь со мною, я нашла потерянную
драхму"
Лк 15, 8-9
Руководство к сопереживанию текста:
После того, как Вы прочли в группе текст этой притчи,
распределите роли: женщины, света, драхмы,
метлы и т.д. Теперь прочтите текст еще раз и к тому же очень
медленно, чтобы каждая женщина могла вжиться в свою роль.
Затем каждая женщина расскажет о своем опыте. Драхма,
например, может сказать: я поняла, сколь я важна. Все должны
следить за тем, что они рассказывают только то, что пережили
лично, а не то, что по их представлениям, узнали другие.
Подобное сопереживание текста может длиться много часов и
дней, и уже такой простой способ неожиданно делает Библию
живой.
Ханна Штрак
Перевод Т. Таценко
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Sofia Gubaidulina, eine Mystikerin der Musik
Diese moderne Komponistin, die heute in der Nähe von Hamburg lebt, hat
einen langen äußeren und einen tiefen inneren Weg hinter sich. Beginnen wir
beim äußeren Weg:
Sofia ist als Kind eines Tataren und einer Russin geboren. Der Großvater war
islamischer Mullah. Trotz der Hungerjahre haben die Eltern dem begabten
Kind einen Flügel gekauft und es ausbilden lassen. Ihr Weg führte sie nach
Kasan und Moskau zum Konservatorium, sie verdiente sich Geld mit
Filmmusiken. 1974 gewinnt sie in Rom den ersten Preis im
Kompositionswettbewerb für ihre Sinfonie "Stufen". Für den großen Geiger
Gidon Kremer komponiert sie in Wien das Violinkonzert "Offertium". 1992
siedelt sie von Moskau um in das kleine Dorf Appen im Kreis Pinneberg bei
Hamburg.
Der innere Weg der Komponistin ist nicht weniger erstaunlich: Als das
atheistisch erzogene junge Mädchen zum ersten Mal eine Christusikone sieht,
öffnet sich ihr die religiöse Welt. "Weil ich noch unerfahren war, habe ich
alles meinen Eltern erzählt. Und als die begriffen haben, dass ich religiös war,
haben sie einen riesigen Schrecken bekommen. Das war doch verboten. So
habe ich also meine psychologisch religiöse Erfahrung vor den Erwachsenen
verborgen, aber sie lebte in mir weiter. Und die Musik hat sich auf natürliche
Weise mit Religion verbunden, der Klang wurde für mich zu etwas
Sakralem."
Ihre eigentliche künstlerische Geburt erlebt sie 34 jährig. Sie macht eine
radikale Kehrtwendung zur inneren Welt. In ihren Kompositionen verzichtet
sie nun auf äußere Effekte. "Die erste ist die innere Welt und die zweite die
äussere Welt, die durch die innere geht", sagte die russische Dichterin Marina
Zwetajea, die Sofia Gubaidulina sehr verehrt. Diese Worte beschreiben auch,
wie Sofia Gubaidulina jetzt komponiert: Sie hält die Verbindung zur inneren
Welt, zum Ewigen: "Zuerst höre ich in mir das Ende des Werkes. Ein
phantastischer Zustand, sehr faszinierend und unfassbar. Dieser Klang zwingt
mich, weiterzuarbeiten. Ich muss ihn enträtseln und eine Form dafür schaffen.
Und das ist wirklich Arbeit." Sie komponiert, um Erde und Himmel zu
verbinden, um die Wahrheit zu finden..
Und in den letzten Jahren ändert sich noch einmal ihr Weg. Sie spürt, wie sich
unser ganzes Leben in Deutschland vom Religiösen zu Profanen hinwendet.
"Jetzt wo alles erlaubt ist, ziehe ich mich mit meiner Beziehung zur Religion
zurück. Ich habe aufgehört, mich über diese Themen zu unterhalten. Damit es
mein Geheimnis bleibe. Und ich habe aufgehört, meinen Werken religiöse
Titel zu geben."
Für das Bach-Jahr 2000 hat Sofia Gubaidulina dennoch den Auftrag
angenommen, eine Johannespassion zu komponieren.
Hanna Strack
93
Cофья Губайдуллина - мистик в музыке
Софья Губайдуллина – современный композитор, сейчас она живет
неподалеку от Гамбурга. За ее плечами длинный внешний и глубокий
внутренний жизненный путью Начнем с внешнего: Софья родилась в
семье, где отец был татарином, а мать – русской. Дед Софьи был
мусульманским муллой. Несмотря на голодные годы, родители смогли
купить способной дочери рояль и отдать ее учиться музыке. Ее путь
привел ее в консерватории Казани и Москвы, на жизнь она зарабатывала
сочинением музыки к кинофильмам. В 1974 г. на конкурсе композиторов
в Риме она получает первое место за свою симфонию «Ступени». Для
знаменитого скрипача Гвидона Кремера она сочиняет в Вене
скрипичный концерт «Offertium». В 1992 году С. Губайдуллина
переселяется из Москвы в маленькую деревушку Аппен в округе
Пиннеберг под Гамбургом.
Внутренний путь композитора не менее удивителен: когда атеистически
воспитанная молодая девушка впервые видит икону, для нее внезапно
открывается религиозный мир. «Будучи еще неопытной, я все рассказала
моим родителям. И когда они поняли, что я стала верующей, они
страшно испугались, ведь это было запрещено. Поэтому я скрыла от
взрослых мои первые психологические религиозные переживания, но
они продолжали жить во мне. Музыка же естественным образом
соединилась с религией, звук приобрел для меня сакральный характер.»
Настоящее рождение как художник она пережила в 34 года. Тогда она
бесповоротно уходит в свой внутренний мир. В своих сочинениях она
отказывается от любых внешних эффектов. Марине Цветаевой, которую
очень почитает Софья Губайдуллина, принадлежит мысль о том, что
внутренний мир первичен по отношению к внешнему и определяет
последний. Эти слова отражают и то, как Софья Губайдуллина сейчас
сочиняет музыку. Для нее важнее постоянная связь с внутренним миром,
с вечностью: «Сначала я слышу в себе конец произведения. Это
фантастическое состояние, потрясающее и непередаваемое. Эти звуки
заставляют меня работать дальше. Я должна разгадать их и
создать форму для них. И это действительно работа». Она сочиняет,
чтобы соединить землю и небо, чтобы постичь истину.
В последние годы ее путь снова меняется. Она понимает, как вся наша
жизнь в Германии отворачивается от религиозности к светскому.
«Сейчас, когда все позволено, я прячу свою религиозность и больше не
говорю на религиозные темы. Это остается моей тайной. Я перестала
давать своим сочинениям религиозные названия».
И все же Софья Губайдуллина приняла заказ на сочинение Страстей по
Иоанну для юбилейного года Баха – 2000.
Ханна Штрак
Перевод Т. Таценко
94
24. – 30.
Juni 2001
26. Woche
1.
Bewahre uns, Gott, behüte uns Gott sei, sei mit uns auf
unsern Wegen. Sei Quelle und Brot in Wüsten Not, sei
um uns mit deinem Segen. Sei Quelle und Brot in Wüsten
Not, sei um uns mit deinem Segen.
2. Bewahre uns, Gott, behüte uns, Gott, sei mit uns in
allem Leiden. Voll Wärme und Licht im Angesicht, sei
nahe in schweren Zeiten. Voll Wärme und Licht im
Angesicht, sei nahe in schweren Zeiten.
3. Bewahre uns, Gott, behüte uns, Gott, sei mit uns vor
allem Bösen. Sei Hilfe, sei Kraft, die Frieden schafft, sei
in uns, uns zu erlösen. Sei Hilfe, sei Kraft, die Frieden
schafft, sei in uns, uns zu erlösen.
4. Bewahre uns, Gott, behüte uns, Gott, sei mit uns durch
deinen Segen. Dein Heiliger Geist, der Leben verheißt, sei
um uns auf unsern Wegen, dein Heiliger Geist, der Leben
verheißt, sei um uns auf unsern Wegen.
Aus dem Gesangbuch, Text von E. Eckert
95
24 – 30
Июнь 2001
Будь с нами, Господь,
Спаси, сохрани,
На всех путях и дорогах
Ты хлеб и вода, в пустыне еда,
Отрада во всех тревогах.
Ты хлеб и вода, в пустыне еда,
Отрада во всех тревогах.
Будь с нами, Господь,
Спаси, сохрани,
Будь рядом, когда нам больно.
И в трудные дни, мы дети Твои,
Любви Твоей нам довольно.
И в трудные дни, мы дети Твои,
Любви Твоей нам довольно.
Будь с нами, Господь,
Спаси, сохрани,
Когда зло нас обступает,
Дай силы простить и полюбить,
Любовь нас освобождает.
Дай силы простить и полюбить,
Любовь нас освобождает.
Будь с нами, Господь,
Спаси, сохрани,
Своё дай благословенье,
Твой дух будет в нас защита и спас,
Тебе воздаём моленье.
Твой дух будет в нас защита и спас,
Тебе воздаём моленье.
Из сборника песнопений
Текст Е. Экерт Перевод О.Шульц
96
26 неделя
1. – 7.
Juli 2001
27. Woche
Eine bessere Zukunft in Deutschland?
Glauben Sie nicht alles, was man Ihnen verspricht!
Vielleicht haben Sie Glück und finden einen gutbezahlten, normalen Job. Aber
das ist unwahrscheinlich. Die Arbeitslosigkeit in Deutschland ist hoch.
Aufenthalts- und Arbeitserlaubnis werden nur noch in wenigen Ausnahmefällen
erteilt.
Ein Touristenvisum ist keine Arbeitserlaubnis!
Für Ausländerrinnen und Ausländer ist es kaum noch möglich, legal
in Westeuropa zu arbeiten.
Tausende von Mädchen und Frauen aus Osteuropa haben ihren Traum vom
„goldenen" Westen bitter bezahlen müssen. Heiratsvermittler versprechen einen
deutschen Ehemann, Jobagenturen und Stellenanzeigen bieten seriöse Arbeit
als Kellnerin, Verkäuferin, Tänzerin, Fotomodell oder Barfrau an - und in
Wirklichkeit suchen sie neue Mädchen und Frauen für deutsche Bordelle.
Kriminelle Banden kaufen und verkaufen Frauen wie Handelsware. Wenn sich
die Frauen wehren, kann es ihnen passieren, dass sie geprügelt und
vergewaltigt, ausgehungert und eingesperrt werden.
Seien Sie misstrauisch - selbst wenn Sie die Menschen, die Ihnen einen
Deutschland-Aufenthalt vermitteln wollen, für vertrauenswürdig halten!
Geben Sie unter keinen Umständen Ihren Reisepass aus der Hand! Ihre
Papiere gehören Ihnen! Nur Polizei und Behörden haben das Recht, Ihren
Reisepass einzusehen. Hinterlassen Sie bei Ihrer Familie eine Fotokopie Ihres
Passes. Eine weitere Kopie sollten Sie möglichst mit sich führen.
Beratungsstellen:
Solwodi, Postfach 3741, 55027 Mainz, Tel. 06131 / 678069 Beratung in russischer
Sprache: 06741 7 93017
Zapo, Anlaufstelle für Pendlerinnen aus Osteuropa, Oranienstr. 34, 10999 Berlin, Tel.
030 / 6150909
97
1–7
Июль 2001
27 неделя
Лучшее будушее в Германии?
Не будьте легковерными и не берите на веру все, что Вам обещают!
Может быть, Вам действительно повезет, и Вы найдете нормальную,
хорошо оплачиваемую работу. Но Вы должны знать: это маловероятно.
Безработица в Германии высока, а разрешение на пребывание в стране и
работу можно получить только в исключительных случаях. Туристическая
виза ни в коем случае не означает разрешение на работу!
Вероятность получить легальную работу иностранцам в Западной
Европе мизерна.
Тысячам девушек и женщин из Восточной Европы пришлось очень дорого
заплатить за свою мечту о «золотой» жизни на Западе. Посреднические
брачные конторы обещают подыскать мужа в Германии, агентства по найму
на работу и объявления предлагают серьезную работу в качестве
кельнерши, продавщицы, танцовщицы, фотомодели или барменши. В
действительности же они ищут новых девушек и женщин для немецких
борделей. Криминальные банды покупают и продают женщин как товар.
Если женщины защищаются, случается, что их бьют, насилуют, подвергают
голоду и сиденью взаперти.
Сохраняйте долю здорового скептицизма, даже если Вы считаете
полностью заслуживающими доверия людей, которые хотят устроить
Вам пребывание в Германии!
Постарайтесь ни при каких обстоятельствах не выпускать из рук и не
отдавать Ваш загранпаспорт! Ваши документы принадлежат только Вам!
Только полиция и государственные службы имеют право требовать
предъявить Ваш паспорт. На всякий случай оставьте дома в Вашей семье
фотокопию Вашего паспорта. Другую фотокопию паспорта имейте при себе.
Адреса и телефоны консультационных пунктов :
St.Petersburg Psyhological Crisic Centr for Women( Кризисный
психологический Центр для женщин в Ст-Петербурге): (007 812) 327 30 00
„Aleksandra“ Legal Aid Society for Domestic Violence and Sexual Assault
Cases (Служба социально-юридический помощи пострадавшим от насилия
“Александра“): (007 812) 164 70 43.
98
8.– 14.
Juli 2001
Der gute Hirte
Psalm 23
Der HERR ist mein Hirte,
mir wird nichts mangeln.
Er weidet mich auf einer grünen Aue
und führet mich zum frischen Wasser.
Er erquicket meine Seele.
Er führet mich auf rechter Straße
um seines Namens willen.
Und ob ich schon wanderte im finstern Tal,
fürchte ich kein Unglück;
denn du bist bei mir,
dein Stecken und Stab trösten mich.
Du bereitest vor mir einen Tisch
im Angesicht meiner Feinde.
Du salbest mein Haupt mit Öl
und schenkest mir voll ein.
Gutes und Barmherzigkeit werden mir
folgen mein Leben lang,
und ich werde bleiben im
Hause des HERRN immerdar.
99
28. Woche
8 – 14
7. Суббота
12.Четверг
Июль 2001
28 неделя
Рождество Иоанна Предтечи
святых первоверховных
апостолов Петра и Павла
Добрый Пастырь
Псалом 22
Господь – Пастырь мой; я ни в
чем не буду нуждаться:
Он покоит меня на злачных пажитях
и водит меня к водам тихим,
Подкрепляет душу мою, направляет
меня на стези правды ради имени Своего.
Если я пойду и длиною смертной тени,
не убоюсь зла, потому что Ты со мной;
Твой жезл и Твой посох – они успокаивают меня.
Ты приготовил предо мною трапезу в
виду врагов моих; умастил елеем голову мою;
чаша моя преисполнена.
Так, благость и милость сопровождают
меня во все дни жизни моей,
и я пребуду в доме Господнем многие дни.
100
15. – 21.
Juli 2001
29. Woche
Auf der 2. Generalsynode in St.Petersburg
Im Mai 1999 kamen in St. Petersburg 84 Vertreterinnen und Vertreter
aus allen Teilen der "Ev.-Luth. Kirche Rußlands und anderer Staaten"
(ELKRAS) zusammen, um über gemeinsame Anliegen zu beraten. Bei
dieser Generalsynode sprachen auch viele Gäste aus anderen Kirchen
und anderen Ländern Grußworte.
"Der Bote" fragte Lilja Falalejewa aus Ishewsk in Udmurtien,
Kantorin und Mitglied im Gemeinderat: "Welche Bedeutung hat für
Sie die Generalsynode, mit welchen Hoffnungen und Fragen sind Sie
hierher gekommen?"
Und dies ist ihre Antwort:
"Auf der Synode bin ich zum ersten Mal, und das ist ein großes Glück.
Ich wollte über die Arbeit und den Dienst der Kirchen aus den anderen
Gegenden erfahren. Um vergleichen und analysieren zu können, um
Erfahrung zu bekommen, und um sich einfach mit den Leuten zu
unterhalten, die das gleiche tun wie wir. Und dann auch einfach, um
zu erfahren, wer sind denn diese Pröpste und Bischöfe.
Und dann hatte ich auch noch ein kleineres Ziel, aber eben doch ein
Ziel, unsere Kirche kennenzulernen und unsere Jugend. In der
Jugendarbeit haben wir sehr viel erreicht. Auf der Synode hat jemand
erzählt, dass es in ihrer Gemeinde 30% junge Leute gibt. Bei uns sind
es 50-60% - und das ist eine riesige Freude und unser Stolz. Ich habe
Fotos und Audiokassetten mit Mitschnitten der Musik und Lieder
mitgebracht, die bei uns in der Kirche gesungen und sogar komponiert
werden."
„Der Bote“ №3/99
101
15 – 21
Июль 2001
29 неделя
На 2 Генеральном синоде в городе
Санкт-Петербурге
В мае 1999 года собрались на 2 Генеральном синоде
Евангелическо-Лютеранской Церкви России и других
государств (ЕЛЦ), в городе Санкт-Петербурге, собрались
84 представительницы и представителя ЕЛЦ, чтобы сообща
обсудить актуальные вопросы. С приветственным словом
выступили гости из других церквей и стран. Журнал“Вестник„
обратился к Л. Фалалеевой, члену духовного совета общины по
вопросам молодёжи, регенту из города Ижевска в Удмуртии с
вопросом: „Что для Вас означает Генеральный cинод,с какими
надеждами и вопросами Вы приехали сюда?“
Вот её ответ:
- На синоде я впервые и это большое счастье.
Хотелось узнать о результатах работы и служения
церквей в других регионах. Для того, чтобы иметь
возможность сравнивать и анализировать, для того,
чтобы набраться опыта, и просто пообщаться с
людьми, занимающимися тем же, что и мы. И потом
просто узнать кто такие пробсты, епископы. И потом
у меня была небольшая, но всё же цель -познакомить
с нашей церковью, с нашей молодежью. В работе с
молодежью мы добились очень многого. На синоде
кто-то рассказывал что у них 30% молодежи в
составе общины. У нас 50-60% - и это огромная
радость и гордость. Я привезла фотографии и
аудиокассету с записью музыки и песен, которые
поются и даже сочиняются у нас в церкви.
«Вестник» №3/99
102
Die Heilige Nino, "Apostel und Evangelist" in Georgien
In der Zeit der Alten Kirche war die Heilige Nino als Missionarin der
Georgier im ganzen christlichen Erdenkreis bekannt.
Als kleines Kind zieht sie mit ihren Eltern nach Jerusalem. Nino wird
Schülerin einer Frau aus Dvin in Armenien, die eine "Miapora" oder
"Bibellehrerin" war. Als diese Frau Nino für ausgelernt und fähig zur
Verkündigung des Evangeliums erklärt, lässt Nino sich wie ihr Vater vom
Patriarchen einsegnen. Sie schließt sich einer Gruppe von "Jungfrauen" an,
wie Frauen damals genannt wurden, die ehelos und asketisch leben wollten,
um Zeugnis für Christus in Wort und Lebenswandel abzulegen.
Sie zieht mit ihnen von Palästina gen Norden nach Armenien. Dort fallen alle
den Christenverfolgungen zum Opfer außer Nino. Sie zieht nun ganz allein
über die Berge des Transkaukasus zu den Georgiern - voll Angst vor dem
fremden Land, der fremden Sprache, aber von Christus in Visionen gestärkt.
Sie beginnt ihre Kontakte im neuen Land über die jüdische Diaspora in der
georgischen Hauptstadt Mzcheta (nahe der heutigen Hauptstadt Tbilissi), lebt
aber dann als arme landfremde Asketin draußen vor der Stadt im
Dornengebüsch von Brombeersträuchern. Unter Anrufung Christi heilt sie das
Kind einer einheimischen Frau, dann die kranke Königin und wird nun von ihr
eingeladen, dem König Mirian selbst in seinem Palast den christlichen
Glauben zu predigen. Dieser ist beeindruckt, will aber seine Götter nicht
verlassen. Erst bei einem intensiven Schreckerlebnis während der totalen
Sonnenfinsternis auf einer Jagd ruft er Christus an. Da wird die Sonne wieder
hell und er findet heim. Er lässt Nino über sich beten und wird Christ.
Nino unterweist nun den ganzen Königshof und viele Georgier. Sie lehrt die
Menschen beten, Kreuzzeichen aufstellen und Kirchen bauen, unterstützt
durch Wundertaten Gottes. Das Königspaar und viele Gefolgsleute wurden
"unter ihrer Hand" getauft. Der König bittet in Konstantinopel um einen
Bischof und einige Priester, damit auch das Heilige Abendmahl in Georgien
gefeiert werden könne. Nino zieht, beschützt von einem Herzog und seinen
Truppen zu Stämmen, in den Bergen und Tälern Ost-Kachetiens, der heutigen
Grenze zu Aserbeidschan, um ihnen die Frohe Botschaft zu verkünden. Die
Orte, wo sie gewirkt hat, z.B. Ninotzminda (= St.Nino) und Bodbe, wo sie
beerdigt liegt, werden noch heute verehrt, ebenso wie ihr Pilger- und PredigtKreuz in der Patriarchen-Kathedrale in Tbilissi. Nino kam ca 324 n.Chr. nach
Georgien und ist ca 337 gestorben.
Wir erleben mit ihr mit, wie der christliche Glaube unter Frauen und durch
Frauen verbreitet wurde. Nino sollte wie in alter Zeit wieder eine Heilige der
ganzen Ökumene werden, auch zur Ehre vieler ungenannter und vergessener
christlicher Frauen der alten Zeit, die sich als Dienerinnen der Kirche und
Lehrerinnen des Evangeliums und eines christlichen Lebenswandels gemüht
haben.
Fairy von Lilienfeld
103
Святая Нино - «Апостол и Евангелист» Грузии.
Во времена старой Церкви, Святая Нино как миссионер в Грузии, была
известна всему христианскому миру.
Маленьким ребёнком вместе со своими родителями переселяется она в
Иерусалим. Нино становится ученицей женщины из Двина(в Армении), которая
была мирафорой или преподовательницей Библии. Как только,
преподовательница объявляет Нино обученной и способной для проповедования
Евангелия, Нино как и её отец получает благословение Патриарха. Она вступает в
группу «Девы», так раньше называли незамужних женщин, которые по
собственому желанию вели аскетический образ жизни, дабы словом и образом
жизни доказать свою приверженность Христу. Она отправляется с ними из
Палестины на север Армении. Там все они кроме Нино пали жертвами
преследователей христианства. Оставшись одна, Нино перебирается через горы
Закавказья в Грузию, полная страха перед незнакомой страной, чужим языком, но
поддерживаемая верой в Христа.
Она налаживает свои контакты в новой стране через еврейскую диаспору в
грузинской столице Мцхета, расположенной недалеко от сегодняшней столицы
Тбилиси. Живёт бедная чужестранка как аскет, за чертой города в колючем
кустарнике ежевики. Руководимая Христом, исцеляет она ребёнка одной местной
женщины, затем больную королеву и получает от неё приглашение к самому
королю Грузии Мириану, чтобы в его дворце проповедовать христианскую веру.
Он глубоко взволнован, однако, отказаться от своих богов не хочет. Сильно
испугавшись во время солнечного затмения он впервые воззвал к Христу. Солнце
вновь просветлело и он нашёл дорогу домой. Он просит Нино молиться о нём и
становится христианиноим. С этих пор Нино наставляет весь королевский двор и
население Грузии. Поддерживаемая чудесными делами Господа, учит она людей
молиться, креститься и строить церкви. Её рукой крещены королевская пара и
многие приближённые. Король просит Константинополь прислать ему епископа и
проповедника для возможности празднования Святого Причастия.
Нино отправляется под защитой герцога и его войск к племенам в горы и долины
восточной Кахетии, сегодняшней границе с Азербайджаном, с тем чтобы
возвестить радостную весть. Места где она творила, например, Ниномцминда и
Бодбе, где она погребена, до сих пор почитаемы как и её Крест паломницы и
проповедницы в Патриарше -Кафедральной церкви в Тбилиси.
Нино пришла в Грузию около 324 года нашего времени и около 337 года умерла.
Благодаря ей мы узнаём как христианская вера была распространена среди
женщинами и женщин. Нино, как и в прежние времена, должна стать почитаемой
Святой всей экумены. Это будет данью уважения ко всем неизвестным и забытым
христианкам - служительницам церкви и преподовательницам Евангелия.
Фейри фон Лилиенфельд
Перевод В. Бачакашвили
104
22. – 28.
Juli 2001
Guter Gott!
Ich danke dir,
dass ich wie ein Hubschrauber bin,
der herumfliegen kann.
Ich danke dir,
dass ich wie ein Kaktus bin:
manchmal bin ich etwas stachelig,
aber es steckt viel in mir drin.
Ich danke dir,
dass ich wie ein Marienkäfer bin:
gesprenkelt und ich verstecke mich gern,
aber ich kann gut fliegen und springen.
Ich danke dir,
dass ich wie eine Schnecke bin:
erste ringle ich mich zusammen
und dann strecke ich mich aus,
und ich bin immer unterwegs.
Guter Gott,
ich danke dir
für jeden Tag!
Amen
Gesine, Hans und Richard
105
30. Woche
22 – 28
Июль 2001
Добрый Боже!
Я благодарю Тебя,
что я как вертолётик,
который может повсюду летать.
Я благодарю Тебя,
что я как кактус:
иногда колюч немного,
но зато во мне всего много.
Я благодарю тебя,
что я как божья коровка:
в крапинках и люблю спрятаться,
но могу хорошо летать и прыгать.
Я благодарю тебя,
что я как улиточка:
сначала сворачиваюсь, а затем выпрямляюсь
и постоянно нахожусь в пути.
Добрый Боже,
спасибо Тебе
за каждый день!
Аминь
Гизела, Ганс и Рихард
Перевод Э. Костюк
106
30 неделя
29. – 4.
Juli / August 2001
31. Woche
Gebet einer Pilgerin,
das sie in einer Kirche spricht.
Gott, diese Kerze, die ich hier anzünde, soll ein Licht sein,
durch das Du mich erleuchtest in meinen Schwierigkeiten
und in meinen Entscheidungen auf meinem Weg!
Es soll ein Feuer sein, durch das Du in mir allen Stolz,
allen Egoismus und alle Unchristlichkeit verbrennst,
eine Leuchte, durch die Du mein Herz erwärmst und mich
lieben lehrst!
Gott, ich kann nicht lange in Deiner Kirche weilen. Aber
mit dem Brennenlassen dieses Lichtes soll ein Stück von
mir selber, das ich Dir schenken möchte, bleiben.
Hilf mir, mein Gebet im Tun und in der Arbeit dieses
Tages fortzusetzen.
Amen
107
29 – 4
Июль/ Август 2001
31 неделя
Молитва паломницы, которую она произнесла в
церкви
Господь, эта свеча, которую я здесь зажигаю, должна
стать тем светом, которым ты освещаешь мою дорогу
и помогаешь мне в моих трудностях и решениях!
Она должна стать огнём, который сожжёт во мне всю
гордыню, весь эгоизм и всё нехристианское во мне,
стать источником света, которым Ты согреваешь моё
сердце и учишь меня любить.
Господь, я не могу долго оставаться в Твоей церкви.
Но пусть с оставляемой здесь горящей свечей
остаётся часть меня самой, которую я хотела бы Тебе
подарить.
Помоги мне, Господи, эту мою молитву претворить в
делах и в работе этого дня.
Аминь
Перевод Э.Костюк
108
5. – 11.
August 2001
32. Woche
Steh auf Frau
Aus dem Urchaos ruft dich die ruach:
Erheb dich aus der Erde
füll dich aus dem Licht der Sonne
lass dich tragen von der Kraft des Wassers
schwinge im Wirbel der Luft.
Sieben Tage brauchst du, dich aufzurichten
nun öffnest du den Kokon deiner Reifung
immer kraftvoller wird deine Gestalt
du sprengst die Enge deines Schneckenhauses
und öffnest dich dem Leben
die Kraft der ruach hat dich aufgerichtet
du glaubst an dich und fürchtest dich nicht:
Du hast Leben in Fülle.
Monika Niemann
Ruach ist in der hebräischen Sprache das Wort für "Geist" und das ist
weiblich!
109
5 – 11
Август 2001
32 неделя
Symbol WGT
Женщина, встань
из пра-хаоса взывает к тебе Дух Божий:
поднимись из земли
наполнись светом солнца
дай силе вод нести себя
и взлети в воздушном потоке.
Семь дней тебе нужно, чтобы выпрямиться
и вот раскрыла ты кокон своего созревания
всё крепче становится твоё тело
ты взламываешь тесноту своей раковины
и открываешься жизни
тебя подняла сила Духа Божьего
ты веришь в себя
и не страшишься:
ты владеешь всей полнотой жизни.
Моника Ниманн
Перевод Э.Костюк
110
12. – 18.
August 2001
15. Sonntag
33. Woche
Mariä Himmelfahrt
Wenn Erwachsene einen Konflikt austragen, dann erleben viele
Kinder das als Katastrophe.
Eine Konfirmandin schreibt dieses Gebet in ihr Tagebuch:
Freitag, 21. Oktober
Ich bin traurig, Gott, ganz arg traurig,
und ich muss ganz oft weinen.
Du weißt ja vielleicht besser, was eigentlich los ist,
aber ich glaube, dass meine Eltern sich scheiden lassen wollen.
Ich weiß nicht, was ich dann machen soll,
und sie reden ja nicht mit mir.
Gott, kannst Du mich nicht in die Arme nehmen
und mit mir weinen?
Amen
111
12 – 18
15. Воскресенье
Август 2001
33 неделя
Вознесение Пресвятой Богородицы
Когда взрослые разрешают между собой конфликтную ситуацию,
многие дети перживают это как катастрофу.
Одна конфирмандка записала в своём дневнике такую молитву:
Пятница, 21 октября
Мне тяжело, Господи, я очень опечалена
и очень часто должна плакать.
Тебе, наверное, лучше известно, что происходит,
но я думаю, что мои родители хотят развестись.
Я не знаю, что я тогда должна делать, ведь они со мной не
говорят.
Господи, мог бы ты меня обнять и со мной поплакать. Аминь
Перевод Э. Костюк
112
19. – 25.
August 2001
19. Sonntag
Verklärung des Herrn
34. Woche
Glaubensbekenntnis
Ich glaube an dich, Gott
du bist die Quelle allen Lebens.
Du sorgst dich um uns.
Von der Geburt bis über den Tod hinaus
bleibst du unser Halt.
Ich glaube an dich, Christus,
du bist das Brot des Lebens.
Du bringst uns Gott ganz menschlich nah.
In guten und in schweren Zeiten
stellst du uns Gottes Gerechtigkeit und Frieden vor Augen.
Ich glaube an dich, Geist Gottes;
du bist der Atem unseres Lebens.
Du lockst uns über unsere Grenzen hinaus.
Gegen Ohnmacht und Mutlosigkeit
leihst du unserer Kraft deine Flügel.
Hanne Köhler
113
19. – 25
Август 2001
19. Воскресенье
34 неделя
Преображение Господне
Вероисповедание
Верую в Тебя, Боже,
Ты - есть источник всего живого.
Ты печешься о нас.
От рождения и до смерти
Остаешься Ты нашей опорой.
Верую в Тебя, Христос,
Ты - хлеб жизни.
Бога Ты делаешь нам
по-человечески близким.
И в добрые и в злые времена
Ты олицетворяешь для нас
мир Божий и праведность Божию.
Верую в Тебя, Дух Божий,
Ты - есть дыхание жизни нашей.
Ты увлекаешь нас за пределы наших возможностей.
Вопреки бессилию и малодушию
даруешь Ты крылья нашим силам.
Ханнa Келер
Превод Т.Таценко
114
Das große Dorf Norka an der Wolga
Ein Bericht von Edith Müthel,
Tochter von Anna Friederike Pfeiffer und Emil Pfeiffer, Pastor in Norka
Es trennen mich schon mehr als sechzig Jahre von meiner frühen Kindheit, aber es sind
in meinem Herzen Erinnerungen geblieben: die schweren Jahre der Verbannung in
Sibirien, der Verlust der Eltern, die schrecklichen Jahre meiner Geschwister in der
Arbeitsarmee. Mein Bruder in den Kohlengruben, meine Schwestern bei der Fischerei
im Obstrom, beim Holzfällen in der Taiga im Ural. Das alles ist eng verbunden mit all
dem Guten und Schönen, das ein Kinderherz bewegen kann, mit all dem Unglück und
Schmerz der Familie und deren Umgebung in den Jahren 1925-1932.
Norka war ein großes Dorf, in dem die deutsche Tradition, besonders die Religion, stark
ausgedrückt war, das einen ganz eigenen Dialekt sprach. Ich sehe vor meinen Augen
den Wolgastrom, die schönen Ufer, steil und grün. So habe ich sie 1925 als kaum
Sechsjährige im Gedächtnis behalten.
Im Herbst 1927 wurde mein Vater Pastor des Kirchspiels Norka, Huck und Beideck.
Unsere Ankunft hat sich mir eingeprägt: Unsere Fuhre zog durch das lange Dorf und
bog dann in ein geöffnetes Tor in einen mit Menschen vollen Hof. Wir hörten Gesang
und sahen viele Blumensträuße, die auf uns flogen. Es wurden Reden gehalten, mein
Vater dankte für den warmen freundschaftlichen Empfang. Die Einwohner waren
freundliche, wohlwollende Menschen. Das Dorf bestand aus zehn Häuserreihen in fünf
sehr langen Straßen, an deren beiden Seiten aus Lehmstein, Ziegelstein oder Holz
gebaute Häuser standen. Die Dächer waren mit Brettern oder Blech bedeckt.
An den Pastoratsgarten grenzte der alte Friedhof. Abgesehen davon, dass er mehr als
hundert Jahre alt war - das war der erste Friedhof - waren die Pfade gut erhalten. Er war
das Reich der Flieder- und Rosensträucher, weißer Arkazien, Birken, Eichen, Linden,
Espen, Ulmen, ein ganzer botanischer Garten. Dort konnte ich mich mit einem Buch
verstecken und ruhig lesen.
115
Норка, большая деревня на Волге.
Из воспоминаний Эдит Мютель, дочери Анны Фридерики Пфейфер и Эмиля
Пфейфера, пастора деревни Норка.
Уже более шестидесяти лет отделяют меня от моего раннего детства, но остались
в сердце моем воспоминания: тяжелые годы ссылки в Сибирь, потеря родителей,
страшные годы моих сестёр и брата в трудармии. Мой брат- на угольных шахтах,
мои сёстры- на рыболовном промысле на Оби, на лесоповале в тайге и на Урале.
Всё это тесно связано со всем тем хорошим и красивым, что может волновать
детское сердце, со всеми несчастьями и болью семьи и её окружения в период с
1925 по 1932 годы.
Норка была большой деревней, в которой были очень сильно выражены немецкие
традиции, особенно религия, и которая говорила на своём собственном диалекте.
Пред моими глазами предстаёт река Волга, её красивые берега, крутые и зелёные.
Такой сохранила я её в 1925 г. в памяти, будучи шести лет от роду.
....Осенью 1927 г. мой отец стал пастором в деревнях Норка, Гукк и Бейдек. Мне
запечатлелся наш приезд: наша фура проехала через растянувшуюся деревню и
затем повернула к распахнутым воротам в наполненный людьми двор. Мы
услышали пение и увидели множество букетов цветов, летящих в нас.
Произносились речи, отец благодарил за тёплую дружескую встречу. Жители
были радушными доброжелательными людьми. Деревня состояла из десяти рядов
домов и пяти очень длинных улиц, по сторонам которых стояли дома из глины,
кирпича или брёвен, крытые досками или жестью.
....Пасторский дом граничил со старым кладбищем. Несмотря на то, что ему было
более ста лет- это было ещё первое кладбище- дорожки в нём были хорошо
ухожены. Это было царство сирени и роз, белой акации,берёз, осин и вязов,
настоящий ботанический сад. Там я могла спрятаться с книгой и спокойно читать.
В деревне Норка было пять школ, но учителя с нами не общались, т.к. это было
им запрещено. Уроки давал нам сам отец. Была и поликлиника и аптека, в
которой лекарства отпускались бесплатно. Врачами были русские, по-немецки
говорившие плохо. Но работу свою они выполняли с душой. В немецких деревнях
было также много врачей- немцев. Вставали летом и зимой в 4 часа. Мужчины
кормили скот и убирали в хлеву. Женщины доили коров, поили телят, топили,
заботились о завтраке и о детях. Затем жужжала прялка, женщины вязали,
116
In Norka waren fünf Schulen, die Lehrer kontaktierten nicht mit uns, denn es war ihnen
verboten. Uns unterrichtete der Vater. Es gab auch eine Poliklinik und eine Apotheke,
wo die Arzneien kostenlos vergeben wurden. Die Ärzte waren Russen, die schlecht
deutsch sprachen. Aber ihre Arbeit führten sie von Herzen aus. In den deutschen
Dörfern gab es auch viele deutsche Arzte. Im Sommer und im Winter stand man um 4
Uhr auf. Die Männer besorgten das Vieh: sie fütterten es, räumten die Ställe auf. Die
Frauen melkten, tränkten die Kälber, besorgten Frühstück, heizten, versorgten die
Kinder. Dann surrte das Spinnrad, es wurde gestrickt, genäht, gewebt. Die Familien
waren groß, es waren fast immr zwei, drei Frauen im Haus, sie teilten sich die Arbeit
ein. Jede Frau machte das, was sie konnte. Die älteren Frauen sorgten für das
Mittagessen, buken Brot. Die Männer holten Wasser aus dem Brunnen mit einem
Schlitten. Nach dem Abendbrot machten die Schulkinder die Hausarbeiten und gingen
dann früh zu Bett.
Norka lag in der Steppe, Wind war immer da, deshalb gab es viele Windmühlen. Eine
große Dampfmühle stand hinter dem Dorf, vor der Revolution privat, später dem Staat
übergeben.
Es gab Schuster, Walker, Schneider für Pelze und Schneider, die nur für Mädchen und
Frauen nähten, Tischler, Böttcher, Sattler, Ofensetzer, Dachdecker, Wagenbauer,
Gerber, Imker. Die ganze Woche wurde fleißig gearbeitet, am Samstag aufgeräumt,
gewaschen, gebadet, Brot für die Woche gebacken. Am Sonntag wurde nicht gearbeitet,
nur das Vieh versorgt. Der Gottesdienst begann um neun Uhr, die Kirche war immer
voll.
Fast jede Familie hatte einen Obstgarten. Für den ganzen Winter standen im Keller die
Fässer mit eingemachten Äpfeln, Wassermelonen, Tomaten, Gurken, Kohl. In großen
Korbflaschen stand Sonnenblumenöl. Am Anfang des Winters wurde geschlachtet.
Würste, Schinken, Speck hingen in der Räucherkammer. Im Winter war die Familie mit
Trockenobst versorgt.
Der Winter 1932-1933 war schwer, Brot gab es sehr wenig. Die letzten Jahre in Norka
verbrachten wir in ständiger Unruhe, denn jede Nacht konnten wir aus unserem Dorf
vertrieben und verschleppt werden. An unseren Betten standen Stühle, auf denen
Kleider lagen zum Anziehen, falls wir wegmußten.... Fortsetzung auf S. 122
117
шили, ткали.. Семьи были большими, почти всегда в доме было две-три
женщины, они делили между собой работу. Каждая делала
то, что могла. Старшие заботились об обеде, пекли хлеб. Мужчины привозили на
санях из колодца воду. После ужина школьники выполняли домашнее задание и
затем рано ложились спать.
.....Расположена была деревня в степи. Ветер дул постоянно, поэтому и было
много ветряных мельниц. За деревней стояла большая паровая мельница, до
революции она была частной, позже- передана государству. В деревне были
сапожники, валяльщики, портные, шившие шубы, и портные, шившие только
девушкам и женщинам, столяры, бондари, шорники, печники, кровельщики,
каретники, кожевники, пасечники. Всю неделю жители прилежно трудились, а в
субботу всё убиралось, стиралось, купались и пекли на неделю хлеб. В
воскресенье не работали, только смотрели за скотом. Богослужение начиналось в
9 часов, церковь была всегда полна.
Почти у каждой семьи был фруктовый сад. На всю зиму в погребе стояли бочки с
мочёными яблоками, арбузами, солеными помидорами, огурцами, капустой. В
больших бутылях стояло подсолнечное масло. С наступлением зимы резали скот.
В коптильне висели колбасы, окорока, сало. На зиму семья была обеспечена
сухофруктами.
...Зима 1932-1933 была тяжелой, хлеба было мало. Последние годы в деревне
Норка протекали для нас в беспокойстве, т.к. каждую ночь могли за нами прийти,
изгнать и сослать. У наших кроватей стояли стулья, на которых лежала одежда,
приготовленная на случай,если нам нужно покинуть дом....
Продолжение на стр 123
Перевод Э.Костюк
118
26. – 1.
28. Montag
August / September 2000
35. Woche
Entschlafen der Gottesmutter
Gedenktag der Verschleppten
.... Die Erinnerungen an Norka sind eine nicht vernarbende Wunde in
meinem Herzen, in meiner Seele. Bei der Erinnerung an die Natur, die
Umgebung und die netten Menschen, die wir kannten und achteten, an die
Zeit mit unseren Alten, zieht es uns dorthin bis jetzt, besonders im
Frühling, in die Berge und in die Wälder, zu den rauschenden Bächen mit
ihren Silberweiden. Im Traum blühen für uns noch die Maiglöckchen,
Anemonem und Märzglocken. Für uns duftet der üppige Flieder, winkt die
weiße Arkazie, für uns blühen die flammenden Tulpen in der Steppe.
Was müssen die Menschen fühlen, die jedes Stückchen Land mit ihrem
Schweiß begossen, mit ihren schwieligen Händen das Feld liebevoll
bearbeiteten, dort ihre Kinder wiegten, ihre Ahnen für immer verlassen
mußten, was mußten sie fühlen?! Kann man auf diese Frage eine Antwort
finden? Wo sind nun die Einwohner dieses großen reiches Dorfes
geblieben? Welche Steppen machen sie urbar? Haben sie ihre strengen
Sitten im Wechsel der Laune des Schicksals bewahrt? Den Glauben und
das Vertrauen an Gott nicht verloren?
Wo sie auch sein mögen, jedem, der von ihnen noch am Leben ist, ihren
Kindern, Enkeln und Urenkeln wünsche ich von ganzem Herzen Frieden,
Vertrauen auf Gott, Einvernehmen und die Hoffnung, ihr Heimatdorf
wiederzusehen! 0 Gott! Hilf ihnen, sei ihnen gnädig und behüte sie.
Edith Müthel St.Petersburg 1994
119
26 –1
28. Понедельник
Август/ Сентябрь 2001
35 неделя
Успение Пресвятой Богородицы
День скорби по всем немцам, погибшим
в бывшем СССР
...Воспоминания о деревне Норка - это незаживающая рана в моём
сердце, в моей душе. При воспоминании о природе, окрестности и о
милых людях, которых мы знали и уважали, о времени, когда мы
были с родителями, тянет нас до сих пор туда. Особенно весной, к
горам и лесам, к журчащим ручьям с их серебристыми пастбищами.
Ещё цветут для нас ландыши, анемоны и весенний белоцветник. Для
нас источает аромат пышная сирень, нам кивает белая акация, для
нас пламенеют в степи тюльпаны.
Что должны чувствовать люди, поливавшие потом каждую пядь
земли, любовно обрабатывавшие своими мозолистыми руками поле,
баюкавшие там своих детей, оставившие там навсегда своих
предков, что должны были они чувствовать?! Можно ли найти ответ
на этот вопрос? И где теперь остались жители этой богатой деревни?
Какие степи они осваивают? Сберегли ли они на протяжении своей
переменчивой судьбы свои строгие обычаи? Не потеряли ли они
свою веру и доверие к Богу?
Где бы они не находились, каждому, кто ещё из них жив, их детям,
внукам и правнукам желаю я от всего сердца мира, доверия к Богу,
взаимного согласия и сохранения надежды увидеть родную
деревню!
О Господи! Помоги им, будь с ними милостив и оберегай их!
Эдит Мютель
Санкт- Петербург,1994
Перевод Э.Костюк
120
2. – 8.
September 2001
8. Samstag
Mariä Geburt
MARIA, ich nenne dich Schwester
Maria, ich nenne dich Schwester
ich sehe dein junges Gesicht
ich spüre dein Sehnen und Träumen
wir trauen gemeinsam dem Licht
wir tragen gemeinsam das Wort der Verheißung
wir bringen es zur Welt
Maria, ich nenne dich Schwester
ich sehe dein Frauengesicht
ich spüre dein Fragen und Handeln
wir trauen gemeinsam dem Licht
wir tragen gemeinsam das Wort der Befreiung
wir bringen es zur Welt
Maria, ich nenne dich Schwester
ich sehe dein müdes Gesicht
ich spüre dein Dienen und Leiden
wir trauen gemeinsam dem Licht
wir tragen gemeinsam den Preis der Befreiung
wir bringen ihn in die Welt
Maria, ich nenne dich Schwester
ich sehe in deinem Gesicht
die Würde und Hoffnung der Frauen
wir trauen gemeinsam dem Licht
wir singen gemeinsam das Lied der Befreiung
wir tragen es in die Welt
Christa Peikert- Flaspöhler
121
36. Woche
2–8
8. Суббота
Сентябрь 2001
36 неделя
Рождество Пресвятой Богородицы
Мария, я называю тебя сестрой
Мария, я называю тебя сестрой
Я вижу твоё юное лицо
я ощущаю твоё страстное стремление и мечты
мы вместе доверяем свету
мы вместе несём в себе слово предсказания
мы приносим его в мир
Мария, я называю тебя сестрой
я вижу твоё женское лицо
я узнаю твои вопросы и действия
мы сообща доверяем свету
мы сообща несём в себе слова освобождения
мы приносим их в мир
Мария, я называю тебя сестрой
я вижу твоё усталое лицо
я чувствую твои служение и страдание
мы вместе доверяем свету
мы вместе несём в себе цену освобождения
мы приносим её в мир
Мария, я называю тебя сестрой
на лице твоём-выражение достоинства
и надежды женщины
мы вместе поём песнь освобождения
мы несём её в мир
Криста Пайкерт-Фласпёлер
Перевод Э.Костюк
122
9. – 15.
September 2001
37. Woche
Die Seele ist wie ein Wind, der über die Kräuter weht,
und wie der Tau, der auf die Gräser träufelt,
und wie die Regenluft, die wachsen macht.
Genauso ströme der Mensch sein Wohlwollen aus auf alle,
die da Sehnsucht tragen.
Ein Wind sei er, der den Elenden hilft,
ein Tau, indem er die Verlassenen tröstet,
und Regenluft, indem er die Ermatteten aufrichtet
und sie mit Liebe erfüllt wie Hungernde,
indem er ihnen seine Seele hingibt.
Hildegard von Bingen
123
9 – 15
11.Вторник
Сентябрь 2001
37 неделя
Усекновение главы Иоанна Предтечи
Душа как ветер, веющий над пряными травами,
и как роса, падающая на траву,
и как влажный воздух, способствующий росту.
Точно так человек излучает свою благожелательность
на всех тоскующих.
Он - ветер, помогающий несчастным,
роса- когда он утешает покинутых,
и свежий воздух- когда он поднимает
изнурённых
и наполняет страждущих любовью,
отдаваясь им душой.
Хильдегард фон Бинген
Перевод Э.Костюк
124
16. – 22.
September 2001
21. Freitag
38. Woche
Geburt der Gottesmutter
Die Weisheit stellt sich vor:
Gott schuf mich, seines Waltens Erstling,
als Anfang seiner Werke, vorlängst.
Von Ewigkeit her bin ich gebildet,
vor Anbeginn, vor dem Ursprung der Welt.
Noch ehe die Meere waren, ward ich geboren,
noch vor den Quellen, reich an Wasser.
Bevor die Berge eingesenkt wurden,
vor den Hügeln ward ich geboren,
und die Fluren und die ersten Schollen des Erdreichs.
Als er den Himmel baute, war ich dabei,
als er das Gewölbe absteckte über der Urflut,
als er die Wolken droben befestigte
und die Quellen der Urflut stark machte,
als er dem Meer seine Schranken setzte,
dass die Wasser seinem Befehle gehorchten,
als er die Grundfesten der Erde legte,
da war ich sein Liebling ihm zur Seite,
war lauter Entzücken Tag für Tag
und spielte auf seinem Erdenrund
und hatte mein Ergötzen an den Menschenkindern.
Sprüche 8, 22-31
16 – 22
21.Пятница
Сентябрь 2001
38 неделя
Рождество Пресвятой Богородицы
Божья Мудрость взывает
125
Господь имел меня началом пути Своего,
прежде созданий Своих, искони;
От века я помазана, от начала, прежде
бытия земли.
Я родилась, когда еще не существовали
бездны, когда еще не было источников,
обильных водою.
Я родилась прежде, нежели водружены
были горы, прежде холмов,
Когда еще Он не сотворил ни земли, ни
полей, ни начальных пылинок вселенной.
Когда Он уготовлял небеса, я была там
Когда Он проводил круговую черту
по лицу бездны,
Когда утверждал вверху облака, когда
укреплял источники бездны,
Когда давал морю устав, чтобы воды не
переступали пределов его,
когда полагал основания земли:
Тогда я была при Нем художницею,
и была радостью всякий день,
веселясь пред лицом Его во все время,
Веселясь на земном кругу Его,
и радость моя была с сынами
человеческими.
Притч 8, 22 -.31
Hildegard von Bingen – eine weise Frau, die Geschichte machte
Hildegard von Bingen wurde 1098 geboren und kam schon mit fünf Jahren in
ein Kloster. Mit 35 Jahren wurde sie von ihren Mitschwestern zur Äbtissin
gewählt. Sie ließ auf dem Rupertsberg bei Bingen ein eigenes Kloster bauen
und wirkte von dort aus durch ihre Schriften, Lieder, Briefe und Reisen.
Hildegard war tätig als Ärztin, Naturforscherin, Heilerin, Komponistin und
126
Dichterin. Eine ganz außergewöhnliche Bedeutung haben die Visionsbilder,
die sie seit ihrer Kindheit gesehen hat und die sie von ihrem 42. Lebensjahr an
veröffentlichte. Hildegard bekam schon zu ihren Lebzeiten den Ehrennamen:
Prophetin in Deutschland. Hildegard starb am 17. September 1179.
Die Theologin und Psychotherapeutin Ingrid Riedel schreibt über Hildegard
von Bingen:
"Wie eine geglückte Verbindung der weisen Frau als Kräuterweib und als
große Wissende erscheint mir diese große Frauengestalt des Mittelalters, die
mich – und zahlreiche andere mit mir – seit einigen Jahren fesselt und nicht
losläßt: Hildegard von Bingen. Sie verbindet in ihrer Person und ihrem
Werk, was bei anderen vielfach auseinanderfiel: das heilkundige Wissen
und heilende Können der weisen Frauen, ehe sie noch zu Hexen erklärt
wurden, mit theologischem Durchblick und mystisch-kosmischer Schau.
Auch war sie eine einzigartige Dichterin und Komponistin und hatte kühne,
aufsehenerregende Vorstellungen von einer leibhaft-vollzogenen,
farbenfrohen, klingenden Liturgie, mit Spiel- und Tanzelementen, in denen
weibliches Erleben voll zum Tragen gekommen wäre.
Vorurteilslos und sorgsam trägt sie das alte Heilwissen um Kräuter und
Pflanzen in ihren Schriften zusammen und scheut sich nicht, magische
Wurzeln wie Alraune, die als Alraunenweibchen und –männchen wie kleine
Hausgötter verehrt wurden, in ihrer Heilkraft anzuerkennen und zu empfehlen.
Daß Hildegard von Bingen heute nicht nur mich, sondern eine wachsende
Gruppe von Menschen fasziniert, hat mit nichts anderem zu tun, als daß der
Archetyp – das Urbild – der weisen Frau heute bei einer großen Zahl von
Menschen in Erscheinung tritt und daß in ihnen selbst etwas von dem leben
möchte, was Hildegard lebte: Verbundenheit von Sophia, das ist die Gestalt
der Weisheit in der Bibel, und Natur, symbolisiert in dem Heiligen Grün, der
sancta viriditas, wie der von ihr geprägte Ausdruck lautet."
Hanna Strack
Хильдегард фон Бинген- мудрая женщина,творившая
историю
Хильдегард фон Бинген родилась в 1098 году и уже в пятилетнем
возрасте попала в монастырь. В 35 лет она была избрана своими
сёстрами настоятельницей монастыря. На горе Рупертсберг близ
127
Бинген выстроила она собственный монастырь и оттуда своими
сочинениями, песнями, письмами и поездками оказывала влияние на
развитие истории.
Хильдегард была врачом, естествоиспытательницей, целительницей, и
поэтом. Совершенно необыкновенное значение имеют картины её
видений, которые к ней приходили с детства. Начиная с 42 летнего
возраста она их публиковала. Ещё при жизни получила она почётное
звание пророчицы Германии. Умерла Хильдегард 17 сентября 1179.
Ингрид Ридель, теолог и психотерапевт, пишет о Хильдегард фон
Бинген: «Уже несколько лет захватывает и не отпускает меня, как и
многих других, выдающийся женский образ средневековья:
Хильдергард фон Бинген. В этой мудрой женщине сочетались
травница и исследовательница. Она соединила в себе и в своих трудах
то, что у других неоднократно распадалось: знание целительства и
умение мудрой женщины- прежде чем таких объявляли ведьмамиисцелять с теологическим пониманием и мистико- космическим
представлением. Она была также единственным в своём роде поэтом
и композитором; имела смелые, привлекающие внимание
представления о живой, радостно окрашенной звучной
литургии с элементами игры и танца, в которых женские переживания
могли полнее выразиться.
Заботливо и свободно от предрассудков собирает она в своих
сочинениях древние познания о травах и растениях и не боится
признавать целительную силу и рекомендовать к использованию такие
таинственные корни, как, например, корни мандрагоры,
напоминающие своей формой женскую и мужскую фигуры и
почитавшиеся в народе маленькими домашними божками.
То, что сегодня Хильдегард фон Бинген восхищает не только меня, но
и растущую группу людей, связано ни с чем иным, как с тем, что
сегодня большое число людей обратило внимание на архетип прототип - мудрой женщины, и что в них самих хотело бы жить
что-то от того, чем жила Хильдегард: тесная связь Софии, образа
мудрости в Библии, и Природы, которую символизирует «святое
зелёное» или sancta viriditas, как называла это Хильдегард фон
Бинген».
Ханна Штрак.
Перевод Э.Костюк
23. – 29.
September 2001
27. Donnerstag
39. Woche
Kreuzerhöhung
Gedenktag der Engel
128
23 – 29
27. Четверг
Сентябрь 2001
39 неделя
Воздвижение Креста Господня
День памяти всех ангелов
129
30.– 6.
30. Dienstag
3. Samstag
September/ Oktober 2001
40. Woche
Erntedankfest
Tag der Deutschen Einheit
130
Gesegnet wirst du sein
in der Stadt,
gesegnet wirst du sein
auf dem Acker.
Gesegnet wird sein
die Frucht deines Leibes,
der Ertrag deines Ackers
und die Jungtiere deines Viehs,
deiner Rinder und deiner Schafe.
Gesegnet wird sein
dein Korb und dein.
Gesegnet wirst du sein
bei deinem Eingang
und gesegnet bei deinem Ausgang.
5.Mose 28,3-6
30 – 6
30. Вторник
3. Суббота
Сентябрь/Oктябрь 2001
40 неделя
Праздник Благодарения за урожай
День Единства Германии
131
Благословен ты в городе
и благословен на поле.
Благословен плод чрева твоего,
и плод земли твоей ,
и плод скота твоего,
и плод волов твоих,
и плод овец твоих.
Благословенны житницы твои
и кладовые твои.
Благословен ты при входе твоем
и благословен ты при выходе твоем.
Втор 28, 3-6
7. – 13.
Oktober 2001
132
41. Woche
Gebet
Gott, du schöpferische Kraft,
du trägst das Universum in deinem Schoß.
Wir blicken in den Sternenhimmel und schauen wie klein, wie ohnmächtig sind wir!
Wir halten ein neugeborenes Kind in unseren Armen wie stark, wie schöpferisch sind wir!
Klein und groß zugleich.
Du trägst das Universum in deinem Schoß,
du trägst auch uns.
Dir sei Ehre in Ewigkeit. Amen
Hanna Strack
7 – 13
Oктябрь 2001
133
41 неделя
Молитва
Господь, Ты созидательнная Сила,
Ты несёшь в Себе Вселенную.
Мы смотрим на звездное небо и видим Как малы, как беспомощны мы!
Мы держим в руках новорожденноe дитя как сильны, как созидательны мы!
Ничтожны и велики одновременно.
Господь, ты несёшь в Себе Вселенную,
Ты несёшь в Себе и нас.
Слава Тебе в веках.
Аминь
Ханна Штрак
Перевод Э. Костюк
14. – 20.
Oktober 2001
134
42. Woche
Mutter, gib mir deinen Segen!
Es war einmal ein Mädchen, das war sehr fleißig und überall war man
zufrieden und voll des Lobes über sie.
Nun suchte man eines Tages am Königshof eine Hilfe für die
Prinzessin, die war krank und musste gepflegt werden. Die Wahl fiel
auf dieses Mädchen. Das erbat einen Monat Bedenkzeit und ging zu
seiner Mutter.
Und als die Zeit vorbei war, traten beide, die Mutter und ihre Tochter,
über die Schwelle des Hauses, und die Tochter bat: "Mutter, gib mir
deinen Segen!"
Da sagte die Mutter zu ihr: "Ich will dir meinen Segen geben. Nicht
sollst du ungesegnet in unbekanntes Land ziehen!"
Und sie gab ihrer Tochter einen Krug mit Wasser und sagte: "Mögen
die Quellen des Glaubens und des Vertrauens in dir nie versiegen!"
Dann zündete sie eine Kerze an, drückte sie ihr in die Hand und sagte:
"Möge das Licht der Liebe immer aus deinen Augen strahlen und die
Welt um dich hell machen!"
Und zuletzt gab sie ihrer Tochter eine Feder und sagte: "Mögen
Hoffnung und Zuversicht deiner Seele Flügel wachsen lassen, wenn
sie matt zu werden droht! Geh hin, meine Tochter, in Frieden!"
Brigitte Enzner-Probst
14 – 20
Oктябрь 2001
135
42 неделя
14. Воскресенье
Покров Пресвятой Богородицы
Благослови меня, матушка
Жила – была девушка, она была очень прилежна, служила у
разных господ и всюду её хвалили и были ею довольны.
Однажды случилось так, что при дворе короля искали
прислужницу для его маленькой дочки, которая была
больна и нуждалась в уходе. Тут выбор пал на эту девушку,
т.к. слава об её умении распространилась далеко.
Тут девушка попросила один месяц на обдумывание и ушла
к своей матери и оставалась у неё всё время.
И когда время истекло, вышли обе, мать и дочь за порог
дома и попросила дочь: “Матушка, дай мне своё
благословение!“.
И сказала ей мать: “Я хочу благословить тебя. Ты не
должна без благословения идти в чужую страну!“
И дала она своей дочери кувшин с водой и сказала: “Пусть
в тебе никогда не иссякнут источники веры и доверия! “
Затем зажгла она свечу, вложила её ей в руку и сказала:
“ Пусть глаза твои всегда излучают свет любви и освещают
мир вокруг тебя! “
А напоследок дала она своей дочери перо и сказала: “Пусть
надежда и глубокая уверенность дадут душе твоей крылья,
когда она готова изнемочь. Иди же, дочь моя, с миром! “
Бригитта Энцнер-Пробст
Перевод Э. Костюк
21. – 27.
Oktober 2001
136
43. Woche
Alles nun, was ihr wollt, dass euch die Leute tun sollen, das tut
ihnen auch! Das ist das Gesetz und die Propheten. Mt 7,12
Diesen Rat gibt uns Jesus in seiner Bergpredigt, wie Matthäus sie uns in
seinem Evangelium in den Kapiteln 5 - 7 überliefert hat.
Wir kennen meistens die umgekehrte Form:
Was du nicht willst, das man dir tu, das füg auch keinem andern zu!
Jesus will aber hier nicht etwas verbieten. Er fordert uns auf, Fantasie und
Ideen zu haben und über das Gute nachzudenken. Dabei sollen wir auch ernst
nehmen, welche Bedürfnisse wir für uns selbst haben.
Was möchtest Du denn gerne, das Deine Freundin oder Nachbarin für Dich
tut?
Möchtest Du, dass sie freundlich ist, dann sei auch Du freundlich.
Möchtest Du, dass sie Deine Meinung achtet, dann achte auch Du ihre
Meinung!
Möchtest Du, dass sie Dich versorgt, wenn du krank bist, dann versorge Du
sie auch!
Diesen Satz aus der Bibel nennen wir die Goldene Regel. Sie gibt uns eine
umfassende Anleitung, wie wir miteinander umgehen sollen. Sie appelliert
nicht an unseren Gehorsam, macht uns nicht zu unmündigen Kindern. Sie ruft
unsere Einsicht hervor, unsere Weisheit, nach der wir miteinander gut leben
können.
Hanna Strack
21 – 27
Oктябрь 2001
137
43 неделя
„Во всём, как хотите, чтобы с вами поступали люди, так
поступайте и вы с ними, ибо в этом закон и пророки.“
Мф 7, 12
Этот совет дал нам Иисус в Нагорной проповеди, как
изложил её для нас апостол Матфей в главах 5-7 своего
Святого Благовествования. Нам в большинстве случаев
знакома обратная форма: Чего не хочешь, чтобы сделали
тебе, того не причиняй и никому другому!
Но Иисус запрещать что-либо здесь не хочет. Он призывает
нас поразмыслить о добром, с фантазией и идеями. При
этом нам следует серьёзно отнестись к тому, каковы наши
потребности по отношению к себе самим.
Чего бы Ты очень хотела, чтобы Твоя подруга или соседка
для Тебя сделала?
Хотела бы Ты, чтобы она была приветлива, тогда будь
приветлива и Ты!
Хотела бы Ты, чтобы она уважала Твоё мнение, тогда и Ты
уважай её мнение!
Хотела бы Ты, чтобы она позаботилась о Тебе, когда Ты
заболеешь, тогда позаботься о ней и Ты!
Это высказывание Иисуса мы назовём Золотым правилом.
Оно предлагает нам всеобъемлющее руководство, как
обходиться друг с другом. Оно не обращено к нашему
послушанию, не превращает нас в несовершеннолетних
детей. Оно обращено к нашему благоразумию, к нашей
мудрости, благодаря которой мы можем друг с другом
хорошо жить.
Ханна Штрак
Перевод Э. Костюк
138
Fürbittgebet der Frauen aus Madagaskar
Lasst uns beten für alle Länder auf der Erde,
in denen Angst und Gewalt herrschen.
Gott, wir beten für alle Orte, an denen Gewalt und Aufruhr den Menschen Frieden und
Sicherheit rauben. Wir denken auch an die Großstädte, in denen Verbrechen an der
Tagesordnung sind. Wir beten für alle Menschen, die keinen Frieden haben und Tag und
Nacht im Elend leben. Befreie diese Welt von Gewalt und Angst. Gott, wir vertrauen
darauf, dass du uns nicht verlassen wirst.
Lasst uns beten für alle Menschen,
die unter Armut leiden und die kein Zuhause haben.
Barmherziger Gott, du siehst die, die arm sind und niemanden haben, auf den sie sich
verlassen können. Du kennst die, die kein Dach über dem Kopf haben, und die, die
hungern. Du hörst den Schrei der Armen und der Waisen. Öffne unsere Ohren und Herzen,
damit wir ein Volk werden und mit anderen teilen, was wir von dir erhalten haben.
Gott, du liebst uns wie ein Vater und eine Mutter, du weißt, was für deine Kinder gut ist.
Vertrauensvoll legen wir die Zukunft und die Hoffnung jedes Landes in deine Hände.
Lasst uns beten für die Heilung der Erde.
Lasst uns in Weisheit mit der Schöpfung leben. Schöpfung leben.
Gott, wir beten für die Schöpfung, die wir zerstören durch die Art und Weise, wie wir
leben. Wir flehen dich an, errette deine Erde. Heile unsere Flüsse, die Luft, die Wälder, die
Berge und Meere.
Zeige uns den guten Weg, den wir gehen sollen, unsere Umwelt zuschützen und die
Schönheit deiner Schöpfung zu bewahren.
Lasst uns beten für Kinder und junge Menschen.
Viele Kinder kommen mit der Kirche nicht mehr in Berührung, und junge Menschen
finden oft keine Heimat mehr in ihr. Manches andere zieht sie mehr an. Gott, deine
Wahrheit leite sie. Wir beten für Eltern und Kinder: Wo Beziehungen zerbrochen sind,
schenke du Verständnis füreinander, Frieden und Versöhnung.
Lasst uns beten für alle Frauen.
Frauen tragen in wesentlichen Bereichen des Lebens Verantwortung. Dennoch haben viele
von ihnen keinen Zugang zu Bildung. Überall sind Frauen Trägerinnen der Entwicklung.
Gott, gib ihnen Kraft, für ihren Haushalt, für ihre Nachbarschaft und Gemeinde zu sorgen
und mitzuwirken an der Gestaltung des Friedens in der Welt. Gott, wir Frauen sind bereit
dazu, sende uns!
Gott, wir rufen, Gott wir vertrauen, Gott, du erhörst das Gebet!
Weltgebetstag 1998
139
Просительная молитва(Ектения) женщин Мадагаскара
Помолимся за все страны на земле, в которых господствует страх и
насилие.
Господи, мы молимся за все страны, в которых налие и мятеж лишают людей
мира и безопасности. При этом мы и упомянем крупные города, где
преступления стали обычным явлением. Мы молимся за всех людей, лишенных
мира, людей, которые днем и ночью живут в нищете.
Освободи этот мир от страха и насилия, Господи, мы уповаем на то,
что Ты не оставишь нас.
Помолимсяся за всех людей, страдающих от бедноты и не имеющих своего
угла и уюта.
Господи Милосердный, Ты видишь бедных, у нет ни одного близкого человека,
на
которого они могут положиться. Ты знаешь тех, у кого нет крыши над
головой, и тех, которые голодают. Ты слышишь крик бедных и сирот.
Открой наши уши и сердца, чтобы мы стали одним народом и делили с другими
то, что получаем от Тебя.
Господи, Ты любишь нас как отец и мать, Ты знаешь что хорошо для Твоих
детей. С упованием мы вверяем в будущее и надежды каждой страны в Твои
руки.
Помолимся за исцеление земли, за то, чтобы мудро обходиться
с творением.
Господи, мы молимся за творение, которое мы разрушаем нашим образом
жизни. Мы молим Тебя,спаси Твою землю.
Исцели наши реки, воздух, леса, горы и моря.
Покажи нам добрый путь, по которому мы должны ходить, чтобы сохранить
нашу окружающую среду и красоту Твоего творения.
Помолимся за детей и молодых людей.
Многие дети не имеют никакой связи с церковью и молодые люди часто не
могут найти родину в ней. Другое привлекает их, Господи, Твоя истина да
правит ими. Мы молимся за родителей и детей: дай им понять друг друга в
случае разрыва отношений, дай им мир и примирение.
Помолимся за всех женщин.
Женщины несут ответственность в важных областях жизни. Но все-таки у
многих из них нет доступа к образованию. Везде женщины являются
носителями развития. Господи, дай им силу, чтобы они могли заботиться о
хозяйстве, о своих соседях, о своей общине,вносить свой вклад в создание мира
на земле. Господи мы, женщины, готовы к этому, пошли нас!
Gott, wir rufen, Gott wir vertrauen, Gott, du erhörst das Gebet!
Всемирный День Молитвы 1998
140
28. – 3.
Oktober/ November 2001
31. Mittwoch
1. Donnerstag
44. Woche
Reformationstag
Allerheiligen
Eine Frau erzählt
Ich lebe in einer Mischehe, das heißt mein Mann ist evangelisch und ich bin
katholisch.
Als wir uns vor 32 Jahren verlobten, war das für unsere Familien ein großes
Ärgernis und sie ließen es uns spüren. Wir haben sehr darunter gelitten, dass
unsere Kirchen miteinander streiten über den wahren Glauben.
Umso mehr freuen wir uns, über die "Gemeinsame Erklärung zur
Rechtfertigungslehre", die von evangelischen und katholischen Bischöfen,
Theologinnen und Theologen am 31. Oktober 1999 in Augsburg in der
Lutherischen St. Annakirche unterschrieben wurde.
Die Streitigkeiten auf dem Gebiet der Lehre der Kirchen sind nun ausgeräumt.
Alle glauben nun, was die Rechtfertigungslehre besagt: Gott liebt uns
Menschen so, wie wir sind, auch mit unseren Fehlern. Wir müssen nicht erst
durch gute Taten seine Liebe erringen. Die guten Taten folgen nämlich dann
aus Dankbarkeit.
Wir haben das Ereignis der Unterzeichnung miterlebt, sahen wie viele
Gläubige aus beiden Kirchen an diesem Morgen zum festlichen Gottesdienst
eilten. In einer langen Prozession gingen dann die Menschen mit frohen
Gesichtern vom katholischen Dom durch die Stadt zur lutherischen St.
Annakirche.
Nach der Unterzeichnung umarmten sich viele. An diesem Tag wurde die
Hoffnung auf eine endgültige Einheit der Kirchen etwas größer.
Ob wir noch erleben, dass wir ganz offiziell gemeinsam zum Abendmahl, zur
Eucharistie, gehen dürfen und Brot und Wein gemeinsam empfangen können?
Das wünschen wir uns und viele wünschen es mit uns.
141
28 – 3
Oктябрь / Ноябрь 2001
31. Среда
1. Четверг
44 неделя
День Реформации
День всех Святых
Одна женщина рассказывает
Я живу в смешанном браке: мой муж евангелического
вероисповедания, а я – католического.
Когда мы 32 года тому назад обручились, это вызвало в наших
семьях большое недовольство и они дали нам это почувствовать.
Мы очень страдали от того, что наши Церкви спорят друг с
другом о подлинной вере.
Тем сильнее мы радуемся“Совместному заявлению по учению об
оправдании“, которое было подписано евангелическими и
католическими епископами и теологами 31 октября 1999 года в
Лютеранской церкви Святой Анны в Аугсбурге.
Этим устраняются теперь споры по вопросам учения Церкви. Все
верят в то, о чём говорится в учении об оправдании: Бог любит
нас людей такими, какие мы есть, вместе с нашими ошибками.
Мы не должны заранее добрыми поступками добиваться Его
любви. Ведь добрые поступки последуют тогда из благодарности.
Мы были свидетелями подписания этого заявления, видели как
много верующих из обеих Церквей спешили в то утро на
торжественное богослужение. А затем двигались длинной
процессией с просветлёнными лицами от католического собора
через весь город к лютеранской церкви Святой Анны. После
подписания многие обнимали друг друга. В этот день росла
надежда на окончательное единение Церквей.
Доживём ли мы ещё до того дня, когда нам будет официально
позволено сообща идти к Святому Причастию, к Евхаристии, и
сообща принимать Хлеб и Вино? Этого пожелаем мы себе и с
нами желают этого многие.
Перевод Э. Костюк
142
4. – 10.
November 2001
45. Woche
Morgensegen
Ich danke dir, mein himmlischer Vater,
durch Jesum Christum, deinen lieben Sohn,
dass du mich diese Nacht vor allem Schaden und Gefahr
behütet hast,
und bitte dich, du wollest mich
diesen Tag auch behüten vor Sünden und allem Übel,
dass dir all mein Tun und Leben gefalle.
Denn ich befehle mich,
meinen Leib und Seele
und alles in deine Hände.
Dein heiliger Engel sei mit mir,
dass der böse Feind keine Macht an mir finde.
Amen
Und nun geh mit Freuden und einem Lied auf den Lippen
an deine Arbeit!
Martin Luther 4 – 10
Ноябрь 2001
45 неделя
143
Утреннее благословение
Я благодарю Тебя, мой небесный Отец,
через Иисуса Христа,
Сына Твоего Bозлюбленного, за то, что Ты
оберегал меня в эту ночь от всякой
беды и опасности,
и прошу Тебя охраняй меня также и
в этот день от греха и всякой беды,
чтобы Ты был доволен всеми моими
поступками и моей жизнью.
Ведь я препоручаю себя,
мое тело и душу и всё в Твои руки.
Да будет со мной Твой ангел святой,
чтобы злой враг не имел надо
мной власти.
Аминь
И теперь радостно и с песней на устах приступи к
своей работе!
Мартин Лютер
Перевод Э. Костюк
11. – 17.
November 2001
144
46. Woche
11. Sonntag
Martinstag
Martinstag
Die Kinder freuen sich jedes Jahr im Herbst auf den Martinstag.
Am 11. November ziehen sie singend mit selbstgebastelten Laternen
durch die Straßen, in vielen Städten und Dörfern wird auch ein großer
Umzug veranstaltet. Manchmal begleitet ein Ritter den Zug der
Kinder. Dann kommt das Martinsspiel: Er sieht einen Bettler, teilt
seinen Mantel und gibt ihm die Hälfte. Oft endet der Martinsumzug
mit einem Gottesdienst in der Kirche. Anschließend werden
Martinsbrezeln verteilt.
Die Erwachsenen erzählen viele Geschichten vom heiligen Martin:
Er lebte im 4. Jahrhundert in Südfrankreich und war zunächst Soldat.
334 als er 18 Jahre alt war, ritt er an einem eiskalten Winterabend an
einem Bettler vorbei. Der Bettler friert ganz erbärmlich. Martin will
ihm helfen, ihm Geld geben, doch schon vorher hatte er alles
verschenkt. Da greift er zum Schwert, teilt seinen Rittermantel in zwei
Teile und gibt die Hälfte dem Bettler. Nachts träumt Martin von einem
Bettler. Seine Hände tragen die Wundmale Christi. Eine Stimme sagt:
“Was du dem Bettler gegeben hast, hast du mir getan .“ Martin wacht
auf und ihm ist klar, dass Gott ihm diesen Traum geschickt hat. Er
lässt sich taufen, wird Christ und zieht sich in die Einsamkeit und zum
Gebet zurück. Er lebte als Einsiedler auf einer Insel bei Genua und
später in einer Klosterzelle. Nun wurde er zum Bischof von Tours
bestimmt, weil die Menschen ihn so liebten und verehrten, zumal er
auch Kranke heilte. Er gründete Klöster und verkündete das
Evangelium von Jesus Christus in ganz Frankreich.
Die Kinder singen dieses Lied zum Martinstag:
Leuchte, leuchte, leuchte mir, Laterne,
schenk mir in der Dunkelheit dein Licht.
Leuchte, leuchte, leuchte mir Laterne,
denn mit dir da fürchte ich mich nicht!
11 – 17
Ноябрь 2001
145
46 неделя
11. Воскресенье
День Святого Мартина
День Святого Мартина
Каждый год осенью дети радуются Дню Мартина, отмечаемого 11-го
ноября. В этот день они с песнями проходят по улицам с зажжёнными
фонариками, сделанными своими руками.
Во многих городах и деревнях организуются большие шествия. Иногда
детей сопровождает всадник. Тогда разыгрывается сцена, в которой
всадник делится своим плащём с нищим. Завершается это шествие часто
богослужением в церкви и раздачей детям Мартинских пряников.
Взрослые рассказывают много историй о святом Мартине.
Он жил в четвёртом столетии в южной Франции и вначале был
солдатом. В один из студённых зимних вечеров 334-го года
восемнадцатилетний Мартин проезжал верхом мимо одного нищего,
который продрог до костей. Мартин хочет ему помочь, хочет дать денег,
но всё раздал ещё раньше. Тогда он рассекает мечом свой рыцарский
плащ и отдаёт половину плаща нищему. Ночью ему снится нищий, чьи
кисти рук хранят следы ран Христа. И голос произносит: "Что ты дал
нищему, то ты сделал Мне". Мартин просыпается и ему ясно, что сон
этот ниспослан ему Богом. Он принимает обряд крещения, становится
христианином и удаляется от мира для молитвы. Отшельником живёт он
на одном из островов бдиз Генуи, а позже – в монастырской келье. Его
выбрали епископом города Тур, т.к. люди его очень любили и чтили,
тем более, что он исцелял больных. Он основал монастыри и по всей
Франции проповедовал Благую Весть Иисуса Христа.
Умер он в 397 г. Во время поездки. В день Мартина дети поют эту
песню:
Свети ярче, ярче, мой фонарик,
подари мне в темноте свой свет.
Свети ярче, ярче, мой фонарик,
ты со мной в пути: и страха нет.
Перевод Э. Костюк
18. – 24.
18. Sonntag
November 2001
47. Woche
Tag der Bitte um Frieden und Schutz des
Lebens
146
21. Mittwoch
Buß und Bettag
Meine Zeit in deinen Händen
Ich werde aus meiner Mutter Leib geboren
und liege zwischen ihren Schenkeln.
Schon bist du da, Lebenszeit,
und nimmst mich in deine Hände.
Ich spanne meine Sinne
in der Leidenschaft der Liebe,
da hältst du, Lebenszeit, inne
und feierst Hoch-Zeit.
Ich lasse ab von meinen Früchten,
gereift aus Arbeit und Engagement
und verschenke sie gerne
an dich, du neue Zeit.
Ich lege mich nieder zum Sterben,
will das Zeitliche segnen,
und gebe dich, meine Lebenszeit,
zurück in Gottes Hände.
So hat Gott die Zeit gewährt,
hat mich berührt und gesegnet
und mir eine erfüllte Zeit geschenkt.
Hanna Strack
18 – 25
18.Воскресенье
21.Среда
Ноябрь 2001
47 неделя
День моления о мире и защите жизни
День покаяния и молитвы
147
Моё время в Твоих Руках
Я рождаюсь из материнского лона
и лежу меж её ног.
Уже ты здесь, время жизни,
и я - в твоих руках.
Я напрягаю свои чувства
в страстной любви,
тут ты, время жизни, замираешь
и празднуешь наивысший расцвет.
Я с радостью дарю плоды свои,
созревшие в работе и вдохновении,
тебе, новое время.
Я тправляюсь в последний путь,
хочу отдать долг природе
и возвращаю тебя, моё время жизни,
обратно в Руки Господа.
Так Господь определил время,
Он коснулся, благословил меня
и подарил мне наполненную жизнь.
Ханна Штрак
Перевод Э. Костюк
148
Hagar gibt Gott einen Namen
In den Geschichten um Abraham und Sara wird zweimal von Hagar erzählt, in
1.Mose 16 und 21. Diese Erzählungen sind noch älter als die Bibel und
schenken uns einen Einblick in die Gotteserfahrung einer ungewöhnlichen
Frau. Sie und ihr Sohn Ismael sind die Urahnen in der islamischen Religion so
wie Isaak in der jüdischen und christlichen Religion.
Doch lassen wir Hagar selbst zu Wort kommen:
Ich werde Abrahams Blick nicht vergessen. Er hatte schon Ismael und mich
zum Abschied umarmt und war einige Schritte gegangen, als er sich noch
einmal umdrehte, seine und meine Augen begegneten sich ein letztes Mal.
Schnell nehme ich Ismael, unseren Sohn, fest bei der Hand, rücke den
Wasserschlauch auf meiner Schulter zurecht und orientiere mich an der
aufgehenden Sonne. Wir steigen in das erste Wadi, ein ausgetrocknetes Tal,
hinab. Ich will die Oase erreichen und von dort nach Ägypten, meiner Heimat,
gelangen. Mutter, schau! Ismael bleibt wie angewurzelt stehen: Vor unseren
Augen streift eine Schlange an einem Geäst ihre Haut ab. Wir hören ein leises
Knistern und bewundern die leuchtenden Farben ihrer Haut. Ob wir auch
einmal ein solches neues Leben beginnen werden? Dann trinken und essen wir
und wandern weiter durch die Wüste. Gegen Abend kommen mir die ersten
Zweifel: Haben wir die Oase verfehlt? Drehen wir uns im Kreise? Wir trinken
den letzten Schluck. Ismaels Kräfte lassen schnell nach. Ich bin äußerst
beunruhigt. Der Junge weint leise. Ich setze Isamel in den Schatten eines
dürren Strauches. Ich kann sein Wimmern nicht hören und lege mich ein
Stück entfernt auf den Sand.
Ich spüre in diesem Moment meine Hilflosigkeit, meine Einsamkeit und
meine Verantwortung als alleinerziehende Mutter. Alle diese Gedanken
senken sich langsam in die Tiefen meiner Seele und ich bereite mich auf das
Sterben vor.
Ich muß eingenickt sein. Da sehe ich ein Glitzern in der Abendsonne, als ob
Wasser sich kräusle. Ich schleppe mich in die Richtung und traue meinen
Augen nicht: Wasser! Aus Müdigkeit und vor Angst hatte ich nichts mehr
wahrgenommen in meiner Umgebung. Wer hat mir die Augen geöffnet? Wer
hat mir und meinem Sohn das Leben gerettet? Welcher Engel ist mir
begegnet? Ich fülle ein wenig von dem Wasser in den Schlauch und erreiche
Ismael gerade noch, bevor er bewußtlos wird. Ich netze seine Lippen und
flüstere ihm zu: mein Kind, wir werden leben!
Dann tanzen wir ausgelassen und schließlich knien wir uns beide in den Sand
und rufen: Du, Gott, du Sehender, du hast Ismael und mich in unserem
Sterben genau gesehen! Du, Gott, du Hörender, du hast unser Weinen und
Klagen erhört! Du, Gott, du Sehender und Hörende, Gott, du Auge und Ohr,
offener Blick und gutes Gehör - führe uns und schenke uns Zukunft! Amen
Hanna Strack
149
Агарь обращается к Богу
В историях вокруг Авраама и Сары два раза рассказывается об Агари, в
Книге Бытия, главы 16 и 21. Эти рассказы еще более древние, чем
Библия. Они позволяют нам узнать, как необыкновенная женщина
обратилась к Богу. Она и ее сын Измаил являются прародителями
мусульман, как Исаак – прародителем иудеев и христиан.
Но давайте дадим слово самой Агари:
Никогда не забыть мне взгляда Авраама. Вот он, прощаясь, уже обнял
Измаила и меня и отошел на несколько шагов, но тут еще раз обернулся,
и его глаза встретились с моими в последний раз. Быстро взяла я
Измаила, нашего сына, крепко за руку, удобно устроила мех с водой на
своих плечах и отправилась в путь в сторону восходящего солнца. По
высохшему руслу реки спустились мы в первую долину, нужно
добраться до оазиса, а оттуда на мою родину в Египет.
«Мама, смотри»,- Измаил останавливается, словно прирастя к земле: прямо
перед нашими глазами на сучке змея сбрасывает кожу. Мы слышим тихое
потрескивание и с восхищением взираем на светящиеся краски ее кожи.
Удастся ли также и нам когда-нибудь начать новую жизнь? Затем мы едим и
пьем и снова бредем по пустыне. К вечеру нас обуревают первые сомнения.
Не пропустили ли мы оазис? Не кружили ли мы по пустыне? Мы выпиваем
последний глоток воды. Силы Измаила быстро тают. Я крайне встревожена.
Мальчик тихо плачет. Я сажаю Измаила в тень высохшего кустарника и
опускаюсь вдалеке на песок. В этот момент я ощутила свою беспомощность,
одиночество и свою ответственность матери-одиночки. Все эти мысли
медленно погружались в глубину души моей и я готовилась к смерти.
Должно быть, я задремала, как вдрук увидела блеск водной зыби в свете
заходящего солнца. С трудом я заставила себя двинуться в ту сторону и не
поверила своим глазам: вода! Из-за усталости и страха я ничего не видела
вокрук себя. Кто открыл мне глаза? Кто спас жизнь мне и моему сыну? Какого
ангела встретила я?
Немного наполнив мех водой, я кинулась к Измаилу и как раз застала его еще
до того, как он погрузился в бесчувствие. Я смочила его губы водой и
прошептала: дитя мое, мы спасены! Вне себя от радости мы пустились в пляс,
а затем преклонили колена на песок и воззвали: О, всевидящий Боже, ты
увидел Измаила и меня в наш смертный час!
О, всеслышащий Боже, ты услышал наш плач и стенания! О, всевидящий и
всеслышащий Боже, Бог-глаза и уши, открытый взор и чуткий слух, веди нас и
даруй нам будущее! Аминь
Ханна Штрак
Перевод Т. Таценко
150
25. – 1.
November / Dezember 2001
25. Sonntag
48. Woche
Letzter des Kirchenjahres, Totensonntag
Gott, du bist unsere Zuflucht für und für.
Ehe denn die Berge wurden und die Erde
und die Welt geschaffen wurden,
bist du, Gott, von Ewigkeit zu Ewigkeit.
Der du die Menschen lässest sterben
und sprichst: Kommt wieder, Menschenkinder!
Denn tausend Jahre sind vor dir wie der Tag,
der gestern vergangen ist,
und wie eine Nachtwache.
Du lässest sie dahin fahren wie einen Strom,
sie sind wie ein Schlaf,
wie ein Gras, das am Morgen noch sprosst,
das am Morgen blüht und sprosst
und des Abends welkt und verdorrt.
Unser Leben währet siebzig Jahre
und wenn´s hoch kommt, so sind es achtzig Jahre,
und was daran köstlich scheint, ist doch nur vergebliche Mühe;
denn es fähret schnell dahin, als flögen wir davon.
Lehre uns bedenken,
dass wir sterben müssen, auf dass wir klug werden.
Und der Herr, unser Gott,
sei uns freundlich
und fördere das Werk unserer Hände!
Psalm 90, 1-6,10,12,17
151
25 – 1
Ноябрь / Декабрь 2001
25.Воскресенье
Последнее воскресенье Церковного года
Поминально воскресенье
Господи! Ты нам прибежище в род и род.
Прежде нежели родились горы,
и Ты образовал землю и вселенную,
и от века и до века Ты – Бог.
Ты возвращаешь человека в тление и говоришь:
«возвратитесь, сыны человеческие!»
Ибо пред очами Твоими тысяча лет,
как день вчерашний, когда он прошёл
и как сража в ночи.
Ты как наводнением уносишь их;
они – как сон, как трава, которая утром вырастает,
утром и цветёт и зеленеет,
вечером подсекается и засыхает;
Дней наших – семьдесят лет,
а при большей крепости – восемьдесят лет;
и сампая лучшая пора их – труд и болезнь,
ибо проходят быстро, и мы летим.
Научи нас так счислять дни наши,
чтобы нам приобрести сердце мудрое.
И да будет благоволение Господа Бога нашего
на нас, и в деле рук наших споспешествуй нам.
Псалом 89
48 неделя
2-6, 10, 12, 17.
152
2. – 8.
2. Sonntag
4. Dienstag
6. Donnerstag
Dezember 2001
49. Woche
1. Advent
Einzug der Gottes Mutter in den Tempel
Nikolaus
Das Fest der Heiligen Barbara
Am 4. Dezember ist der Tag der Heiligen Barbara. Der Legende nach
hat sie im 3. Jahrhundert in Nikodemien in der heutigen Türkei gelebt.
Ihr Vater ließ sie zu ihrem Schutz in einen Turm einsperren, wenn er
auf Reisen ging. Als er eines Tages nach Hause kam, sah er ein drittes
Fenster in die Mauer geschlagen und er fand ein Kreuz auf der
Schwelle eingeritzt. Barbara sagte ihm, sie sei Christin geworden, das
dritte Fenster sei das Zeichen für den Heiligen Geist.
Vor dem Zorn des Vater floh sie in eine Höhle, wurde aber von einem
Hirten verraten. Nun wurde sie wegen ihres Glaubens angeklagt und
grausam gefoltert. Sie aber blieb fest im Glauben. Christus erschien
ihr in der Nacht und heilte ihre Wunden, ein Engel brachte ihr das
Abendmahl. Am nächsten Tag erschlug der eigene Vater seine
Tochter mit dem Schwert, kurz darauf wurde er selbst vom Blitz
erschlagen.
In unserer Zeit ist von der Verehrung der Heiligen Barbara nur noch
ein Brauch übriggeblieben: Wir schneiden am 4. Dezember
Kirschzweige, sogenannte Barbarazweige, und stellen sie in die Vase.
An Weihnachten werden sie blühen. So werden diese Zweige zum
Zeichen dafür, dass in der dunklen und kalten Winterzeit die
Hoffnung auf das neue Leben im Frühjahr, auf neue Früchte der
Natur, wach bleibt.
In der vorchristlichen Zeit war Barbara die Sonnengöttin. Von ihr
erhofften die Menschen, dass im Frühling das Leben wieder erwachte.
Und weil im Bergwerk die Sonne fehlt, galt Barbara auch als
Schutzheilige der Bergleute.
Hanna Strack
153
2–8
2. Воскресенье
4. Вторник
Декабрь 2001
49 неделя
1 Адвент
Введение во храм Пресвятой Богородицы
Праздник Святой Варвары
4 декабря празднуется день Святой Варвары. Согласно легенде,
жила она в третьем столетии в Никодемии, сегодняшней Турции.
Её отец, отправляясь в путь, запирал её в башне. Однажды,
возвратившись домой он увидел, что в стене пробито третье окно,
а на пороге выбит крест. Варвара объяснила ему, что стала
христианкой и что третье окно – символ Духа Святого.
Спасаясь от отцовского гнева, скрылась она в пещере, но была
там обнаружена одним пастухом. Её обвинили и подвергли
жестоким пыткам. Ночью явился ей Христос и исцелил её раны, а
ангел принёс ей в утешение просвиру. На следующий день отец
убил мечом свою собственную дочь и вскоре сам был насмерть
поражён молнией.
В наше время от праздника почитания Святой Варвары остался
только обычай:
4 – го декабря мы нарезаем вишнёвые ветки, так называемые
Варварины ветки, и ставим их в вазу. На Рождество они
зацветают. Так эти ветки становятся символом того, что в тёмное
и холодное время жива надежда на весеннее обновление жизни,
на новое плодородие природы.
В дохристианское время Варвара почиталась богиней солнца.
Она вселяла в людей надежду, что весной вновь пробудится
жизнь. И так как в рудниках не достаёт солнца, она была
покровительницей рудокопов.
Ханна Штрак
Перевод Э. Костюк
154
16. – 22.
9. Sonntag
Dezember 2001
2. Advent
155
50. Woche
9 – 15
9. Воскресенье
Декабрь 2001
50 неделя
2 Адвент
Ты – свет жизни, светом звёздным нас во тьме бла–го-сло-ви
Светом тихим миро-нос-ным дай на-деж-ду нам в пу - ти.
Снова, сно – ва вос – си - яй! Путь наш трудный о-за-ряй!
Ты – благая сила жизни,
Смерть, как прежде, победи,
Светом Божьим, светом Вышним,
Светом Истинным веди.
Снова, снова воссияй!
Путь наш трудный озаряй!
Слова Каролы Моосбах
Мелодия из Евангелического сборника песнопений
Перевод Л. Шмидриной
156
16. – 22.
Dezember 2001
16. Sonntag
51. Woche
3. Advent
Stollenrezept aus Thüringen
750g Mehl
225g Zucker
1 Prise Salz
2 Päckchen Vanillezucker
256g Margarine
190g Quark ( wir nehmen Magerquark)
2 Eier
150g Rosinen
150g Korinthen
190g Mandeln
60g Zitronat
60g Orangeat
3 Eßl. Mehl
1 frische Zitrone
1g Nelken
2 Backpulver.
Zucker, Eier, Margarine schaumig rühren, Salz, Mehl und Milch
hinzufügen,
Quark durch ein Sieb drücken und auch hinzu.
Danach die gehackten Mandeln (geschälte)! Orangiat und Zitronat
( klein hacken) , Rosinen und Korinthen zugeben.
Schließlich noch das Backpulver. Dies ergibt 3 nicht zu große Stollen,
die etwa 50-60 Minuten bei 200 Grad gebacken werden müssen.
Man kann ausschließend noch einen Zuckerguss darüber machen,
das soll angeblich den Stollen vor dem Austrocknen schützen.
Wir machen das aber nicht!
Ist der Stollen abgekühlt, kann man ihn entweder in eine Alufolie bzw.
Kunstoffolie einpacken. Dann hält er ziemlich lange frisch.
Heidi Schiffmann
157
16 – 22
Декабрь 2001
16. Воскресенье
51 неделя
3 Адвент
Рецепт Штолена:
750 г.муки,
225 г.сахара,
щепотка соли,
2 пакетика ванильного сахара,
265 г.маргарина,
190 г. творога, ( мы берём обезжиренный творог)
2 яйца,
150 г. изюма,
150 г. коринки,
190 г. миндаля,
60 г. лимонной цедры,
60 г. апельсиновой цедры,
3 ст. ложки муки,
1 свежй лимон,
1 г. гвоздики,
2 пакетика разрыхлителя
Сахар, яица и маргарин взбить, дабавить соль, муку и
молоко. Творог протереть через сито и тоже дабавить, а
затем молотый миндаль. Апельсиновую и лимонную цедру
мелко нарезать, добавить изюм и коринку. В конце
разрехлитель. Из этого теста получается 3 небольших
штолена, которые должны печься 50 – 60 минут при
температуре 200 гадусов.
По желанию можно покрыть штолен глазурью, которая
предохранит его от высыхания. Но мы этого не делаем!
Когда штолен остыл заворачиваем его в алюминиевую
фольгу или целофановый пакет. Так он достаточно долго
останется свежим.
Хайди Шифманн
Перевод Н. Бачакашвили
158
Maria - die Quelle göttlicher Kraft
In den vergangenen Jahrhunderten haben die Menschen viel über Maria
nachgedacht, sie haben Marienbilder entworfen und sie verehrt. Die
Kirchenväter haben darüber diskutiert, welche Aussagen über Maria wohl
richtig sind.
In der Ostkirche wird Maria als die Gottesgebärerin - theotokos - verehrt und
auf dem Konzil in Ephesus 431n.Chr. wurde dies zur kirchlichen Lehre
erhoben. In Maria verbindet sich der göttliche Logos mit der menschlichen
Natur.
Für die katholische Kirche ist die Aussage, dass Maria ohne Sünde ist, sehr
wichtig. Sie ist die Fürsprecherin für die Menschen im Jüngsten Gericht.
In der evangelischen Kirche ist Maria ganz verblasst. Aber in letzter Zeit
entdecken die Frauen in der evangelischen Kirche, dass Maria auch für sie
von Bedeutung sein kann.
Die Lehraussagen und die Streitigkeiten darüber interessieren uns heute nur
noch begrenzt. Wir möchten die Lehre von Maria in der Ostkirche und in der
katholischen und evangelischen Kirche in einen gegenseitigen Austausch
bringen. Wir wollen voneinander lernen. Und wir wollen unsere
Lebenserfahrungen dabei berücksichtigen.
Wir fragen: Was bedeutet es für uns heute, dass Maria die Mutter unseres
Heilandes war?
Gott wurde Mensch - das ist die zentrale Botschaft des christlichen Glaubens.
Und Mensch wurde er, indem eine Frau ihn neun Monate getragen und dann
geboren hat. Ist Maria eine Gottesgebärerin? Der Mutterleib ist der Ort der
Menschwerdung.
Maria war erfüllt von Gottes Weisheit. So ist sie auch für uns eine Quelle der
Weisheit.
Maria war erfüllt von der Gnade Gottes. So ist sie auch für uns eine Quelle der
Gnade.
Maria war erfüllt vom Heiligen Geist und so wurde sie für uns die Quelle, aus
der das Wasser des Lebens fließt. Sie hat uns Jesus, das Brot des Lebens und
das Licht der Welt geschenkt.
Maria hat uns den Friedensstifter geschenkt, und so wurde sie zur
Friedensstifterin.
Hanna Strack
Welche Bedeutung hat Maria für Sie? Wenn Sie wollen, können Sie sich hier
einige Gedanken eintragen und mit anderen Frauen darüber sprechen!
159
Дева Мария – источник Божественной силы
В прошедшие столетия образ Богоматери неотступно владел умами
людей. Они создавали Ее изображения, поклонялись Ей. Отцы Церкви
дискутировали о правильности догматов, касавшихся Девы Марии. В
восточнохристианских Церквах в соответствии с решениями Собора 413
г. в Эфесе Марию почитают как Богоматерь – theotokos. В Богоматери
соединяются Божественный Логос и человеческая природа.
Для Католической церкви особенно важен догмат о непорочности Девы
Марии, заступнице за людей на Страшном Суде. В Евангелической
Церкви образ Марии сильно поблек. Однако в последнее время
женщины в Евангелической Церкви открывают новое важное для себя
значение Марии. При этом догматические положения и споры
интересуют нас в довольно ограниченной мере. Мы хотели бы, чтобы
различные положения догматов о Деве Марии в восточнохристианских,
Католической и Евангелических Церквях взаимно дополняли друг друга.
Мы стремимся учиться друг у друга, обмениваясь различным
жизненным опытом.
Мы задаемся вопросом: какое имеет для нас значение сегодня, что Дева
Мария – мать нашего Спавителя? Бог вочеловечился – это центральное
положение христианской веры. Он стал человеком, ибо женщина носила
его 9 месяцев и родила. Мария родила Бога? Лоно матери является
местом развития человека. Мария исполнилась Божественной истины.
Так и для нас она стала источником истины. Мария исполнилась Божьей
Благодатью. Так и для нас она стала источником Благодати. Мария
исполнилась Духа Святого. Так и для нас она стала источником, из
которого проистекает вода жизни. Она продарила нам Иисуса, хлеб
жизни и свет мира. Мария подарила нам миротворца, став и для нас
умиротворительницей.
Какое значение имеет Мария для Вас? При желании Вы можете внести
сюда Ваши мысли по этому поводу и обсудить эту тему с другими
женщинами.
Ханна Штрак
Перевод Т. Таценко
160
23. – 29.
23. Sonntag
24. Montag
25. Dienstag
26. Mittwoch
Dezember 2001
52. Woche
4. Advent
Heiliger Abend
Weihnachtsfest
2. Weihnachtsfeiertag
Ikone von der Geburt Christi
Dieses Bild von der Geburt Jesu Christi zeigt uns verschiedene
Szenen. Sie wollen alle darauf hinweisen, dass Jesus Christus
wahrhaft Mensch geworden ist.
Wir sehen in der Mitte Maria liegend, die Gottesmutter. Sie stützt sich
auf ihren linken Arm. Dahinter öffnet sich eine Felsenhöhle, in der das
Jesuskind in Windeln gewickelt in der Krippe liegt, Ochs und Esel
betrachten es. Von der Mitte oben sendet der Stern von Bethlehem
seine Strahlen in die dunkle Höhle des Felsengebirges.
Wir sehen links oben, wie die Weisen zur Anbetung des Kindes reiten,
darunter drei Verkündigungsengel. Links unten sitzt Josef im
Gespräch mit einem Propheten, sei es Micha oder Jesaja, die beide die
Geburt des Heilandes angekündigt hatten. Rechts oben sind nochmal
drei Engel, von denen der eine sich den Hirten zuwendet, die in der
Mitte rechts ihre Schafe hüten. Darunter sehen wir, wie die Hebamme
Zeloni - so heißt sie nach der Legende - Wasser in ein Becken schüttet
und die andere Hebamme Salome hat das Jesuskind auf dem Schoß,
um es gleich zu baden.
Dieses Bild ist ein "Sammelbild", weil es verschiedene Szenen
versammelt. Es ist eine Ikone, d.h. im Bild ist das Dargestellte, hier
also der menschgewordene Gottessohn, gegenwärtig.
161
23 - 29
Декабрь 2001
23. Воскресенье
24. Понедельник
25. Вторник
52 неделя
4 Адвент
Сочельник
Рождество Христово
Икона Рождества Христова
На этой иконе Рождества Христова изображены различные
сцены, все они показывают, что Христос воистину
вочеловечился.
В центре мы видим лежащую Богоматерь, она опирается на свою
левую руку. Сзади открывается пещера, где в пеленах лежит
младенец-Христос, на него смотрят бык и осел. Сверху темноту
пещеры прорезает своими лучами Вифлеемская звезда.
Вверху слева мы видим волхвов на конях, спешащих поклониться
Младенцу, ниже них изображены три ангела-благовестника.
Внизу слева сидящая фигура Иосифа, который беседует о одним
из пророков, предсказавших рождение Спасителя: Михеем или
Исайей. Вверху справа еще раз представлены три ангела, один из
них обращен к пастухам, которые в середине справа пасут овец.
Ниже мы видим, как повивальная бабка Зелония – так завут ее,
согласно легенде – наливает в чашу воду, тогда как другая
повитуха, Саломия, держит на коленях младенца Иисуса перед
тем, как омыть его.
Различные сцены соединены в одной картине. Это – икона, т. е.
изображение, в котором присутствует то, что изображено –
принявший человеческую природу Сын Божий.
Перевод Т. Н. Таценко
162
30. – 5.
Dezember/Januar 2001 / 2002
31. Montag
53. Woche
Silvester
Text und Melodie: Joachim Schwarz
Und so können Sie das Lied tanzen:
Sie stehen hintereinander im Kreis. Sie legen die rechte Hand
auf die linke Schulter der Frau vor Ihnen. Die linke Hand halten
Sie offen zum Zeichen, dass Gott uns die Hände füllen kann.
Sie können aber auch in der linken Hand eine Kerze halten,
dann ist es ein Lichtertanz.
Der Pilgerschritt geht so:
Rechts, links, rechts, dann links zurückwiegen, das wiederholt
sich nun immer. Für jede halbe Note gibt es einen Schritt.
Der Pilgerschritt ist Ausdruck des Lebensweges.
30 – 5
Декабрь / Январь 2001 / 2002
163
53 неделя
31. Понедельник
Канун Нового года
В Божьих ру - ках - каждый день и час,
- ми
за - ру - ки нас.
Мо - лим возь -
А так Вы можете при этом танцевать:
Вы стоите в кругу друг за другом. Кладёте правую руку на левое
плечо стоящей перед Вами. Левая ладонь открыта, в знак того,
что Бог может наши ладони наполнить. В левой руке можнол
также держать свечу, тогда это будет танец со свечой.
Шаг паломников: шаг правой ногой вперёд, левой - вперед,
правой – вперед, левой – назад, кочнуться. Это повторяется.
Шаг паломников является выражением жизненного пути.
.
164
Kalendarium
165
Notizen
166
Autorinnen
Bild- und Textnachweis, soweit uns bekannt ist:
S.36 aus: FrauenKirchenKalender 1993; S. 42 aus: Rogier
van der Weyden,, Könemann verlagsgesellschaft mbH
1999; S. 48 aus: Ch. Peikert-Flaspöhler, "mit deinem Echo
im herzen" Neue Psalmen, Lahn Verlag Limburg 1995;
S.56 Fotos von J.-L.Lollike; S.64: Schnorr von Carolsfeld:
Bilderbibel; S.68 Fotos von U.von Jordan; S. 72 Foto von
Beate Junker; S.74 Lucy Art, Kirchgasse 5 65529
Waldems-Esch 06126/3116 Fax 4659; S. 108 WGT
Stein/Nürnberg; S.112 Hanne Köhler, aus: Beratungsstelle
für Gestaltung, Brot des Lebens - Kelch des Heils,
Materialheft 85, Frankfurt 1999, S.14f; S.120 Ch.PeikertFlaspöhler, Heut singe ich ein anderes Lied, Frauen
brechen ihr Schweigen, Rex Verlag Luzern/Stuttgart 1992;
S.36; S.122 aus: Scicias, Otto Müller Verlag Salzburg; S.
132 Seidenmalerei von Mathilde Simpfendörfer aus:
Kreise ziehen, Zeitschrift für meditativen und sakralen
Tanz 2/2000.; S.134 aus: Brigitte Enzner-Probst, Andrea
Felsenstein-Roßberg (Hg), Wenn Himmel und Erde sich
berühren, Christian Kaiser Verlag 1993; S.148 Foto aus
der Hl.Geist Kirche in Wismar; S.152 Foto Barbara; S.154
aus: Carola Moosbach, Lobet die Eine, Schrei- und
Lobgebete, Matthias Grünewald Verlag, Mainz 2000; S.
160 Ikone "Christi Geburt" von Andrej Rubljov, aus:
M.A.Iljin: Die Kunst der Moskauer Russ aus der Zeit
Theothan und Andrej Rubljow, Moskau 1976; S.162 Lied:
Rechte bei Mechthild Schwarz-Verlag, Faßberg
Alle anderen Texte: Rechte bei den Autorinnen
167
An den Hanna Strack Verlag
Kuckucksallee 9
D- 19065 Pinnow / Schwerin
Tel+Fax. (49) 3860 / 8685
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